कानपुर में मंगलवार सुबह गंगा पर बने पुराने गंगा का पुल का बड़ा हिस्सा अचानक ढह गया। पुल के दसवें नंबर की कोठी का बड़ा हिस्सा भरभरा कर गंगा नदी में समा गया। हालांकि पुल जर्जर होने के चलते पहले ही बंद कर दिया गया था। इसलिए किसी भी प्रकार की जनहानि नहीं हो सकी।
पुल में आ गई थीं बड़ी-बड़ी दरारें बता दें कि लगभग 147 वर्ष पहले अंग्रेजों के शासन में बनवाए गए पुराने गंगापुल की कई कोठियों में बीते साल बड़ी-बड़ी दरारें पड़ गई थी। पीडब्ल्यूडी के अधिकारियों ने तत्कालीन जिलाधिकारी को पुल की कोठियों में दरारों की जांच करने के बाद रिपोर्ट दी थी कि अब यह पुल वाहनों के आवागमन के योग्य नहीं बचा है। काफी जर्जर हालत में पहुंच चुका था।
वर्ष-2021 में पूरी तरह कर दिया गया था बंद जिस पर कानपुर के तत्कालीन जिलाधिकारी आलोक तिवारी ने इसे बंद करा दिया था। 5 अप्रैल 2021 को इस पुल को पूरी तरह से बंद कर दिया गया। पुल के शुक्लागंज छोर और कानपुर छोर पर 5-5 फीट ऊंची पक्की दीवारें बनवा दी गई थी।
काफी समय तक साइकिल सवार व पैदल राहगीर पैदल पुल से आवागमन करते रहे। पुल की कोठी का बड़ा हिस्सा गिरने के बाद पैदल पुल से भी आवागमन बंद कर दिया गया है।
मेन्टीनेंस ही नहीं होता रहा इंजीनियरिंग का साफ नियम है कि लोहे का मेन्टीनेंस हर साल होना चाहिए अन्यथा यह धीरे-धीरे जंग की वजह से मजबूती खोने लगता है। पुल पर 27 फुलगेज पिलर ब्रिक्स बनाए गए थे। ब्रिक्स की जिंदगी 100 साल मानी जाती है। पड़ताल में सामने आया कि पुल की रोड बनाने का काम 2013 में पीडब्ल्यूडी ने किया था इसके बाद कभी देखा तक नहीं।
कानपुर से शुक्लागंज को जोड़ने के लिए अहम इस पुल से रोजाना करीब 22 हजार चौपहिया-दोपहिया समेत 1.25 लाख लोग रोज गुजते थे। पुल से 12 मीटर चौड़ाई और लंबाई टेल से टेल तक 1.38 किलोमीटर के करीब थी। कानपुर और शुक्लागंज को जोड़ने के लिए ये अहम ब्रिज था।
ईस्ट इंडिया के इंजीनियरों ने किया था तैयार अंग्रेजों ने कानपुर को उन्नाव-लखनऊ से जोड़ने के लिए 1875 में पुल का निर्माण कराया था। निर्माण ईस्ट इंडिया के इंजीनियरों ने कराया था। इससे बनाने में सात साल चार महीने लगे थे।
मैस्कर घाट पर प्लांट लगाया गया था। अंग्रेजों ने यातायात के लिए पुल का निर्माण कराया था जबकि इसी पुल के करीब ही ट्रेनों के संचालन के लिए 1910 में रेलवे ब्रिज बनवाया था।