* डॉ. अम्बेडकर एक सच्चे देशभक्त, राष्ट्रवादी व संविधान निर्माता थे – प्रोफेसर सुमन
* डॉ. अम्बेडकर को डीयू पाठ्यक्रम में मुख्य विषय के रूप में पढ़ाया जाए व उनके लेखन पर शोध अध्ययन हो।
फोरम ऑफ एकेडेमिक्स फॉर सोशल जस्टिस के तत्वावधान में दिल्ली विश्वविद्यालय की उत्तरी परिसर के कला संकाय में शुक्रवार को भारत रत्न बाबा साहेब डॉ. भीमराव अम्बेडकर के 68 वें महापरिनिर्वाण दिवस के अवसर पर उनके चित्र पर पुष्पांजलि अर्पित कर भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित की गई तथा उनके सामाजिक एवं राजनीतिक कार्यों का स्मरण किया गया। बाबा साहेब के 68 वें महापरिनिर्वाण दिवस पर उनकी स्मृति में एक दिवसीय संगोष्ठी का आयोजन किया गया। कार्यक्रम की अध्यक्षता आर्यभट्ट कॉलेज में प्रोफेसर के.पी. सिंह ने की। इस अवसर पर मुख्य वक्ता फोरम के चेयरमैन प्रोफेसर हंसराज सुमन व मंच संचालन आर.के.सरोज ने किया। कार्यक्रम में डॉ. प्रीतम सिंह, डॉ. सुरेंद्र सिंह, श्री अविनाश, श्री राज कुमार आदि छात्रों के अलावा बहुत से शोधार्थी भी उपस्थित थे।
संगोष्ठी के मुख्य वक्ता प्रोफेसर हंसराज सुमन ने अपने सम्बोधन में कहा कि बाबा साहेब डॉ. भीमराव अंबेडकर एक सच्चे देशभक्त, राष्ट्रवादी व संविधान निर्माता थे। डॉ.अम्बेडकर न केवल विधि विशेषज्ञ थे बल्कि अर्थशास्त्री, साहित्यकार, पत्रकार, राजनीतिज्ञ विशेषज्ञ, समाजशास्त्री एवं युग दृष्टा थे। उन्होंने बताया कि कोई भी ऐसा क्षेत्र नहीं जिसमें उनका योगदान न रहा हो। वे मात्र संविधान निर्माता ही नहीं थे बल्कि राष्ट्र निर्माता भी थे। राष्ट्र के निर्माण में किए गए उनके कार्यो के मार्ग दर्शन में देश आज भी विकास कर रहा है। उन्होंने कहा कि बाबा साहेब अम्बेडकर ऐसे इकलौते महान नायक हैं जिनकी जन्मस्थली पर लाखों लोग शीश झुकाने और वहाँ की पवित्र धूल को माथे लगाने के लिए जाते हैं। उन्होंने बताया कि रिजर्व बैंक का पूरा विधान और संरचना बाबा साहेब के सपनों की ही एक निर्मिति है। उन्होंने यह भी कहा कि वे किसी एक वर्ग के नेता नहीं थे बल्कि सम्पूर्ण विश्व के नेता थे, इसीलिए उन्हें ज्ञान का प्रतीक कहा जाता है । उन्होंने बताया कि डॉ.अंबेडकर की जयंती व महापरिनिर्वाण दिवस भारत से बाहर विदेशों में भी उनके अनुयायी स्मरण दिवस के रूप में मनाते है।
प्रोफेसर हंसराज सुमन ने आगे अपने उद्बोधन में सामाजिक समरसता के लिए जीवन समर्पित करने वाले बाबा साहेब डॉ. भीमराव अम्बेडकर के जीवन संघर्षों एवं उनके द्वारा हासिल उपलब्धियों पर प्रकाश डालते हुए कहा कि आज दुनिया के लगभग 150 से अधिक देशों में बाबा साहेब के महापरिनिर्वाण दिवस पर उन्हें स्मरण किया जाता है। यही नहीं बल्कि दुनिया के सर्वाधिक शक्तिशाली समझे जाने वाले राष्ट्र अमेरिका और योरोप के कई देशों में उनके अध्ययन से संबंधित पीठ की स्थापनाएं की गई हैं। उन्होंने यह भी कहा कि पिछड़े वर्ग के लिए उन्होंने जितना संघर्ष किया उसकी एवज में उस समाज को भी उतना ही प्रयास करना चाहिए अन्यथा पिछड़ापान अधिक बढ़ेगा। हमें बढ़-चढ़ कर उनके विचारों पर अमल करना चाहिए। उन्होंने चर्चा के दौरान आगे कहा कि वे एक जागरूक व्यक्ति थे, वह भारतीय समाज को बहुत आगे ले जाना चाहते थे ।
प्रोफेसर सुमन ने बताया कि बाबा साहेब रात-रातभर जागकर दलितों, अछूतों व पिछड़ों के उद्धार के लिए कार्य करते थे। वे कहते थे कि जब तक मेरा समाज नहीं जागेगा मैं नहीं सो सकता। उन्होंने आगे बताया कि असल में बाबा साहेब के सपनों का भारत एक सार्थक दिशा तय कर चुका है किंतु अभी भी बहुत कुछ बाकी है। उन्होंने कहा कि सबसे महत्त्वपूर्ण बात तब होगी जब दलित वर्ग स्वयं अपने उत्थान हेतु बाबा साहेब के बताए हुए मार्ग पर आगे बढ़ेगा, तभी उनके सपनों का समाज और राष्ट्र दोनों निर्मित हो सकेंगे।
कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे प्रोफेसर के.पी. सिंह ने कहा कि बाबा साहेब को किसी एक क्षेत्र में सीमित करके नहीं देखा जा सकता है बल्कि वे बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे। उनके प्रति सच्ची श्रद्धांजलि तभी होगी जब हम सभी देशवासी उनके बताए हुए रास्ते पर चलें। उन्होंने कहा कि देश की सरकारों ने बाबा साहेब के सम्मान के लिए अनेक कार्य किए हैं जिसमें पूरे देश के गरीबों, पिछड़ों के लिए कार्य योजनाएँ बनाई गई हैं और ऐसे में जहाँ बाबा साहेब का महत्व बढ़ रहा है वहीं देश के कल्याण की दिशा भी स्पष्ट हो रही है । प्रोफेसर सिंह ने कहा कि दिल्ली विश्वविद्यालय के पाठ्यक्रम में बाबा साहेब को मुख्य विषय के रूप में पढ़ाया जाना चाहिए, यहाँ उनके नाम पर चेयर बने व उनके नाम पर अम्बेडकर भवन तथा शोध अध्ययन केंद्र खोलने के लिए विश्वविद्यालय कुलपति से मांग की जा रही है कि अन्य आधुनिक चिंतकों की भांति डॉ.अम्बेडकर के सामाजिक कार्यों और लेखन कार्यों पर भी शोध-कार्य होना चाहिए। कार्यक्रम के अंत में श्री राजकुमार ने डॉ. अम्बेडकर से संबंधित एक गीत गाया, इस संगोष्ठी को सफल बनाने में श्री प्रसून, श्री प्रदीप कुमार, प्रीतम सिंह, सुरेन्द्र सिंह व घनश्याम भारती आदि छात्रों की महत्वपूर्ण भूमिका रही।
डॉ. हंसराज सुमन