CJI डीवाई चंद्रचूड़ के रिटायरमेंट के बाद जस्टिस संजीव खन्ना भारत के 51वें चीफ जस्टिस होंगे। वह 11 नवंबर को भारत के मुख्य न्यायाधीश की शपथ लेंगे। हालांकि, CJI बनने से पहले ही खन्ना ने मॉर्निंग वॉक बंद कर दी है।
जस्टिस खन्ना दिल्ली में हर सुबह लोधी गार्डन एरिया और अपने घर के आसपास कई किलोमीटर तक अकेले टहलते थे, क्योंकि उन्हें लगता था कि कोई उन्हें पहचान नहीं पाएगा।
अब जब उन्हें CJI की शपथ लेनी है तो जस्टिस खन्ना को सुरक्षाकर्मियों के साथ सुबह की सैर पर जाने की सलाह दी गई है। हालांकि, उन्होंने सिक्योरिटी के साथ जाने से इनकार कर दिया और कहा कि उन्हें इसकी आदत नहीं है।
CJI चंद्रचूड़ का कल आखिरी वर्किंग डे था, उन्हीं ने खन्ना के नाम की सिफारिश की
CJI चंद्रचूड़ 10 नवंबर 2024 को रिटायर हो जाएंगे। उससे पहले 8 नवंबर को सुप्रीम कोर्ट में उनका आखिरी वर्किंग डे था। CJI चंद्रचूड़ की विदाई के लिए सेरेमोनियल बेंच बैठी। वहीं, शाम को विदाई समारोह रखा गया।
चंद्रचूड़ ने ही सरकार से संजीव खन्ना के नाम की सिफारिश की है। परंपरा है कि मौजूदा CJI अपने उत्तराधिकारी के नाम की सिफारिश तभी करते हैं, जब उन्हें कानून मंत्रालय से ऐसा करने का आग्रह किया जाता है।
CJI चंद्रचूड़ के बाद वरिष्ठता सूची में जस्टिस संजीव खन्ना का नाम है, इसलिए जस्टिस खन्ना का नाम आगे बढ़ाया है। हालांकि, उनका कार्यकाल सिर्फ 6 महीने का होगा।
64 साल के जस्टिस खन्ना 13 मई 2025 को रिटायर होंगे। सुप्रीम कोर्ट जज के तौर पर जस्टिस खन्ना ने 65 फैसले लिखे हैं। इस दौरान वे करीब 275 बेंचों का हिस्सा रहे हैं।
दिल्ली हाईकोर्ट में 14 साल तक जज रहे जस्टिस संजीव खन्ना का जन्म 14 मई 1960 को हुआ था। उन्होंने दिल्ली यूनिवर्सिटी के कैंपस लॉ सेंटर से कानून की पढ़ाई की। ग्रेजुएशन के बाद, उन्होंने 1983 में दिल्ली बार काउंसिल में एक वकील के रूप में रजिस्ट्रेशन कराया। सुप्रीम कोर्ट जज बनाए जाने से पहले वे दिल्ली हाईकोर्ट में 14 साल तक जज रहे। उन्हें 2019 में सुप्रीम कोर्ट में पदोन्नत किया गया था।
सुप्रीम कोर्ट जज बनने पर भी हुआ था विवाद 32 जजों की अनदेखी करके जस्टिस खन्ना को सुप्रीम कोर्ट जज बनाने पर जमकर विवाद हुआ था। 10 जनवरी 2019 को कॉलेजियम ने उनकी जगह जस्टिस माहेश्वरी और वरिष्ठता में 33वें स्थान पर जस्टिस खन्ना को प्रमोट करने का फैसला किया। इसके बाद सिफारिश पर राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने दस्तखत कर दिए थे।
वरीयता को अनदेखा करते हुए CJI बनाने के दो मामले, दोनों इंदिरा सरकार के अप्रैल 1973 में सुप्रीम कोर्ट के तीन सीनियर जजों को दरकिनार करते हुए एएन रे को CJI बनाया गया था।1977 में जब जस्टिस रे रिटायर हुए तो जस्टिस एचआर खन्ना सबसे सीनियर थे। लेकिन, उनकी जगह जस्टिस एमएच बेग को चुना गया। इमरजेंसी के दौरान जस्टिस खन्ना ने इंदिरा सरकार के खिलाफ फैसले सुनाए थे, जस्टिस संजीव खन्ना उन्हीं के भतीजे हैं।
