मैरिटल रेप पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई आज:पिछली सुनवाई में याचिकाकर्ता बोले- पति को सिर्फ इसलिए छूट न मिले क्योंकि पीड़ित पत्नी है​​​​

मैरिटल रेप पर सुप्रीम कोर्ट में बुधवार को फिर सुनवाई होगी। इससे पहले मैरिटल रेप को अपराध घोषित करने से जुड़ी याचिकाओं पर गुरुवार (17 अक्टूबर) को 3 घंटे सुनवाई चली थी। CJI डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की बेंच ने मामले की सुनवाई की थी।

केस में दो याचिकाकर्ता हैं। एक याचिकाकर्ता की एडवोकेट करुणा नंदी ने कहा था- पत्नी के साथ जबरन संबंध बनाने में पति को सिर्फ इसलिए छूट मिल रही, क्योंकि पीड़ित पत्नी है। यह जनता बनाम पितृसत्ता की लड़ाई है, इसलिए हम अदालत में आए हैं।

वहीं दूसरे एडवोकेट गोंजाल्विस ने कहा- पड़ोसी देश नेपाल में मैरिटल रेप को अपराध माना गया है। वहां यह किसी विवाह संस्था को अपमानित नहीं करता है। बल्कि विवाह में दुर्व्यवहार और बलात्कार विवाह संस्था को अपमानित करता है। यदि कोई महिला (पत्नी) संबंध बनाने को लेकर न कहती है, तो इसका मतलब न ही है।

3 अक्टूबर को पिछली सुनवाई में सरकार ने इसका विरोध करते हुए कहा था कि ऐसा करने से वैवाहिक संबंधों पर बुरा असर पड़ेगा।

CJI: जब पत्नी 18 साल से कम की होती है, तो यह रेप है और जब यह 18 साल से अधिक की होती है, तो यह नहीं है। यही BNS और IPC में अंतर है।

एडवोकेट नंदी: यदि पति एनल सेक्स करता है, तो उसे अपवाद 2 के तहत छूट दी जाती है, जबकि यह ‘यौन क्रिया’ नहीं है।

CJI: कानून कहता है कि चाहे वजाइनल सेक्स हो या एनल सेक्स। जब तक यह विवाह के भीतर किया जाता है, तब तक यह बलात्कार नहीं होगा।

एडवोकेट नंदी: धारा 63 ए यह भी कहती है कि यदि कोई पुरुष किसी अन्य पुरुष का लिंग किसी महिला की योनि, मुंह आदि में इंसर्ट कराता है तो वह भी बलात्कार होगा।

CJI: लेकिन यह अपवाद के अंतर्गत नहीं आएगा।

जस्टिस पारदीवाला: यौन क्रिया शब्द को सही तरीके से परिभाषित नहीं किया गया है? मान लीजिए कि कोई पति पत्नी को किसी अन्य पुरुष के साथ संबंध बनाने के लिए मजबूर करता है तो क्या वह अपवाद 2 के अंतर्गत आएगा? नहीं, वह नहीं आएगा।

जस्टिस पारदीवाला :पति की मांग (यौन संबंध) के बावजूद पत्नी मना करे, उसे लगे ​कि पति को ऐसा नहीं करना था, और वह केस दर्ज करा दे तो, क्या होगा?

एडवोकेट नंदी : फिलहाल ‘ना’ कहने का मेरा अधिकार स्वतंत्र और खुशी से ‘हां’ कहने का अधिकार छीन लेता है। इस अपवाद ने मुझे (महिला को) यौन वस्तु बना दिया है।

जस्टिस पारदीवाला : तो क्या पति को पत्नी की इंकार मान लेनी चाहिए या तलाक दाखिल कर देना चाहिए?

एडवोकेट नंदी : पति को अगले दिन तक इंतजार करना चाहिए और अधिक हैंडसम बनकर आना चाहिए। मुझसे पूछ सकता है कि क्या मुझे सिरदर्द है? (मुस्कुराते हुए)

नंदी: पत्नी के साथ जबरन संबंध बनाने में पति को सिर्फ इसलिए छूट मिल रही, क्योंकि पीड़ित पत्नी है। यह पुरुष महिला नहीं बल्कि लोग बनाम पितृसत्ता की लड़ाई है, इसलिए हम अदालत में आए हैं। इसी के साथ नंदी ने अपनी दलीलें समाप्त कीं।

मैरिटल रेप का मामला सुप्रीम कोर्ट कैसे पहुंचा मैरिटल रेप को लेकर नए कानून बनाने की मांग काफी समय से हो रही थी। पिछले दो सालों में दिल्ली हाईकोर्ट और कर्नाटक हाईकोर्ट का फैसला आने के बाद इसकी मांग और तेज हो गई। सुप्रीम कोर्ट में दो मुख्य याचिकाएं हैं, जिन पर सुनवाई हो रही है। एक याचिका पति की तरफ से लगाई गई, तो दूसरी याचिका एक अन्य मामले में एक महिला ने दायर की थी।

