दिल्ली में कलर ब्लाइंड शख्स बस ड्राइवर बना:3 साल गाड़ी चलाई; DTC में ऐसी 100 से ज्यादा नियुक्तियां हुईं, HC ने मांगा जवाब

दिल्ली हाई कोर्ट ने कलर ब्लाइंड शख्स को बस ड्राइवर नियुक्त करने के मामले में दिल्ली ट्रांसपोर्ट कॉर्पोरेशन (DTC) से जवाब मांगा है। कलर ब्लाइंड शख्स को 2008 में नियुक्त किया गया था। 2011 तक उसने दिल्ली की सड़कों पर बस चलाई। जनवरी 2011 में एक सड़क हादसे के बाद उसे नौकरी से निकाल दिया गया था।

DTC ने कोर्ट को बताया कि 2008 में कलर ब्लाइंडनेस से पीड़ित 100 से अधिक लोगों को नियुक्त किया गया था। मामला सामने आने के बाद 2013 में एक मेडिकल बोर्ड का गठन किया गया। जांच में पता चला कि सभी लोगों को गुरु नानक हॉस्पिटल से मेडिकल सर्टिफिकेट इश्यू किया गया था।

कोर्ट बोला- DTC की लापरवाही बहुत निराशाजनक
जस्टिस चंद्र धारी सिंह ने कहा- DTC को ड्राइवर की ओर से पेश मेडिकल सर्टिफिकेट पर भरोसा नहीं करना चाहिए था। यह मामला बेहद गंभीर है क्योंकि इसमें सार्वजनिक सुरक्षा शामिल है। DTC की तरफ से ऐसी लापरवाही देखना बहुत निराशाजनक है।

कोर्ट ने कहा- DTC को ध्यान देना चाहिए था कि जिन ड्राइवरों को ​​नियक्त किया जा रहा है, वे सभी पहलुओं में फिट हैं या नहीं। हम जानना चाहते हैं कि DTC ने सार्वजनिक सुरक्षा पर विचार किए बिना ड्राइवरों को क्यों और किन परिस्थितियों में नियुक्त किया था।

DTC की नींद साल 2013 में खुली और उसने मेडिकल बोर्ड का गठन किया। कोर्ट ने इस मामले में DTC चीफ को एक पर्सनल एफिडेविट दायर करने को कहा गया है। साथ ही जिम्मेदार अधिकारियों की जानकारी भी मांगी गई है।

क्या है कलर ब्लाइंडनेस
कलर ब्लाइंडनेस को कलर डेफिशिएंसी भी कहा जाता है। ये केवल कुछ रंगों में फर्क नहीं कर पाने के कारण होता है। इससे पीड़ित कुछ लोग लाल और हरे रंग के बीच अंतर नहीं बता पाते हैं। हर व्यक्ति में कलर ब्लाइंडनेस के अलग-अलग लक्षण हो सकते हैं। कई लोगों में इतने हल्के लक्षण होते हैं कि उन्हें पता ही नहीं चलता कि वे कलर ब्लाइंडनेस के शिकार हैं।