थर्ड जेंडर को पाठ्यक्रम में शामिल करना चाहिए — प्रो.सुमन
शिक्षा के क्षेत्र में समावेशिता को बढ़ावा देने और थर्ड जेंडर के मुद्दों पर जागरूकता फैलाने के उद्देश्य से मंगलवार को कड़कड़डूमा में स्थित डिस्ट्रिक्ट इंस्टीट्यूट ऑफ एजुकेशन एंड ट्रेनिंग (DIET) में एक दिवसीय कार्यशाला का आयोजन किया गया। प्रशिक्षुओं के लिए थर्ड जेंडर पर मॉड्यूल विकास विषय पर आयोजित इस कार्यशाला में शिक्षा जगत के जाने-माने विद्वानों और विशेषज्ञों ने भाग लिया। इस कार्यशाला में दिल्ली के विभिन्न संस्थानों से शिक्षकों ने भाग लिया । कार्यशाला का शुभारंभ संस्थान के प्राचार्य और परियोजना समन्वयक डॉ. पवन कुमार ने अपने स्वागत भाषण में कहा कि शिक्षा का उद्देश्य केवल ज्ञान देना नहीं है बल्कि एक ऐसी पीढ़ी तैयार करना है जो सभी के लिए समानता और सम्मान के मूल्यों को आत्मसात करे। थर्ड जेंडर के प्रति संवेदनशीलता विकसित करना, समाज को अधिक समावेशी बनाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम बताया ।
मुख्य वक्ता के रूप में दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रोफेसर हंसराज सुमन ने थर्ड जेंडर और उनके विकास पर चर्चा करते हुए कहा कि भाषा और साहित्य समाज में बदलाव का सशक्त माध्यम हैं। इसके माध्यम से ही समाज में सकारात्मक बदलाव की ओर बढ़ा जा सकता है । उन्होंने उदाहरण देते हुए बताया कि हिंदी साहित्य में विभिन्न कहानियों और कविताओं के माध्यम से हमेशा से मानवीय संवेदनाओं को उकेरा गया है । उन्होंने कहा कि हमें अपने साहित्य और पाठ्यक्रम में थर्ड जेंडर की उपस्थिति को शामिल करना चाहिए ताकि भविष्य की पीढ़ियां उनके संघर्षों और योगदानों से परिचित हो सकें। साहित्य के माध्यम से हम समाज में संवेदनशीलता और स्वीकृति का माहौल तैयार कर सकते हैं। । प्रो.सुमन ने यह भी सुझाव दिया कि शिक्षकों को कक्षाओं में ऐसे उदाहरण प्रस्तुत करने चाहिए जो थर्ड जेंडर के योगदान को रेखांकित करते हों। उन्होंने कहा कि थर्ड जेंडर को पाठ्यक्रम में शामिल करना चाहिए ताकि समाज उनके विषय में जाने । यह पहल न केवल विद्यार्थियों को जागरूक बनाएगी बल्कि समाज में सकारात्मक बदलाव लाने में भी सहायक होगी। प्रो.सुमन ने आगे कहा कि समाज में सामाजिक परिवर्तन के लिए पाकिस्तानी फ़िल्म “बोल ” थर्ड जेंडर के लिए एक सही दिशा देने का कार्य किया है । इस फ़िल्म में सामाजिक व पारिवारिक परिवेश में थर्ड जेंडर की स्थिति को भावनात्मक ढंग से दर्शाया गया है ।
विशिष्ट वक्ता के रूप में इंद्रप्रस्थ कॉलेज में सहायक प्रोफेसर डॉ. जे.पी. सिंह ने शिक्षा में थर्ड जेंडर की अनुपस्थिति को समाज में व्याप्त पूर्वाग्रहों का परिणाम बताया। उन्होंने कहा कि, थर्ड जेंडर समुदाय की समस्याएं समाज के दकियानूसी विचारों और भेदभाव से जुड़ी हैं। शिक्षा के माध्यम से इन पूर्वाग्रहों को समाप्त किया जा सकता है। यह कार्यशाला थर्ड जेंडर के प्रति प्रशिक्षुओं को संवेदनशील बनाने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगी। डॉ. सिंह ने थर्ड जेंडर बच्चों की शिक्षा को लेकर चुनौतियों का उल्लेख किया और सुझाव दिया कि उन्हें शिक्षा में समान अवसर प्रदान करने के लिए स्कूलों और शिक्षण संस्थानों में विशेष प्रयास किए जाने चाहिए। उन्होंने कहा कि समाज की मुख्यधारा में थर्ड जेंडर को स्थान देने के लिए शिक्षक महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं। यह कार्यशाला इस दिशा में एक बड़ा कदम है।
शिक्षा निदेशालय से सेवानिवृत्त शिक्षक श्री राजपाल सिंह ने कार्यशाला में अपने लंबे शिक्षण अनुभवों को साझा करते हुए कहा कि शिक्षा एक ऐसा माध्यम है जो समाज की सोच को बदल सकता है। थर्ड जेंडर को शिक्षा प्रणाली में उचित स्थान दिए बिना समावेशी समाज की कल्पना नहीं की जा सकती।
