* केंद्रीय विश्वविद्यालयों की कार्यकारी परिषद (ईसी ) में शिक्षा मंत्रालय के प्रतिनिधि को शामिल करने का फोरम ने विरोध जताया ।

* सरकार के सदस्यों को रखें जाने से विश्वविद्यालय की स्वायत्तता पर सीधा हमला है–डॉ.सुमन

फोरमऑफ एकेडेमिक्स फॉर सोशल जस्टिस ( शिक्षक संगठन ) ने बताया है कि शिक्षा मंत्रालय ने एक सर्कुलर जारी कर अपने अधीन आने वाले केंद्रीय विश्वविद्यालयों की कार्यकारी परिषद ( ईसी ) में शिक्षा मंत्रालय के प्रतिनिधियों को शामिल किए जाने का अनुरोध किया है । सर्कुलर में कहा गया है कि शिक्षा मंत्रालय ने अपने अधीन आने वाले केंद्रीय विश्वविद्यालयों के मौजूदा प्रशासनिक ढांचे की समीक्षा की है और इन संस्थानों की कार्यकारी परिषद (ईसी ) में मंत्रालय के प्रतिनिधित्व में असमानता देखी है । 48 केंद्रीय विश्वविद्यालयों में से 20 पहले ही अपने कार्यकारी परिषदों में मंत्रालय के प्रतिनिधि शामिल कर लिया है । जबकि 28 केंद्री विश्वविद्यालयों में वर्तमान में ऐसा कोई प्रतिनिधित्व नहीं है । सर्कुलर में यह भी लिखा है कि सभी केंद्रीय विश्वविद्यालयों में प्रशासन में एकरूपता सुनिश्चित करने के लिए यह सुझाव दिया जाता है कि ( उच्च शिक्षा ) शिक्षा मंत्रालय , भारत सरकार या उनके द्वारा नामित व्यक्ति को आपके विश्वविद्यालय की कार्यकारी परिषद के सदस्य के रूप में शामिल किया जाए ।बता दें कि सोमवार (14 अक्टूबर ) को डीयू की कार्यकारी परिषद (ईसी ) की मीटिंग हो रही है जिसमें शिक्षा मंत्रालय के पत्र को रखा जाना है ।

फोरम के चेयरमैन डॉ. हंसराज सुमन ने शिक्षा मंत्रालय द्वारा जारी सर्कुलर का कड़े शब्दों में विरोध किया है और कहा है कि शैक्षणिक संस्थानों के निर्णय लेने वाले निकाय जैसे कार्यकारी परिषद (ईसी ) से संबंधित मंत्रालय से सरकार या नौकरशाही का प्रत्यक्ष प्रतिनिधित्व नहीं होना चाहिए । इससे विश्वविद्यालयों की स्वायत्तता पर सीधा हमला बताया है । विश्वविद्यालयों में राजनीतिक हस्तक्षेप होगा व कुलपति की शक्तियों को कमजोर किया जाएगा । क्योंकि शिक्षा मंत्रालय द्वारा भेजे जाने वाले प्रतिनिधि सरकार की भाषा बोलेंगे और मनमानी करके अपना एजेंडा लागू करेंगे। उन्होंने बताया है कि डीयू एक्ट 1922 में बना था जो कि उसे पूरी स्वायत्तता देता है जबकि अन्य केंद्रीय विश्वविद्यालय 2009 में बने है , उन पर सरकार अपना एजेंडा लागू कर सकती है क्योंकि उन विश्वविद्यालयों की प्रकृति हमारे विश्वविद्यालय से भिन्न है । यदि यहाँ पर सरकार का पूर्ण हस्तक्षेप होगा तो नियुक्ति , पदोन्नति तथा सभी संसाधनों पर सरकार का कब्जा होगा इसलिए इसका जबरदस्त विरोध करेंगे । डॉ.सुमन ने बताया है कि दिल्ली सरकार से शत प्रतिशत वित्त पोषित 12 कॉलेजों में इनके नुमाइंदों को गवर्निंग बॉडी में रखा जाता है जहाँ वे अपनी मनमानी करते हैं , इसीलिए पिछले दो साल से सरकार की गवर्निंग बॉडी न होने से शिक्षकों का समय पर वेतन नहीं मिलता , अभी तक एडहॉक शिक्षकों की स्थायी नियुक्ति नहीं हुई , कर्मचारियों की स्थायी नियुक्ति भी पिछले एक दशक से नहीं हुई है । ऐसी स्थिति में यदि शिक्षा मंत्रालय के सदस्यों द्वारा सरकार की नीतियों को लागू करेंगे तो शिक्षकों के अंदर डर पैदा होगा इसलिए डीयू की स्वायत्तता को इसी तरह बरकरार रखा जाए ।

डॉ.हंसराज सुमन का यह भी कहना है कि भारत सरकार के उच्च शिक्षा सचिव या उनके द्वारा नामित व्यक्ति को दिल्ली विश्वविद्यालय की कार्यकारी परिषद (ईसी ) का सदस्य बनाने से डीयू में दूसरा पावर सेंटर बनाने के अतिरिक्त और कुछ नहीं , इससे केंद्रीय विश्वविद्यालयों की शैक्षणिक स्वायत्त स्थिति के लिए घातक है । उन्होंने डीयू का उदाहरण देते हुए बताया कि डीयू अधिनियम और ईसी संरचना को परिभाषित करते हैं कि सचिव और उच्च शिक्षा , भारत सरकार को शामिल करने की अनुमति नहीं देते । डीयू ईसी में पहले से ही विजिटर और चांसलर नामित है जो सरकार का प्रतिनिधित्व करते हैं । उन्होंने बताया है कि सचिव , उच्च शिक्षा और सचिव यूजीसी या उनके नामित व्यक्ति डीयू की वित्त समिति में सरकार का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं । इसी तरह से केंद्र सरकार के तीन सांसदों को यूनिवर्सिटी कोर्ट में प्रतिनिधित्व दिया गया है । उन्होंने सोमवार को हो रही ईसी की मीटिंग में इस तरह के सर्कुलर का विरोध किये जाने की सदस्यों से मांग की है ।