जस्टिस संजीव खन्ना के पिता जस्टिस देवराज खन्ना भी दिल्ली हाईकोर्ट के जज थे। उनके चाचा जस्टिस हंसराज खन्ना भी सुप्रीम कोर्ट जज रहे। यह दुर्लभ संयोग था कि जस्टिस संजीव खन्ना ने सुप्रीम कोर्ट के जज के तौर पर अपना पहला दिन उसी कोर्ट रूम से शुरू किया, जहां से उनके चाचा, दिवंगत जस्टिस एचआर. खन्ना रिटायर हुए थे।
सेम सेक्स मैरिज केस की सुनवाई से खुद को अलग किया अगस्त 2024 में समलैंगिक विवाह पर 52 रिव्यू पिटीशन पर सुनवाई होनी थी, लेकिन सुनवाई से ठीक पहले जस्टिस संजीव खन्ना ने खुद को केस से अलग कर लिया था। सूत्रों के मुताबिक जस्टिस खन्ना ने इसके पीछे निजी कारणों का हवाला दिया था।
जस्टिस खन्ना के अलग होने से रिव्यू पिटीशंस पर विचार करने के लिए पांच जजों की नई बेंच बनाना जरूरी हो जाएगा। इसके बाद ही इन पर सुनवाई हो सकेगी।
दरअसल, 17 अक्टूबर 2023 को सेम सेक्स मैरिज को कानूनी मान्यता देने से इनकार कर दिया था। सुप्रीम कोर्ट में 52 याचिकाएं दायर कर फैसले पर पुर्नविचार करने की मांग रखी गई है।
जस्टिस संजीव खन्ना के चर्चित केस
- VVPAT का 100% वैरिफिकेशन- एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स बनाम भारतीय चुनाव आयोग (2024) में जस्टिस खन्ना की बेंच ने इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनों पर डाले गए वोटों के 100% VVPAT सत्यापन की मांग करने वाली ADR की याचिका को खारिज कर दिया था। फैसले में जस्टिस खन्ना ने लिखा कि वे स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव सुनिश्चित करने के लिए आयोग के सभी सुरक्षा उपायों को रिकॉर्ड में रखना चाहते हैं।
- इलेक्टोरल बॉन्ड स्कीम – 2024 में पांच जजों की बेंच ने इलेक्टोरल बॉन्ड स्कीम को असंवैधानिक घोषित कर दिया। जस्टिस खन्ना ने सहमति जताते हुए लिखा कि अगर बैंकिंग चैनल के जरिए दान दिया जाता है, तो दानकर्ताओं की निजता का अधिकार नहीं होता। उनकी पहचान उस व्यक्ति और बैंक के अधिकारियों को पता होती है, जहां से बॉन्ड खरीदा जाता है।
- अनुच्छेद 370 निरस्त करना- 2023 में जस्टिस खन्ना ने पांच जजों की बेंच के फैसले में सहमति व्यक्त की, जिसने अनुच्छेद 370 को निरस्त करने की वैधता को बरकरार रखा। उन्होंने पाया कि भारत के संविधान का अनुच्छेद 370 संघवाद की विशेषता थी, न कि संप्रभुता का संकेत। इसका निरस्तीकरण संघीय ढांचे को नकारता नहीं है।
- सुप्रीम कोर्ट को तलाक देने का अधिकार- 2023 में शिल्पा शैलेश बनाम वरुण श्रीनिवासन मामले में जस्टिस खन्ना ने बहुमत की राय लिखी, जिसमें कहा गया कि संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत सुप्रीम कोर्ट को सीधे तलाक देने का अधिकार है। उन्होंने तर्क दिया कि सुप्रीम कोर्ट पूर्ण न्याय देने के लिए विवाह के अपूरणीय विघटन के आधार पर तलाक दे सकता है।