उन्होंने सुझाव दिया कि प्रशिक्षकों को थर्ड जेंडर के छात्रों के साथ संवेदनशीलता और सम्मान के साथ व्यवहार करने के लिए प्रशिक्षित किया जाना चाहिए। उन्होंने यह भी कहा कि शिक्षा में समावेशिता से समाज में असमानता और भेदभाव को समाप्त किया जा सकता है। प्रशिक्षुओं के लिए विकसित किया गया यह मॉड्यूल उनकी भूमिका को प्रभावी बनाने में सहायक होगा।
दामिनी एनजीओ के निदेशक व विशिष्ट अतिथि
डॉ. प्रमोद कुमार ने समाज में थर्ड जेंडर समुदाय की दुर्दशा और उनके संघर्षों पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि थर्ड जेंडर समुदाय अभी भी शिक्षा, रोजगार और सामाजिक स्वीकृति में काफी पिछड़ा हुआ है। उन्हें समाज में उचित सम्मान और अधिकार देने के लिए ऐसे कार्यक्रम बेहद जरूरी हैं । उन्होंने यह भी कहा कि तृतीय लिंग समुदाय के प्रति जागरूकता बढ़ाने के लिए शिक्षकों को उनकी सामाजिक और आर्थिक परिस्थितियों को समझने की आवश्यकता है । उन्होंने कहा इस कार्यशाला जैसे प्रयास शिक्षकों और छात्रों को संवेदनशील बनाने के साथ-साथ समाज में समावेशिता की दिशा में बड़ा बदलाव ला सकते हैं।
कार्यशाला समन्वयक डॉ. राघव आचार्य ने मॉड्यूल निर्माण की प्रक्रिया और इसके महत्व पर विस्तार से चर्चा की । उन्होंने कहा कि यह मॉड्यूल न केवल प्रशिक्षुओं को शिक्षण में सहायता प्रदान करेगा, बल्कि उन्हें थर्ड जेंडर छात्रों के प्रति संवेदनशीलता विकसित करने में भी मदद करेगा। उन्होंने मॉड्यूल में शामिल की जाने वाली प्रमुख गतिविधियों और अध्ययन सामग्रियों के बारे में बताया। उन्होंने कहा कि यह मॉड्यूल शिक्षकों को समावेशी शिक्षण पद्धतियों का उपयोग करने के लिए प्रेरित करेगा और समाज में सकारात्मक परिवर्तन लाने में मदद करेगा। संस्थान के सहायक समन्वयक डॉ. बिनोद कुमार ने मॉड्यूल के संभावित प्रभावों पर चर्चा की। उन्होंने कहा कि, इस मॉड्यूल के माध्यम से न केवल प्रशिक्षुओं को समावेशी शिक्षा के लिए तैयार किया जाएगा, बल्कि यह थर्ड जेंडर समुदाय के लिए समान अवसर और स्वीकृति सुनिश्चित करने का एक सशक्त माध्यम भी बनेगा।
उन्होंने यह भी कहा कि शिक्षा क्षेत्र में इस प्रकार के प्रयास समाज में व्याप्त असमानता और भेदभाव को समाप्त करने में सहायक हो सकते हैं। यह पहल समाज के प्रत्येक वर्ग के लिए समानता और सम्मान की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। कार्यशाला के दौरान, मॉड्यूल निर्माण के विभिन्न पहलुओं पर गहन चर्चा की गई। इसमें प्रशिक्षुओं के लिए व्यावहारिक उदाहरण और केस स्टडी पर आधारित गतिविधियों को शामिल करने पर जोर दिया गया। मॉड्यूल में ऐसी रणनीतियां तैयार की जा रही हैं, जो थर्ड जेंडर के प्रति संवेदनशीलता और जागरूकता को बढ़ावा दें। कार्यशाला का समापन सामुहिक चर्चा के साथ हुआ, जहां सभी प्रतिभागियों ने अपने विचार साझा किए और मॉड्यूल निर्माण में महत्वपूर्ण योगदान दिया ।
अंतिम सत्र में प्रोफेसर हंसराज सुमन ने इस कार्यशाला में कहा कि फिल्मों के माध्यम से थर्ड जेंडर पर यह कार्यशाला शिक्षा के क्षेत्र में एक नए युग की शुरुआत की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम साबित होगी । यह न केवल थर्ड जेंडर के अधिकारों और उनकी समस्याओं को समझने का अवसर प्रदान करती है, बल्कि उन्हें शिक्षा की मुख्यधारा में शामिल करने का मार्ग भी प्रशस्त करती है। कार्यक्रम के अंत में, डॉ. पवन कुमार ने सभी वक्ताओं और प्रतिभागियों का धन्यवाद देते हुए कहा कि यह कार्यशाला केवल एक शुरुआत है। थर्ड जेंडर के लिए समानता और सम्मान के साथ एक समावेशी समाज बनाने का हमारा सपना तभी पूरा होगा, जब हम सभी अपने-अपने स्तर पर इस दिशा में योगदान देंगे। इस कार्यशाला ने शिक्षा और समाज में समावेशिता और समानता के नए आयाम स्थापित करने की नींव रखी।
डॉ.पवन कुमार