डंकी रूट के जाल में कैसे फंसे भारतीय:अमेरिकन ड्रीम लेकिन वीजा रिफ्यजूल, डोंकरों के डीलक्स-इकॉनमी पैकेज, पनामा के जंगल से जानलेवा सफर

डंकी रूट… इसी के जरिए अमेरिका में घुसकर अवैध तरीके से रह रहे 104 भारतीयों को बुधवार (5 फरवरी) को डिपोर्ट कर दिया गया। डंकी रूट का नाम सुन सबसे पहले जेहन में पनामा का जंगल (डेरियन गैप) आता है। जिसे पार कर हरियाणा, पंजाब और गुजरात समेत देश के दूसरे राज्यों के लोग ‘अमेरिकन ड्रीम’ पूरा करने अमेरिका पहुंचे थे।

आखिर क्या है यह डंकी रूट, कौन हैं डोंकर, कौन सी मजबूरियां रहीं, जिन्हें पूरा करने लोग जान जोखिम में डालकर अमेरिका की तरफ चल पड़ते हैं। ऐसे कई सवाल हैं, जिनके जवाब तलाशने के लिए दैनिक भास्कर ने ट्रैवल एजेंट्स, इमीग्रेशन एक्सपर्ट्स और डंकी रूट से अमेरिका में घुसे लोगों से बातचीत की…।

सबसे पहले हरियाणा के करनाल के आकाश का ये बयान पढ़िए…

पनामा के जंगल में 150 लोगों का ग्रुप अमेरिका जाने के लिए रवाना हुआ। रास्ते में भूखे-प्यासे रहे। जगह-जगह कंकाल दिखे। उन्हीं के पास सोए। जंगल से बाहर निकले तो 50 लोग जिंदा बचे थे।

कैसे शुरू होता है डंकी रूट का जाल

सबसे पहले अमेरिका जाने की 3 वजहें…

1. अच्छी कमाई, बढ़िया जीवन:

भारत में रुपया चलता है और अमेरिका में डॉलर। वहां का एक डॉलर यहां कई गुना रुपए में बदल जाता है। ऐसे में आदमी को लगता है कि एक बार अमेरिका पहुंच गया तो हजारों डॉलर में कमाऊंगा और अपने देश में लाखों रुपए हो जाएंगे। इससे बड़ा घर, बड़ी गाड़ी होगी। बच्चों का फ्यूचर सेफ हो जाएगा। देश में नौकरी की भी तो रुपयों में मिली तनख्वाह में जरूरतें तो पूरी हो जाएंगी, लेकिन सपने पूरे नहीं होंगे। यहीं से अमेरिकन ड्रीम शुरू हो जाता है।

2. वीजा नहीं लग पाता:

अमेरिका में जाने के लिए वीजा नियम हैं। IELTS की परीक्षा पास करनी पड़ती है। कुछ लोग परीक्षा में रह जाते हैं। कुछ लोगों को अंग्रेजी अच्छी नहीं आती। कुछ वीजा से जुड़ी औपचारिकता पूरी नहीं कर पाते, तो फिर उनके पास अवैध तरीके से बॉर्डर पार यानी डंकी रूट के अलावा कोई रास्ता नहीं बचता।

3. पड़ोसी अमेरिका में तो मैं भी जाऊंगा:

पंजाब, हरियाणा, गुजरात समेत कई राज्यों में यह ट्रेंड है कि अगर पड़ोस वाला अमेरिका चला गया तो उन्हें भी जाना है। सामाजिक प्रेशर कहें या प्रतिष्ठा, उन्हें विदेश में सेटल होना प्राउड फील करवाता है। नतीजा, सब कुछ दांव पर लगाकर अमेरिका की राह पकड़ लेते हैं।

फिर एजेंटों के गारंटीड एंट्री का झांसा

आदमी जब मेंटली तैयार हो जाता है कि अमेरिका जाना ही है तो एजेंट्स की एंट्री होती है। वह अमेरिका का गारंटीड वीजा, वहां जाकर अच्छी नौकरी और फिर परमानेंट सिटिजनशिप के सपने दिखाते हैं। वीजा की फाइल लगाते हैं। रुपए ऐंठते चले जाते हैं। वीजा नहीं लगता फिर डंकी रूट से अमेरिका पहुंचाने के लिए फंसा लेते हैं। इसके लिए डोंकर से सेटिंग होती है। डोंकरों के भी बकायदा पैकेज बने हुए हैं….।

पैसों के जुगाड़ के लिए जमीन-गहने बेचे, लोन लिया

अमेरिका जाने की चाह में लोग अपनी जमीन बेचते हैं। पैसे कम पड़े तो घर के गहने बेच देते हैं। बैंक या प्राइवेट आदमी से लोन लेकर डोंकरों को देते जाते हैं। कुछ लोग अपनी जीवन भर की जमा-पूंजी डोंकरों को सौंप देते हैं। ज्यादातर लोअर मिडिल क्लास इसमें फंस जाता है। डोंकर को 25 से 60 लाख रुपए तक देते हैं।

अमेरिका जाने के लिए डंकी रूट…

भारत से अमेरिका की दूरी करीब 13,500 किमी है। हवाई यात्रा से यहां जाने में 17 से 20 घंटे लगते हैं। हालांकि, डंकी रूट से यही दूरी 15 हजार किमी तक हो जाती है और इस सफर में महीनों लग जाते हैं।

