डॉक्टर के लिए लड़की देख रही थी मां…पिता शव लाए:बेसुध होकर बोलीं.. क्या कहूं, कन्रौज हादसे में मारे गए तीन डॉक्टरों के घर से रिपोर्ट

कन्नौज में बुधवार तड़के सड़क हादसे में सैफई मेडिकल कॉलेज के 3 डॉक्टर, एक लैब टेक्नीशियन और एक क्लर्क की मौत हो गई। हादसा लखनऊ-आगरा एक्सप्रेस-वे पर बुधवार तड़के 3.30 बजे हुआ। शाम को शव घर पहुंचे तो कोहराम मच गया। किसी की दो महीने बाद शादी होनी थी, तो किसी के लिए परिवार वालों ने लड़की देख रखी थी। घर की खुशियां पल भर में गम में बदल गईं। परिजनों को ढांढस बंधाने की कोई भी हिम्मत नहीं जुटा पा रहा था।

दैनिक भास्कर की टीम आगरा में डॉक्टर अनिरुद्ध, बरेली में डॉक्टर नरेंद्र गंगवार, कन्नौज में डॉक्टर अरुण कुमार के घर पहुची।

अनिरुद्ध का शव देख मां बेसुध, कहा- अपना ध्यान ही नहीं रखता

डॉक्टर अनिरुद्ध वर्मा आगरा के कमला नगर राधिका विहार के रहने वाले थे। उनके पिता डॉ. पवन वर्मा फिरोजाबाद में डिप्टी सीएमओ हैं। छोटा भाई अर्जुन लखनऊ केजीएमयू से बीडीएस कर रहा है। डॉक्टर अनिरुद्ध के पिता पवन वर्मा को सुबह 5 बजे हादसे की सूचना मिली। वो अपनी पत्नी को बिना बताए कन्नौज के लिए रवाना हो गए।

बुधवार रात 7 बजे एम्बुलेंस में बेटे का शव साथ लेकर घर लौटे। जो मां बेटे पर जान छिड़कती थी, वो बेटे के शव को देखकर एकदम खामोश थी। जैसे ही शव घर पहुंचा चीत्कार मच गई। डॉ. अनिरुद्ध की मां डौली अपनी सुध-बुध खो बैठीं। रिश्तेदार और मोहल्ले की महिलाएं उनको दिलासा दे रही थीं तो उनसे कह रही थीं कि चुप रहो, तुम लोग क्यों रो रहे हो। अब रोने से कुछ नहीं होगा।

नानी ने कहा- डौली तू रो क्यों नहीं रही, तेरा बेटा चला गया डॉ. अनिरुद्ध का शव आंगन में रखा था। अंतिम यात्रा की तैयारी चल रही थी। मां के चेहरे पर कोई गम नहीं दिख रहा था। शव अर्थी पर रखा जाने लगा तो अनिरुद्ध की नानी ने अपनी बेटी से कहा- डौली तेरा बेटा जा रहा है, आखिरी बार उसकी शक्ल तो देख ले। लोगों ने चेहरे से कफन हटाया।

मां ने बेटे के चेहरे पर हाथ रखा। चेहरे पर चोट के निशान थे। मां बोली-अब मैं इससे क्या कहूं, अपना ध्यान ही नहीं रखता। देखो आंखों के नीचे कैसे नीले निशान पड़ गए हैं। दूसरों का इलाज करता है, लेकिन अपना ध्यान नहीं रखता। इतना कहकर वो खड़ी हो गईं। नानी ने कहा कि डौली तू रो क्यों नहीं रही, तेरा बेटा चला गया है। अब ये कभी वापस नहीं आएगा।

डिप्टी सीएमओ पिता बोले- कल ही बात हुई थी

डा. अनिरुद्ध के पिता डॉ. पवन वर्मा का कहना था कि बेटा हाथरस के सहपऊ में स्वास्थ्य केंद्र पर तैनात था। सप्ताह में रविवार को घर आता था। कल शाम को बेटे से बात हुई थी। उसने बताया था कि दोस्त की शादी में जा रहा हूं। इसके बाद रात को छोटे बेटे अर्जुन ने उससे बात की थी।

मां कहती थी-इस साल शादी करनी है

डा. अनिरुद्ध के रिश्तेदार ने बताया-परिवार में सब कुछ अच्छा चल रहा था। सब लोग खुश थे। 5 महीने पहले ही अनिरुद्ध ने स्कार्पियो कार खरीदी थी। माता-पिता बेटे की शादी की तैयारी कर रहे थे। लड़की देखने जाने वाली थीं। मगर, मां के अरमान अधूरे रह गए। रात करीब 8 बजे आगरा के ताजगंज शमशान घाट में डॉ. अनिरुद्ध का अंतिम संस्कार हुआ। बेटे की मौत पर पिता टूट गए।

