13 सितंबर को हर साल वर्ल्ड सेप्सिस डे मनाया जाता है। इसका मकसद बेहद घातक और जानलेवा बीमारी सेप्सिस से बचाव करना है। एंटीबायोटिक दवाओं का बेवजह इस्तेमाल करने से इसके होने की आशंका रहती है।
सही समय पर सही एंटीबायोटिक खाना ही सेहत के लिए उचित होता है। अत्यधिक एंटीबायोटिक लेने से ब्लड इन्फेक्शन यानी खून में संक्रमण हो जाता है और सेप्सिस होने का खतरा रहता है।
KGMU के पल्मोनरी एंड क्रिटिकल केयर मेडिसिन विभाग के प्रमुख डॉ. वेद प्रकाश ने बताया कि इसे सेप्सिस को सेप्टीसीमिया भी कहते हैं। इसमें ब्लड में संक्रमण होता है और शरीर के कई अंग प्रभावित होते हैं।
सालाना होती है 1 करोड़ 10 लाख मौतें डॉ. वेद प्रकाश के मुताबिक सेप्सिस के कारण दुनिया भर में सालाना कम से कम 1 करोड 10 लाख मौतें होती हैं। सेप्सिस की घटनाओं में भले ही थोड़ी कमी आई हैं, लेकिन मृत्यु दर अभी भी बेहद ज्यादा बनी हुई हैं।
दुनिया मे सेप्सिस के सभी मामलों में से लगभग 40% मामले 5 साल से कम उम्र के बच्चों के होते हैं। बुजुर्गों और नवजात शिशुओं में सेप्सिस होने पर मृत्यु दर भी अधिक होती हैं। इसके पीछे कमजोर इम्यूनिटी पॉवर बड़ी वजह है।
ICU के आधे से ज्यादा मरीज सेप्सिस की चपेट में डॉ. वेद प्रकाश ने बताया कि एक हालिया शोध के अनुसार भारत में ICU के आधे से अधिक मरीज सेप्सिस से पीड़ित हैं, पिछले एक दशक में ऐसे मामले तेजी से बढ़े हैं। एक अध्ययन में देश भर के 35 ICU से लिए गए 677 मरीजों में से 56% से अधिक मरीजों में सेप्सिस पाया गया।
इसमें अधिक चिंता की बात यह थी कि 45% मामलों में, संक्रमण बहु-दवा प्रतिरोधी बैक्टीरिया के कारण हुआ था। एंटीबायोटिक दवाओं के अनुचित या बेवजह उपयोग से संक्रमण बढ़ सकता है, खासकर तब जब बैक्टीरिया उपचार के प्रति प्रतिरोधी होते हैं, जिससे सेप्सिस का खतरा बढ़ जाता है।
2 दिवसीय कांफ्रेंस का आज से आगाज KGMU के पल्मोनरी और क्रिटिकल केयर मेडिसिन विभाग वर्ल्ड सेप्सिस डे पर 2 दिवसीय कांफ्रेंस का आयोजन कर रहा है। आज आज 13 सितंबर से इसकी शुरुआत होगी। कांफ्रेंस में कई विभागों के दिग्गज चिकित्सक सेप्सिस को लेकर जागरूक करेंगे।
सेप्सिस के लक्षण
- बुखार या हाइपोथर्मिया
- हदय गति का बढ़ना
- तेजी से सांस लेना और सांस फूलना
- भ्रम या परिवर्तित मानसिक स्थिति
- लो बीपी
- सांस लेने में कठिनाई
- यूरिन पास करने में परेशानी, पेट में दर्द, पीलिया और थक्के जमने की समस्या
सेप्सिस यह प्रभाव पड़ता है
- स्किन यानी त्वचा में बदलाव– सेप्सिस के कारण त्वचा धब्बेदार या बदरंग हो सकती है। पीली, नीली या धब्बेदार रंग में दिखाई देती हैं। छूने पर त्वचा असामान्य रूप से गर्म या ठंडी महसूस हो सकती है।
- गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल लक्षण– सेप्सिस की चपेट में आने पर मतली, उल्टी, दस्त या पेट में परेशानी का अनुभव होता है।
- सेप्टिक शॉक– सबसे गंभीर मामलों में, सेप्सिस सेप्टिक शॉक में लो बीपी के साथ मल्टीपल ऑर्गन फेलियर तक हो सकता हैं। ये बेहद अलार्मिंग कंडीशन होती है।
- सीवियर इंफेक्शन– लंग्स और UTI इन्फेक्शन को भी इसके लक्षण से जोड़कर देखा जा रहा है।
सेप्सिस के प्रमुख कारण
- वायरल संक्रमण: इसमें इन्फ्लूएंजा, एचआईवी, कोविड व डेंगू शामिल है।
- फंगल संक्रमण: यह उन्हें होता है, जिनकी प्रतिरोधक क्षमता कम होती है जैसे कैन्डिडा व एस्पराजिलस ।
- अस्पताल का संक्रमण: इसमें केथेटर से होने वाला संक्रमण जैसे यूरो कैथेटर, सेंट्रल लाइन का संक्रमण, वेंटिलेटर होने वाला संक्रमण शामिल है।
सेप्सिस का उपचार
- ब्लड प्रेशर को नियंत्रित रखना।
- एंटीबायोटिक का सही इस्तेमाल।
- ऑक्सीजन थेरेपी।
- गुर्दे की खराबी होने पर डायलिसिस, फेफड़े को ऑक्सीजन देने के लिए वेंटिलेटर का उपयोग।
- संतुलित आहार, व्यायाम, एवं साफ सफाई का ध्यान रखें।