घाटों पर नहाती महिलाओं के वीडियो बनाने पर हाईकोर्ट नाराज:प्रमुख सचिव से मांगा जवाब, पुलिस को फटकार; गाजियाबाद में महंत ने लगवाया था कैमरा

घाटों पर स्नान करतीं महिलाओं के वीडियो बनाने के मामले में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने नाराजगी जताई। प्रमुख सचिव से जवाब मांगा। 12 सितंबर तक बंद लिफाफे में जांच रिपोर्ट दाखिल करने का आदेश दिया।

जस्टिस विक्रम डी चौहान पुलिस की जांच में सबूत छिपाकर हलफनामा दाखिल करने पर नाराज हुए। दरोगा की भूमिका को लेकर गाजियाबाद पुलिस उपायुक्त से हलफनामा मांगा। कहा- ठोस सबूत छिपा लिए गए। पूछा कि महिला आयोग का पत्र और न्यूज रिपोर्ट किस तरह से आरोपी के खिलाफ सबूत माने जाएंगे?

मामला 3 महीना पुराना है। 21 मई को गाजियाबाद के गंग नहर घाट पर शनि मंदिर के बाहर बने चेंजिंग रूम के ऊपर CCTV कैमरा लगा मिला। कैमरे की लाइव फीड मंदिर के महंत मुकेश गिरी के मोबाइल पर थी। पुलिस को DVR से महिलाओं के कपड़े बदलते हुए कुछ क्लिप्स भी मिलीं।

महंत के खिलाफ मुकदमा दर्ज किया गया। वह फरार है। पुलिस ने उस पर 50 हजार का इनाम रखा है। महंत की ओर से वकील ने जमानत याचिका दाखिल की थी। इसी पर सुनवाई के दौरान हाईकोर्ट ने ये आदेश दिया।

कोर्ट ने कहा- मुख्य सचिव स्तर के अधिकारी से जांच कराएं
हाईकोर्ट ने यूपी के प्रमुख सचिव को निर्देश दिया कि वह मुख्य सचिव स्तर के अधिकारी से जांच कराएं। पुलिस को महंत के खिलाफ जुटाए गए सबूत सहित जवाबी हलफनामे दाखिल करने का आदेश दिया। विवेचक दरोगा रामपाल सिंह की जांच को लेकर गाजियाबाद पुलिस उपायुक्त से जवाब मांगा है।

कोर्ट के सवालों का जवाब नहीं दे पाए पुलिस उपायुक्त
पुलिस उपायुक्त की ओर से कोर्ट को बताया गया कि भ्रामक हलफनामा दाखिल करने वाले दरोगा के खिलाफ विभागीय कार्रवाई शुरू कर दी गई है। हालांकि, पुलिस उपायुक्त कोर्ट के कई सवालों के सटीक जवाब नहीं दे पाए। इस पर कोर्ट ने प्रमुख सचिव को दोबारा जांच कराने का आदेश दिया।

कोर्ट बोला- अधिकारी पीड़ित को न्याय दिलाने में रुचि नहीं ले रहे
कोर्ट ने पुलिस विभाग, अभियोजन कार्यालय और शासकीय अधिवक्ता कार्यालय की कार्यशैली पर भी सवाल उठाए। कहा- अभियोजन निदेशक का कार्यालय डाकघर की तरह काम नहीं कर सकता। मौजूदा मामले में ऐसा लग रहा है कि अधिकारी पीड़ित को न्याय देने में रुचि नहीं ले रहे।

ऐसी लापरवाही के लिए जिम्मेदार कौन?
कोर्ट ने कहा- क्या पुलिस विभाग ने सारे सबूत निदेशक अभियोजन और शासकीय अधिवक्ता कार्यालय को भेजे थे। अगर नहीं, तो इन दोनों कार्यालयों में से किसी ने सबूत मांगे थे क्या? जवाबी हलफनामा क्या सरकारी खजाने के खर्च से टाइप कराया गया या किसी बाहरी टाइपिस्ट से कराया गया। किसने ड्राफ्ट तैयार किया? क्या निदेशक अभियोजन कार्यालय, शासकीय अधिवक्ता कार्यालय ने जवाब तैयार करने से पहले तथ्यों की जांच की? कोर्ट में सही तथ्य पेश न करने की ऐसी लापरवाही के लिए जिम्मेदार कौन है? ऐसे ही कई सवालों की जांच कर रिपोर्ट पेश करनी है।

