फोरम ने विश्व हिंदी दिवस को एकता और सांस्कृतिक गौरव की वैश्विक आवाज के रूप में मनाया ।

* विश्व पटल पर हिंदी की स्थिति निरंतर बेहतर हो रही है ।

* राष्ट्रीय शिक्षा नीति के तहत हिंदी को रोजगार से जोड़ने की आवश्यकता है — डॉ .सुमन

विश्व हिंदी दिवस के उपलक्ष्य में फोरम ऑफ एकेडेमिक्स फॉर सोशल जस्टिस ( दिल्ली विश्वविद्यालय ) के तत्वावधान में शुक्रवार को दिल्ली विश्वविद्यालय के कला संकाय , उत्तरी परिसर में आयोजित एक कार्यक्रम ” एकता और सांस्कृतिक गौरव की वैश्विक आवाज ” विषय पर परिचर्चा का आयोजन किया गया । जिसका उद्देश्य भाषाई और अंतर्राष्ट्रीय आदान -प्रदान के लिए हिंदी भाषा के उपयोग को बढ़ावा देना है । परिचर्चा में हिंदी की भारत में स्थिति तथा विश्व में उसकी बढ़ रही संभावनाओं पर विस्तार से चर्चा की गई । चर्चा के दौरान यह बात सामने आई कि आज हिंदी बाजार की भाषा बनती जा रही है ,जो कि हिंदी के भविष्य के लिए एक सुखद संकेत हैं । परिचर्चा में मुख्य वक्ता फोरम के चेयरमैन डॉ. हंसराज सुमन , कार्यक्रम की अध्यक्षता प्रोफेसर के.पी.सिंह ने की व विषय परिवर्तन प्रो.मनोज कुमार कैन ने किया । परिचर्चा में शिक्षकों व शोधार्थियों के अलावा कु. पल्लवी प्रियदर्शिनी , श्री राजकुमार सरोज , डॉ.सुरेंद्र सिंह , श्री अविनाश बनर्जी आदि ने भी भाग लिया । कार्यक्रम का संचालन श्री घनश्याम भारती ने किया ।

कार्यक्रम से पूर्व यह बताया गया कि हिंदी के विश्व में प्रचार प्रसार के लिए आज ही के दिन 10 जनवरी को विश्व हिंदी दिवस मनाया जाता है । पहली बार 10 जनवरी 1975 में नागपुर में पहला विश्व हिंदी सम्मेलन आयोजित किया गया था तब से इस तारीख को विश्व हिंदी दिवस को मनाने की परम्परा शुरू हो गई । इस दिन दुनियाभर में भारतीय दूतावासों में विशेष कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं जिससे हिंदी के प्रति जागरूकता बढ़ाने और इसे प्रोत्साहित करने के लिए व्याख्यान , प्रतियोगिताएं और सांस्कृतिक कार्यक्रम शामिल होते हैं । इन कार्यक्रमों के माध्यम से ही हिंदी का प्रचार-प्रसार बढ़ता है ।

परिचर्चा में आए हिंदी प्रेमियों को संबोधित करते हुए मुख्य वक्ता अरबिंदो कॉलेज ,हिंदी विभाग में एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. हंसराज सुमन ने कहा कि हिंदी आज विश्व बाजार की भाषा बनती जा रही है, दुनिया के विभिन्न विश्वविद्यालयों में खासतौर से विश्व शक्ति अमेरिका में लगभग 100 से अधिक विश्वविद्यालयों में हिंदी एक विषय के रूप में पढ़ाई जाती है । वैश्विक स्तर पर हिंदी की बढ़ती ताकत का सबसे बड़ा सकारात्मक पक्ष यही है कि आज विश्वभर में करोड़ों लोग हिंदी बोलते हैं और दुनियाभर के सैंकड़ों विश्वविद्यालयों में हिंदी पढ़ाई जाती है । उन्होंने बताया कि अब हिंदी भारत से बाहर भी मान्यता प्राप्त कर रही हैं। वह दिन दूर नहीं जब संयुक्त राष्ट्र द्वारा हिंदी को भी संयुक्त राष्ट्र की भाषा मान लिया जायेगा, हिंदी अभी वहां संघर्षरत है जबकि अंग्रेजी चीनी जैसी भाषाएं संयुक्त राष्ट्र की भाषा बन चुकी है । डॉ. सुमन ने बताया है कि भारत में आज बड़े पैमाने पर विदेशी छात्र सिर्फ हिंदी सीखने के लिए आ रहे हैं, भारत की कंपनियों में विदेशों में काम कर रहे हैं साथ ही भारतीय संस्कृति को समझने और आत्मसात करने के लिए हिंदी को ही वे भारत की राष्ट्रभाषा मानते हैं। अब हिंदी उपेक्षा की शिकार नहीं बल्कि अपने गौरवशाली भविष्य की राह पर है ।