  • दिल्ली हाईकोर्ट का मामला: साल 2022 में एक महिला ने पति द्वारा जबरन शारीरिक संबंध बनाने पर दिल्ली हाईकोर्ट में याचिका लगाई। 11 मई 2022 को दिल्ली हाईकोर्ट के 2 जजों ने अलग-अलग फैसला दिया था। जस्टिस राजीव शकधर ने वैवाहिक बलात्कार के अपवाद को रद्द करने का समर्थन किया था। वहीं, जस्टिस सी हरि शंकर ने कहा कि पति को मिली छूट असंवैधानिक नहीं है और एक समझदार अंतर पर आधारित है।
  • कर्नाटक हाईकोर्ट का मामला: कर्नाटक हाईकोर्ट में एक पति ने पत्नी की तरफ से लगाए रेप के आरोपों पर हाईकोर्ट का रुख किया था। 23 मार्च 2023 को कर्नाटक हाईकोर्ट ने पति पर लगाए गए रेप के आरोपों को समाप्त करने से इनकार कर दिया। हाईकोर्ट ने इस मामले में अपवाद को मानने से इनकार कर दिया। कर्नाटक हाईकोर्ट के जस्टिस एम नागप्रसन्ना की सिंगल बेंच ने इस मामले में कहा था कि तथ्यों के आधार पर इस तरह के यौन हमले/दुष्कर्म के लिए पति को पूरी छूट नहीं दी जा सकती है।

    सरकार इसके विरोध में, कहा-ये कानूनी नहीं सामाजिक मुद्दा मैरिटल रेप को अपराध घोषित करने की मांग का सरकार ने विरोध किया है। 3 अक्टूबर को दायर हलफनामे में केंद्र ने दलील दी कि अगर किसी व्यक्ति का अपनी पत्नी के साथ संबंध बनाना बलात्कार के रूप में दंडनीय किया जाता है तो इससे वैवाहिक संबंधों पर गंभीर असर पड़ सकता है। मैरिटल रेप को अपराध घोषित करने की जरूरत नहीं है, क्योंकि इसके लिए कई अन्य सजाएं भारतीय कानून में मौजूद हैं।

    मैरिटल रेप को अपराध मानने से इनकार कर चुकी है भारत सरकार 2016 में मोदी सरकार ने मैरिटल रेप के विचार को खारिज कर दिया था। सरकार ने कहा था कि देश में अशिक्षा, गरीबी, ढेरों सामाजिक रीति-रिवाजों, मूल्यों, धार्मिक विश्वासों और विवाह को एक संस्कार के रूप में मानने की समाज की मानसिकता जैसे विभिन्न कारणों से इसे भारतीय संदर्भ में लागू नहीं किया जा सकता है।

    2017 में, सरकार ने मैरिटल रेप को अपराध न मानने के कानूनी अपवाद को हटाने का विरोध किया था। सरकार ने तर्क दिया था कि मैरिटल रेप को अपराध घोषित करने से विवाह की संस्था अस्थिर हो जाएगी और इसका इस्तेमाल पत्नियों द्वारा अपने पतियों को सजा देने के लिए किया जाएगा।

    केंद्र ने पिछले साल दिल्ली हाई कोर्ट में मैरिटल रेप पर चल रही सुनवाई के दौरान कहा था कि केवल इसलिए कि अन्य देशों ने मैरिटल रेप को अपराध घोषित कर दिया है, भारत को भी ऐसा करने की जरूरत नहीं है।

    19वीं सदी में इंग्लैंड के कानून ने माना कि मैरिटल रेप होता है जोनाथन हेरिंग की किताब फैमिली लॉ (2014) के मुताबिक, ऐतिहासिक रूप से दुनिया के ज्यादातर हिस्सों में ये धारणा थी कि पति पत्नी का रेप नहीं कर सकता, क्योंकि पत्नी को पति की संपत्ति माना जाता था।

    20वीं सदी तक अमेरिका और इंग्लैंड के कानून मानते थे कि शादी के बाद पत्नी के अधिकार पति के अधिकारों में समाहित हो जाते हैं। 19वीं सदी की शुरुआत में नारीवादी आंदोलनों के उदय के साथ ही इस विचार ने भी जन्म लिया कि शादी के बाद पति-पत्नी के सेक्स संबंधों में महिलाओं की सहमति का अधिकार उनका मौलिक अधिकार है।

    सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को कहा कि चाइल्ड पोर्नोग्राफी डाउनलोड करना और देखना POCSO और IT एक्ट के तहत अपराध है। CJI डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की बेंच ने मद्रास हाईकोर्ट के फैसले को खारिज करते हुए फैसला सुनाया।