डा. अरुण के भाई बोले-भइया ने कहा था घबरान मत

डॉक्टर अरुण कुमार कन्नौज के मोचीपुर गांव के मूल निवासी थे। उनके पिता अंगदलाल खेतीबाड़ी करते हैं। उन्होंने किसी तरह गरीबी में बेटे को पढ़ा लिखाकर डॉक्टर बनाया। दैनिक भास्कर टीम ने उनके छोटे भाई बलराम से बातचीत की। बलराम ने बीटेक किया है। नौकरी की तलाश कर रहे हैं। ऐसे में भाई अरुण कुमार के कंधे पर परिवार की जिम्मेदारी थी। बलराम ने एक प्राइवेट कम्पनी में जॉब के लिए अप्लाई किया था। जहां से इंटरव्यू के लिए बुलावा आया था।

कम्पनी में इंटरव्यू के लिए जाने से पहले बलराम ने बड़े भाई अरुण से दो दिन पहले फोन पर बात की। उन्होंने मनोबल बढ़ाते हुए कहा था कि इंटरव्यू आराम से देना। हड़बड़ाना नहीं। सब ठीक होगा। अभी रिजल्ट नहीं आया, लेकिन भाई की मौत की सूचना आ गई। जिसने पूरे परिवार को हिला दिया।

डॉक्टर नारदेव गंगवार के पिता बोले- ढाई महीने बाद शादी होनी थी

बरेली के नवाबगंज में रहने वाले डॉक्टर नारदेव गंगवार परिवार में सबसे छोटे थे। कानपुर से एमबीबीएस की पढ़ाई करने के बाद सैफई मेडिकल कॉलेज से पीजी कर रहे थे। मां-बाप की आंखों के तारे थे। पिता राम लखन गंगवार यूपी पुलिस में कॉन्स्टेबल थे। उनकी हसरत थी कि बेटा बड़ा डॉक्टर बने। इसलिए पिता ने अपने बेटे को खूब पढ़ाया लिखाया। बेटा जब डॉक्टर बन गया, तो फिर घर में खुशियां ही खुशियां थीं।

पिता राम लखन गंगवार ने बताया-नरेंद्र की दो ढाई महीने बाद शादी होनी थी। सब कुछ बहुत अच्छा चल रहा था। घर में शादी की तैयारियां चल रही थीं। लेकिन,अरमानों पर पानी फिर गया। कुछ नहीं बचा, जवान बेटे की मौत ने बुढ़ापे की लाठी छीन ली। नरेंद्र चारों भाई-बहनों में सबसे छोटा था।

भदोही के लैब टेक्नीशियन संतोष की भी गई थी जान

भदोही के राजपुरा फेज 3 निवासी संतोष कुमार मौर्य सैफई मेडिकल कॉलेज में लैब टेक्नीशियन के पद पर तैनात थे। संतोष कुमार मौर्य दो भाइयों में सबसे बड़े थे। उनका छोटा भाई सुजीत दुबई में इंजीनियर है। संतोष को तीन बहनें हैं, जिनकी शादी हो चुकी है। संतोष के पिता डॉक्टर जीत नारायण मौर्य भदोही में आई स्पेशलिस्ट हैं।

बिजनौर के क्लर्क राकेश की भी हादसे में हुई थी मौत

बिजनौर के राकेश कुमार कोतवाली देहात थाना क्षेत्र के ग्राम जीवनपुर के निवासी थे। राकेश कुमार सैफई मेडिकल कॉलेज में क्लर्क के पद पर तैनात थे। राकेश कुमार की मौत की सूचना पर उनके भाई राजकुमार मौके पर पहुंचे। वह भी सैफई मेडिकल कालेज में क्लर्क के पद पर तैनात हैं। ग्रामीणों ने बताया अभी राकेश कुमार की मौत की सूचना उनके माता-पिता को नहीं दी है।

राकेश कुमार चार भाई और एक बहन है। राकेश कुमार करीब 10 साल से ज्यादा समय से लैब टेक्नीशियन के पद पर तैनात थे। दोनों भाई परिवार सहित सफाई में ही सेटल है, जबकि तीसरे नंबर के भाई भूपेंद्र कुमार उत्तराखंड के ऋषिकेश एम्स में संविदा पर कार्यरत हैं। चौथा भाई दीपू जो कि उत्तराखंड के चिड़ियपुर में वन विभाग में संविदा कर्मचारी है।