डॉ. सुमन ने आगे कहा कि विश्व स्तर पर भारत के बाजार को ले जाना हो तो हिंदी में विदेशी साहित्य का व्यापक पैमाने पर अनुवाद कार्य, फिल्मों की डबिंग, पाठ्यक्रमों में हिंदी को पहुंचाना आदि ऐसे कार्य है जिसके माध्यम से भारतीयता को विदेशों में आसानी से स्थापित किया जा सकता है और भारत में भी इन कार्यो के द्वारा अनेकानेक रोजगार के अवसरों का निर्माण होगा इसलिए आज जरूरत अकादमिक संस्थानों में भाषा स्तर पर तुलनात्मक अध्ययन के विभाग बनाये जाए। आज देश में भाषा को लेकर तुलनात्मक अध्ययन को लेकर एक भी विभाग नहीं है, विदेशी भाषा ही नहीं अपनी देश की तमाम भाषाओं के तुलनात्मक अध्ययन के विभाग बमुश्किल देखने को मिलेंगे ।आज भाषाओं के बीच आदान प्रदान होना आवश्यक है, राष्ट्रीय एकता को मजबूत करने के लिए भाषाओं का आपसी मेल-मिलाप अति आवश्यक है । डॉ. सुमन ने सरकार से मांग की है कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति के तहत विश्वविद्यालयों और महाविद्यालयों में विदेशी भाषाओं का तुलनात्मक अध्ययन करने के विभाग की स्थापना हो और देश -विदेश की भाषाओं पर शोध कार्य हो । उन्होंने यह भी मांग की है कि हिंदी को रोजगार से जोड़ने के लिए पाठ्यक्रमों में अनुवाद , पत्रकारिता , रेडियो जॉकी , अभिनय , फिल्म , सोशल मीडिया , नाटक व रंगमंच आदि विषयों को पढ़ाया जाए ताकि रोजगार के ज्यादा से ज्यादा अवसर पैदा हो सकें ।

विषय परिवर्तन करते हुए प्रो.मनोज कुमार कैन ने कहा कि हिंदी के प्रचार -प्रसार में हिंदी फिल्मों का महत्वपूर्ण योगदान रहा है । फिल्मों के माध्यम से हिंदी को बढ़ावा मिला है और विदेशी छात्रों में हिंदी पढ़ने के प्रति रूचि बढ़ी है । उन्होंने बताया कि हमारी भारतीय फिल्मों ने पाकिस्तान , चीन , श्रीलंका , रूस , अमेरिका , इंग्लैंडव सऊदी अरब में अपनी धाक जमा रही है । हिंदी भाषा ही नहीं बल्कि भारतीय संस्कृति , धर्म , रीति रिवाज , लोकव्यवहार को भी समझने में सहायक है । उन्होंने हिंदी को दुनियाभर में सर्वाधिक बोली जाने वाली तीसरी भाषा बताया और कहा कि विश्व में पचहत्तर करोड़ से ज्यादा लोग हिंदी बोलते हैं । प्रो.कैन ने बताया है कि कोरोना के बाद हिंदी अखबारों की वेबसाइटों में करोड़ों नए हिंदी पाठकों को अपने साथ जोड़कर हिंदी को और समृद्ध तथा जन- जन की भाषा बनाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है ।

कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे प्रो. के .पी.सिंह ने अपने संबोधन में बताया कि यदि भारत का आत्मीय संबंध अन्य देशों के साथ बढ़ाना है तो हिंदी ही एक मात्र उसकी वाहक हो सकती है और विदेशी लोगों के व्यवहार और उनके तौर तरीकों को समझने के लिए विदेशों में हिंदी का विस्तार बहुत आवश्यक है। उन्होंने बताया कि जब से स्मार्टफोन आए हैं इंटरनेट पर भी हिंदी का चलन दिनों दिन तेजी से बढ़ रहा है और दुनिया के सबसे बड़े सर्चइंजन गूगल द्वारा अंग्रेजी को महत्व दिया जाता था वहीं अब गूगल द्वारा भारत में हिंदी तथा कुछ क्षेत्रीय भाषाओं की सामग्री को भी बढ़ावा दिया जा रहा है । उन्होंने यह भी बताया कि डिजिटल माध्यम से हिंदी समाचार पढ़ने वालों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है ।

परिचर्चा में हिंदी के शोधार्थियों ने अनेक सवाल-जवाब किए और कहा कि भारत की संस्कृति को यदि सही से जानना है तो हिंदी को जानना जरूरी है। साथ ही हिंदी में रोजगार के अवसरों की चर्चा की गई । अधिकांश शोधार्थियों का कहना था कि हिंदी को जब तक रोजगार से जोड़कर पाठ्यक्रमों में शामिल नहीं किया जाता तब तक हिंदी शोधार्थी की रुचि हिंदी के प्रति नहीं होगी । कार्यक्रम में कु.पल्लवी प्रियदर्शिनी , डॉ.सुरेंद्र सिंह , श्री राजकुमार सरोज व श्री अविनाश बनर्जी ने अपने विचार रखे और हिंदी को विश्व पटल पर हिंदी की स्थिति को सामने रखा । अंत में सभी का धन्यवाद अविनाश बनर्जी ने किया और कहा कि इस तरह के कार्यक्रम हमें भारतीय संस्कृति व भाषा से जोड़ते है ।

डॉ. हंसराज सुमन