पीड़िता के कोर्ट में बयान कराते ही लापता हुआ था महंत
DCP विवेक चंद यादव ने बताया था- 21 मई को चेंजिंग रूम के ऊपर CCTV लगा होने की शिकायत एक महिला ने की थी। हमने शिकायत की जांच की तो आरोप सही पाए गए। 23 मई को पुलिस ने महंत मुकेश गोस्वामी के खिलाफ FIR दर्ज की।

महंत का मोबाइल जांच के लिए कब्जे में ले लिया। उससे भी पुष्टि हो गई कि कैमरे की लाइव फीड महंत के मोबाइल पर थी। हमने जैसे ही पीड़िता के बयान कोर्ट में दर्ज कराए, महंत लापता हो गया। उस पर 50 हजार का इनाम है।

22 साल पहले एक मूर्ति रखी, सरकारी जमीन पर बना दिया धर्मस्थल
पुलिस की पूछताछ में पता चला कि महंत मुकेश गिरी की आईडी में मुकेश गोस्वामी नाम लिखा है। वह कस्बा मुरादनगर की डिफेंस कॉलोनी का रहने वाला है। साल 2002 में मुकेश ने गंग नहर पुल के नीचे शनि देव की मूर्ति स्थापित की। दो साल बाद 2004 में उसने इस जगह को मंदिर का रूप दे दिया। तब विधि-विधान से शनि देव की प्राण-प्रतिष्ठा कराई गई। इसके बाद वह इसी मंदिर का महंत बन गया।

साल 2007 की बात है। सिंचाई विभाग ने अपनी जमीन से शनि देव की मूर्ति हटा दी। उस वक्त यूपी में अनुराधा चौधरी सिंचाई मंत्री थीं। महंत ने अनुराधा चौधरी से किसी तरह संपर्क साधा और फिर से शनि देव की मूर्ति स्थापित कर दी। इससे महंत के हौसले बढ़ते चले गए।

गंग नहर हर साल सर्दियों में कुछ दिनों के लिए बंद होती है। करीब 10 साल पुरानी बात है। महंत मुकेश गोस्वामी ने गंग नहर के बीचो-बीच पिलर पर भगवान शंकर की मूर्ति स्थापित करा दी। चूंकि महंत के संपर्क तत्कालीन सिंचाई मंत्री से थे, इसलिए स्थानीय अफसर कुछ बोल नहीं पाए।

गाजियाबाद विकास प्राधिकरण को शनि देव मंदिर के ठीक सामने पक्का घाट भी बनाना पड़ा। पक्का घाट बनते ही मुकेश गोस्वामी का साम्राज्य फलने-फूलने लगा। यहां हर रोज हजारों श्रद्धालु आने लगे

घाटों पर स्नान करतीं महिलाओं के वीडियो बनाने के मामले में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने नाराजगी जताई। प्रमुख सचिव से जवाब मांगा। 12 सितंबर तक बंद लिफाफे में जांच रिपोर्ट दाखिल करने का आदेश दिया।

जस्टिस विक्रम डी चौहान पुलिस की जांच में सबूत छिपाकर हलफनामा दाखिल करने पर नाराज हुए। दरोगा की भूमिका को लेकर गाजियाबाद पुलिस उपायुक्त से हलफनामा मांगा। कहा- ठोस सबूत छिपा लिए गए। पूछा कि महिला आयोग का पत्र और न्यूज रिपोर्ट किस तरह से आरोपी के खिलाफ सबूत माने जाएंगे?

मामला 3 महीना पुराना है। 21 मई को गाजियाबाद के गंग नहर घाट पर शनि मंदिर के बाहर बने चेंजिंग रूम के ऊपर CCTV कैमरा लगा मिला। कैमरे की लाइव फीड मंदिर के महंत मुकेश गिरी के मोबाइल पर थी। पुलिस को DVR से महिलाओं के कपड़े बदलते हुए कुछ क्लिप्स भी मिलीं।

महंत के खिलाफ मुकदमा दर्ज किया गया। वह फरार है। पुलिस ने उस पर 50 हजार का इनाम रखा है। महंत की ओर से वकील ने जमानत याचिका दाखिल की थी। इसी पर सुनवाई के दौरान हाईकोर्ट ने ये आदेश दिया।

