कोरोना वैक्सीन को लेकर दिल्ली-एनसीआर के लोगों में कैसे पैदा की जाए जागरूकता?

Corona Vaccine News टीका लगाने के प्रति लोगों की अन्यमनस्कता को तो तोड़ना ही होगा। साथ ही कोरोना बचाव के लिए तय उपाय और एहतियात को भी नहीं छोड़ना है। जरा याद कीजिए एक साल पहले के हालात को घरों में कैसे कैद थे। अपनों से भी दूर थे। ईश्वर से मिन्नतें कर इस कोरोना बीमारी को भगाने को तत्पर थे। कोरोना वैक्सीन का बेसब्री से इंतजार करते थे। अब वैक्सीन आई, लगनी शुरू हुई तो उसके प्रति आशंका व्यक्त की जाने लगीं।

आज बहुत कड़ी मेहनत के साथ टीकाकरण के पड़ाव तक पहुंच सके हैं। अब पहले चरण में ही ऐसे हालात रहे कि शंका-आशंकाओं के भंवर में फंस गए। लोग ऐसे उलङो हैं कि टीकाकरण का लक्ष्य दिल्ली-एनसीआर में महज 50-60 फीसद तक ही पूरा हो सका। स्वास्थ्य की सजगता के प्रति ऐसी ब्रेफिक्री और आशांकित रवैया अनुकूल नहीं है। ऐसे में सवाल यह उठता है कि लोगों का भरोसा जीतने में सरकार से कहां चूक रही?

आगे पूरी होंगी उम्मीदें

कोरोना की लड़ाई में टीका कारगर हथियार है। चूंकि स्वास्थ्यकर्मी और अग्रिम पंक्ति के कर्मचारियों को ही कोरोना से जंग में आगे रहे सो सबसे पहले उन्हें सुरक्षित करने का निर्णय भी लिया गया। सरकार ने तय किया कि पहले इन कोरोना योद्धाओं को टीका लगाया जाएगा। सबकी सूची बनाकर को-विन एप पर पंजीकरण भी हुआ, लेकिन जब टीकाकरण शुरू हुआ तो सरकार का शत प्रतिशत टीकाकरण का लक्ष्य पूरा नहीं हो सका। कहां कितने स्वास्थ्यकर्मी और अग्रिम पंक्ति के कर्मचारी हैं, कितनों ने लगवाया टीका, कितना रहा टीकाकरण का फीसद जानेंगे आंकड़ों की जुबानी :

अब बढ़ रहा विश्वास

कोवैक्सीन के ट्रायल की रिपोर्ट लांसेट मेडिकल जर्नल में प्रकाशित हाने के बाद लोगों में विश्वास जगा है। इससे पहले डाक्टर व स्वास्थ्य कर्मी टीकाकरण से बच रहे थे।

प्रोत्साहन से हुए प्रेरित

चार फरवरी को अग्रिम पंक्ति वालों का टीकाकरण शुरू हुआ। तब तक काफी संख्या में स्वास्थ्य कर्मी टीका लगवा चुके थे। उन्हें देखकर अग्रिम पंक्ति के कर्मचारियों का हौसला बढ़ गया था।

पुलिस, नगर निगम सहित संबंधित विभागों ने अपने कर्मचारियों को टीका लेने के लिए प्रोत्साहित किया।

यहां कम हुआ टीकाकरण : एम्स, सफदरजंग व आरएमएल अस्पताल में

ये रही वजह : डाक्टरों व नर्सिंग कर्मचारियों पर टीका लगवाने के लिए दबाव बनाना अस्पताल प्रशासन के लिए आसान नहीं था।