रिलेशनशिप- दूसरों से पहले खुद से करें प्यार:‘सेल्फ कंपैशन’ प्यार की पहली शर्त, यह स्वार्थ और आत्ममुग्धता नहीं है

हाल ही में जर्मनी की मार्टिन लूथर यूनिवर्सिटी में एक स्टडी हुई। इस स्टडी के मुताबिक सेल्फ कंपैशन और रिलेशनशिप में गहरा संबंध है। कहने का आशय यह है कि कोई व्यक्ति स्वयं के प्रति जितना संवेदनशील और जिम्मेदार होगा, रिश्ते में उसकी संवेदनशीलता और दायित्वबोध भी उतना ही गहरा होगा।

इसे यूं समझिए कि आप अपने रिश्तों में कैसा व्यवहार करते हैं, वो खुद के साथ किए गए आपके व्यवहार का ही प्रतिबिंब होता है। यानी अगर आप खुद से नफरत करते हैं तो इस बात की संभावना बहुत अधिक है कि आप रिश्तों में भी वैसे ही पेश आएंगे। लेकिन आप अपने प्रति गैरजिम्मेदार हैं तो रिश्ते की जिम्मेदारी के प्रति भी लापरवाह ही होंगे।

इस स्टडी के बाद कई कपल्स को सेल्फ कंपैशन थैरेपी दी गई। इससे उनके रिश्तों में जबरदस्त सुधार देखने को मिला। अगर आप खुद की कद्र करना सीख लें तो आपके रिश्ते भी मधुर हो सकते हैं।

आज ‘रिलेशनशिप’ कॉलम में हम बात करेंगे ‘सेल्फ कंपैशन’ की और जानेंगे-

  • खुद से मोहब्बत करना क्यों जरूरी है।
  • दूसरों को समझने की पहली शर्त खुद को समझना क्यों है।
  • अपने प्रति दयालु होना क्यों जरूरी है।
  • अपने प्रति ईमानदार होने का अर्थ क्या है।
  • सेल्फ कंपैशन स्वार्थ या आत्ममुग्धता से कैसे अलग है।

आमतौर पर इंसान सबसे अधिक क्रूर स्वयं के प्रति ही होता है। हम दूसरों की बड़ी-बड़ी गलतियां भी माफ कर देते हैं, लेकिन खुद को छोटी-छोटी गलतियों के लिए भी कोसते रहते हैं। धीरे-धीरे हम खुद से चिढ़ने लगते हैं। कई बार तो यह विचार नफरत तक में बदल जाता है।

स्वयं से करें प्यार

किसी से सच्ची मोहब्बत करनी है तो पहले स्वयं से प्यार करना होगा। खुद से प्यार करने का अर्थ है अपनी इच्छाओं, जरूरतों और भावनाओं का आदर करना। यह स्वार्थी होना नहीं है। इन दोनों चीजों में एक बारीक फर्क है। स्वार्थ दूसरों के हित की कीमत पर अपने बारे में सोचता है। जबकि सेल्फ कंपैशन में आप अपने साथ दूसरे की इच्छाओं और जरूरतों के प्रति भी उतने ही सम्मानजनक ढंग से पेश आते हैं।

एक छोटे से उदाहरण से समझिए। अगर आपके पार्टनर को घूमना और आपको किताब पढ़ना पसंद है तो एक स्वार्थी व्यक्ति उम्मीद करेगा कि दूसरा पार्टनर किताब पढ़ना छोड़कर उसके साथ घूमे। जबकि अपनी घूमने की इच्छा का सम्मान करने वाला पार्टनर दूसरे की किताब पढ़ने की इच्छा का भी उतना ही सम्मान करेगा।

आप अपने दिल की सुनेंगे तो खुश भी अधिक रहेंगे। यह खुशी दूसरों के साथ भी बांट सकते हैं। खुद सोचकर देखिए कि अगर आप खुद से नफरत कर रहे हैं, चिढ़े हुए घूम रहे हैं तो दूसरे से प्यार कैसे जता पाएंगे।

यह सबकुछ रातों-रात नहीं बदल जाएगा क्योंकि प्यार करने या जताने का कोई सर्टिफाइड फॉर्मूला नहीं है।

लेकिन ये सच है कि खुद से प्यार करने वालों में ये आदतें होती हैं।

स्वयं को जानना जरूरी

रिलेशनशिप कोच अपर्णा देवल बताती हैं कि हम किसी और को अच्छे से जानना चाहते हैं तो पहले खुद को समझना जरूरी है। आप अपनी खूबियों और खामियों को पहचानें। अपने दायरे भी जानें। इसके बाद जब आप दूसरे को समझने की कोशिश करेंगे तो उसकी कमियों पर झल्लाएंगे नहीं। सामने वाले की सीमाओं का भी सम्मान करेंगे।

स्वयं के प्रति न हों क्रूर

जर्मनी की बैमबर्ग यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर डॉ. रॉबर्ट कोर्नर कहते हैं कि आप दूसरों के लिए जितने संवेदनशील और दयावान होते हैं, अकसर स्वयं के प्रति उतने ही क्रूर होते हैं। ऐसा नहीं करना चाहिए। आपको अपने लिए भी उतना ही उदार और दयावान होना चाहिए। इससे आप स्वयं के और करीब जा पाएंगे, खुद को अधिक जान पाएंगे। यह आपको अपने साथी के प्रति दयावान होना सिखाएगा।

स्वयं के लिए बनें ईमानदार

आप अकसर बेईमानी की खबरें पढ़ते होंगे। किसी ने किसी व्यक्ति या संस्था के साथ बेईमानी कर ली। किसी ने लालच में आकर अपने करीबी के साथ ही बेईमानी कर ली। ये खबरें आपको परेशान भी करती होंगी। लेकिन आप सबसे अधिक बेईमानी तो अपने साथ करते हैं। उसे आपके अलावा न कोई जानता है, न कोई खबर ही बनाता है।

फर्ज करिए कि आप कोई जॉब कर रहे हैं। पैसे बचाकर अपने परिवार के शौक पूरे कर रहे हैं। जबकि खुद के लिए न पसंद के कपड़े ले रहे हैं, न ही कुछ मन का खा-पी रहे हैं क्योंकि स्वयं की बात आने पर आप पैसे न होने का बहाना बना लेते हैं। घूमने जाने की बात होने पर समय न होने का बहाना कर लेते हैं। अपने साथ ये ज्यादती करने के बजाय अपनी भी सुनें।

अपने दिल की सुनें

खुद को सबसे अधिक कोई जानता है तो वह आप स्वयं हैं। आप क्या चाहतें हैं, क्या सोचते हैं, आपसे अधिक कौन ही समझेगा। इसलिए यह जिम्मेदारी भी आपकी ही बनती है कि अपने दिल की सुनें। उसे तरजीह दें।

कई बार आप अपने लिए फैसले लेते समय भी दूसरों को अधिक तरजीह देते हैं। जबकि आपका दिल जानता है कि आपको क्या चाहिए या आपके लिए क्या बेहतर है। ऐसा होने पर खुद की सुनें।

बौद्ध धर्म में स्वयं के प्रति दयावान होने, स्वयं को पहचानने और स्वयं से प्रेम करने की बात कही गई है। कहा जाता है कि आपको सबसे अधिक जरूरत स्वयं की होती है। अगर आप अपना ख्याल रख पाते हैं, आप अपना सम्मान करते हैं तो दुनिया का कोई भी शख्स आपको परेशान नहीं कर पाएगा। न ही आपका अपमान कर पाएगा।