कोर्ट ने कहा- मुख्य सचिव स्तर के अधिकारी से जांच कराएं
हाईकोर्ट ने यूपी के प्रमुख सचिव को निर्देश दिया कि वह मुख्य सचिव स्तर के अधिकारी से जांच कराएं। पुलिस को महंत के खिलाफ जुटाए गए सबूत सहित जवाबी हलफनामे दाखिल करने का आदेश दिया। विवेचक दरोगा रामपाल सिंह की जांच को लेकर गाजियाबाद पुलिस उपायुक्त से जवाब मांगा है।

कोर्ट के सवालों का जवाब नहीं दे पाए पुलिस उपायुक्त
पुलिस उपायुक्त की ओर से कोर्ट को बताया गया कि भ्रामक हलफनामा दाखिल करने वाले दरोगा के खिलाफ विभागीय कार्रवाई शुरू कर दी गई है। हालांकि, पुलिस उपायुक्त कोर्ट के कई सवालों के सटीक जवाब नहीं दे पाए। इस पर कोर्ट ने प्रमुख सचिव को दोबारा जांच कराने का आदेश दिया।

कोर्ट बोला- अधिकारी पीड़ित को न्याय दिलाने में रुचि नहीं ले रहे
कोर्ट ने पुलिस विभाग, अभियोजन कार्यालय और शासकीय अधिवक्ता कार्यालय की कार्यशैली पर भी सवाल उठाए। कहा- अभियोजन निदेशक का कार्यालय डाकघर की तरह काम नहीं कर सकता। मौजूदा मामले में ऐसा लग रहा है कि अधिकारी पीड़ित को न्याय देने में रुचि नहीं ले रहे।

ऐसी लापरवाही के लिए जिम्मेदार कौन?
कोर्ट ने कहा- क्या पुलिस विभाग ने सारे सबूत निदेशक अभियोजन और शासकीय अधिवक्ता कार्यालय को भेजे थे। अगर नहीं, तो इन दोनों कार्यालयों में से किसी ने सबूत मांगे थे क्या? जवाबी हलफनामा क्या सरकारी खजाने के खर्च से टाइप कराया गया या किसी बाहरी टाइपिस्ट से कराया गया। किसने ड्राफ्ट तैयार किया? क्या निदेशक अभियोजन कार्यालय, शासकीय अधिवक्ता कार्यालय ने जवाब तैयार करने से पहले तथ्यों की जांच की? कोर्ट में सही तथ्य पेश न करने की ऐसी लापरवाही के लिए जिम्मेदार कौन है? ऐसे ही कई सवालों की जांच कर रिपोर्ट पेश करनी है।

पीड़िता के कोर्ट में बयान कराते ही लापता हुआ था महंत
DCP विवेक चंद यादव ने बताया था- 21 मई को चेंजिंग रूम के ऊपर CCTV लगा होने की शिकायत एक महिला ने की थी। हमने शिकायत की जांच की तो आरोप सही पाए गए। 23 मई को पुलिस ने महंत मुकेश गोस्वामी के खिलाफ FIR दर्ज की।

महंत का मोबाइल जांच के लिए कब्जे में ले लिया। उससे भी पुष्टि हो गई कि कैमरे की लाइव फीड महंत के मोबाइल पर थी। हमने जैसे ही पीड़िता के बयान कोर्ट में दर्ज कराए, महंत लापता हो गया। उस पर 50 हजार का इनाम है।

22 साल पहले एक मूर्ति रखी, सरकारी जमीन पर बना दिया धर्मस्थल
पुलिस की पूछताछ में पता चला कि महंत मुकेश गिरी की आईडी में मुकेश गोस्वामी नाम लिखा है। वह कस्बा मुरादनगर की डिफेंस कॉलोनी का रहने वाला है। साल 2002 में मुकेश ने गंग नहर पुल के नीचे शनि देव की मूर्ति स्थापित की। दो साल बाद 2004 में उसने इस जगह को मंदिर का रूप दे दिया। तब विधि-विधान से शनि देव की प्राण-प्रतिष्ठा कराई गई। इसके बाद वह इसी मंदिर का महंत बन गया।

