World Sparrow Day 2021: सभ्यता के विकास के साथ मनुष्यों की उत्पत्ति की सहचरी रही गौरैया के लिए लॉकडाउन ने देश की राजधानी दिल्ली में मुफीद माहौल उपलब्ध कराया है। ऐसे में दिल्ली की राज्य पक्षी गौरैया की चहचहाहट बढ़ी है। यमुना के तराई वाले इलाकों के साथ अब शहरी क्षेत्रों में इसकी चहचहाहट सुनाई देने लगी है, जबकि हाल के वर्षों तक ऐसे क्षेत्रों से भी यह करीब करीब विलुप्त हो गई थी।
पर्यावरण से जुड़े विशेषज्ञ कहते हैं कि लॉकडाउन के दौरान वापस आया प्राकृतिक स्वरूप इसकी खास वजह है। यही वजह है कि गत साल लॉकडाउन में मई-जून माह में पहले की तुलना में यह बहुतायत में दिखाई देने लगीं।
दरअसल, राजधानी दिल्ली में आवासीय ह्रास के चलते विलुप्त होती जा रही इस पक्षी को लाकडान के दौरान बेहतर माहौल मिला तो इसके प्रजनन दर में बढ़ोतरी हुई। यही वजह है कि चार दिन पूर्व भी यमुना बायोडायवर्सिटी पार्क में एक साथ 80 गौरैया का झुंड देखने को मिला।
पर्यावरणविद कृषि व पर्यावरण संतुलन के लिहाज से इसे एक सुखद संकेत मान रहे हैं और चाहते हैं कि लोग गौरैया के संरक्षण के प्रति जागरूक होकर उचित वातावरण तैयार करने में मददगार बनें।
यमुना बायोडायवर्सिटी पार्क के प्रभारी विज्ञानी डॉ. फैयाज खुदसर बताते हैं कि बढ़ते ध्वनि व वायु प्रदूषण के साथ कंक्रीट की ऊंची इमारतों ने दिल्ली जैसे शहरों में गौरैया के प्राकृतिक पर्यावास को छीन लिया और समय के साथ यह पक्षी दुर्लभ होती चली गई, लेकिन लाकडाउन की अवधि इसके लिए एक तरह से वरदान साबित हुई और इसकी संख्या में इजाफा हुई। अभी हाल में ही राजधानी दिल्ली के बायोडायवर्सिटी पार्कों में पक्षियों की गणना हुई तो उसमें पिछले सालों की तुलना में गौरैया की संख्या में संतोषजनक वृद्धि देखी गई।
यहां पर बता दें कि दिल्ली सरकार ने वर्ष 2102 में गौरैया चिड़िया को राज्य पक्षी घोषित किया था, साथ ही 15 अगस्त 2012 को राज्य सरकार ने गौरैया के संरक्षण के लिए अभियान चलाने का निर्णय भी लिया था। चिड़िया गौरैया को दिल्ली का राज्य पक्षी घोषित करने का उद्देश्य उसके अस्तित्व को बचाना है। गौरैया के संरक्षण के लिए मुंबई की संस्था नेचर फॉरएवर सोसायटी द्वारा दिल्ली सरकार को विशेषज्ञता और डेटा उपलब्ध कराती है। वीहं, दिल्ली के निवासी आम बोली में गौरैया को चिड़िया भी कहते हैं। दिल्ली के कई क्षेत्रों में अचानक गौरैया की संख्या में काफी कमी आई है और कुछ इलाकों में तो यह लगभग लुप्त हो चुकी हैं।