साल 2007 की बात है। सिंचाई विभाग ने अपनी जमीन से शनि देव की मूर्ति हटा दी। उस वक्त यूपी में अनुराधा चौधरी सिंचाई मंत्री थीं। महंत ने अनुराधा चौधरी से किसी तरह संपर्क साधा और फिर से शनि देव की मूर्ति स्थापित कर दी। इससे महंत के हौसले बढ़ते चले गए।

गंग नहर हर साल सर्दियों में कुछ दिनों के लिए बंद होती है। करीब 10 साल पुरानी बात है। महंत मुकेश गोस्वामी ने गंग नहर के बीचो-बीच पिलर पर भगवान शंकर की मूर्ति स्थापित करा दी। चूंकि महंत के संपर्क तत्कालीन सिंचाई मंत्री से थे, इसलिए स्थानीय अफसर कुछ बोल नहीं पाए।

गाजियाबाद विकास प्राधिकरण को शनि देव मंदिर के ठीक सामने पक्का घाट भी बनाना पड़ा। पक्का घाट बनते ही मुकेश गोस्वामी का साम्राज्य फलने-फूलने लगा। यहां हर रोज हजारों श्रद्धालु आने लगे।

महंत मुकेश ने दिया मिनी हरिद्वार नाम
ये जगह इतनी फेमस हो गई कि महंत ने इसका नाम ‘मिनी हरिद्वार’ रख दिया। आज हर रोज 15 से 20 हजार महिला-पुरुष यहां स्नान करने पहुंचते हैं। इसलिए शनि देव मंदिर पर चढ़ावा भी खूब आता है। इसका सारा पैसा मुकेश गोस्वामी के पास जाता है। मंदिर के आसपास जितनी प्रसाद की दुकानें हैं, वो सब मुकेश ने ठेके पर दी हैं। यहां जो गोताखोर हैं, वो भी महंत ने प्राइवेट रखे हैं।

पॉलिटिक्स में भी आजमाया हाथ
महंत होने की वजह से जब क्षेत्र में अच्छा-खासा नाम होने लगा, तो मुकेश ने पॉलिटिक्स में आने का सपना देख लिया। 2007 में BJP के टिकट पर मुरादनगर नगर पंचायत से पत्नी नीरू को चेयरमैन का प्रत्याशी बनाया। मगर, नीरू की जमानत जब्त हो गई।

2017 में खुद मुकेश गोस्वामी ने आम आदमी पार्टी से चेयरमैन का टिकट हासिल कर लिया। लेकिन बीच चुनाव में मुकेश ने पाला बदलते हुए BJP प्रत्याशी को समर्थन दे दिया। कुल मिलाकर मुकेश पॉलिटिक्स में एडजस्ट नहीं हो सका।

महंत ने पत्रकार बनकर डॉक्टर से मांगे थे पैसे
मुकेश गोस्वामी पर पहले से चार मुकदमे दर्ज हैं। एक मुकदमा मेरठ और तीन गाजियाबाद जिले में हैं। साल 2007 में महंत पर मेरठ के सिविल लाइन थाने में धोखाधड़ी और जालसाजी का केस दर्ज किया गया। आरोप था, मुकेश ने TV चैनल का पत्रकार बनकर एक डॉक्टर से पैसे मांगे। मुकेश पर 2017 में दूसरा केस मुरादनगर थाने में दर्ज हुआ। दो मुकदमे वन अधिनियम के तहत चल रहे हैं। ये मुकदमे 2018 और 2019 में दर्ज किए गए।

इसमें मुकेश ने गौशाला बनाकर वन विभाग की जमीन पर कब्जा कर लिया था। बाद में वन विभाग ने अपनी जमीन खाली कराई। मुकेश पर नहर किनारे सिंचाई विभाग की जमीन पर अवैध तरीके से 10-11 दुकानें बनाने का आरोप है, जिन्हें 24 मई को बुलडोजर चलाकर गिरा दिया गया।

गाजियाबाद में गंग नहर के किनारे बना शनि देव मंदिर अब सुर्खियों में रहा। वजह, मंदिर के बाहर बने चेंजिंग रूम का सीसीटीवी है। इसके डीवीआर से कपड़े बदलते हुए 320 लड़कियों के क्लिप मिले।आरोपी महंत मुकेश गोस्वामी वो है, जिसने 22 साल में यहां अपना साम्राज्य खड़ा कर दिया। मंदिर से लेकर दुकानें बनवाईं। प्राइवेट सिक्योरिटी गार्ड और गोताखोर रखे.