लैटिन अमेरिकी देशों से जाते हैं ज्यादातर लोग

भारत में डंकी का सबसे लोकप्रिय और पहला पड़ाव लैटिन अमेरिकी देश पहुंचना है। इनमें इक्वाडोर, बोलीविया और गुयाना जैसे देश शामिल हैं। इन देशों में भारतीयों को वीजा ऑन अराइवल मिल जाता है। मतलब ये कि इन देशों में जाने के लिए पहले से वीजा लेने की जरूरत नहीं है और ऑन द स्पॉट वीजा दे दिया जाता है।

ब्राजील और वेनेजुएला समेत कुछ अन्य देशों में भारतीयों को आसानी से टूरिस्ट वीजा दे दिया जाता है। यहां से डंकी रूट से कोलंबिया पहुंचते हैं। कई लोग दुबई के रास्ते लैटिन अमेरिकी देश जाते हैं। इसमें उन्हें महीनों कंटेनर्स में रहना पड़ता है।

डंकी रूट इस बात पर डिपेंड करता है कि जिस एजेंट के माध्यम से आप जा रहे हैं, उसके संबंधित देशों में कितने कनेक्शन हैं। हालांकि लैटिन अमेरिकी देशों में पहुंचना कठिन नहीं है, फिर भी यहां पहुंचने में महीनों लग जाते हैं। कई बार लोग दस महीने में कठिन परिश्रम और पैसा खर्च करके पहुंचते हैं।

खतरनाक जंगल, नदी-नालों में जहरीले सांपों का डर

कोलंबिया पहुंचने के बाद डंकी पनामा में एंटर करते हैं। इन दोनों देशों के बीच खतरनाक जंगल डेरियन गैप है। इसे पार करना बेहद जोखिम भरा है। नदी-नालों के बीच में जहरीले कीड़े और सांप का हमेशा डर बना रहता है। ये जंगल डेंजरस क्रिमिनल्स के लिए भी जाना जाता है। इस जंगल में डंकी से लूट भी होती है। महिला हो या पुरुष यहां के अपराधी उनके साथ रेप तक करते हैं।

कई बार डंकी अगर थोड़ी देर के लिए सो गया तो सांप उसे डस लेता है। इस जंगल में डंकियों की लाशें मिलना कोई नई बात नहीं है। यहां कोई सरकार नहीं है। अगर किस्मत ने साथ दिया और सब कुछ ठीक रहा तो डंकी 10 से 15 दिन में पनामा का जंगल पार कर जाता है।

ग्वाटेमाला बड़ा सेंटर, यहां एक्सचेंज होते हैं एजेंट

पनामा का जंगल पार करने के बाद अगला पड़ाव ग्वाटेमाला है। ह्यूमन ट्रैफिकिंग के लिए ग्वाटेमाला एक बड़ा कोऑर्डिनेशन सेंटर है। अमेरिकी बॉर्डर की ओर बढ़ते हुए यहां डंकी को दूसरे एजेंट को हैंडओवर किया जाता है।

अमृतसर लौटे दलेर सिंह ने बताया कि यहां साढ़े 3 दिनों तक भूखा-प्यासा रहना पड़ता है। इस रास्ते में लूटपाट, हिंसा, और जानवरों से खतरा आम है। कई लोगों की इस रास्ते में मौत भी हो जाती है।

खतरनाक नदी से भी रास्ता

अगर कोई डंकी पनामा जंगल से नहीं जाना चाहता तो कोलंबिया से एक रास्ता और है। यह रास्ता सैन एन्ड्रेस से शुरू होता है। बताया जाता है कि ये रास्ता बेहद रिस्की है। सैन एन्ड्रेस से डंकी सेंट्रल अमेरिका के देश निकारागुआ के लिए नाव लेते हैं। यहां से 150 किलोमीटर का सफर नाव से करने के बाद दूसरी नाव में ट्रांसफर होते हैं, जो मेक्सिको के लिए जाती है। इस नदी में सीमा पुलिस पेट्रोलिंग तो करती ही है। नदी में खतरनाक जानवर जान लेने के लिए तैयार रहते हैं।

18 से 30 फीट की दीवार फांदकर अमेरिका में दाखिल

अब डंकी को मेक्सिको से US बॉर्डर जाना होगा। रास्तों में अलग-अलग तरह की मुसीबतें हैं। सर्दी के साथ बीच में रेगिस्तान भी पड़ता है। इसके बाद डंकी पहुंचता है US मेक्सिको सीमा पर जहां 3,140 किलोमीटर लंबी दीवार बनी हुई है। इसकी ऊंचाई 18 से 30 फीट है।

डंकी इसी को कूदकर अमेरिका में प्रवेश करते हैं। जो लोग दीवारों को पार नहीं कर पाते, वे रियो ग्रांडे नदी को पार करने का खतरनाक रास्ता चुनते हैं। अमेरिका जाने से पहले डंकी से उसका पासपोर्ट और पहचान वाले दस्तावेज ले लिए जाते हैं। ऐसा इसलिए क्योंकि उसकी पहचान हो जाएगी तो उसे वापस इंडिया डिपोर्ट कर दिया जाएगा। अब डंकी अमेरिका में अवैध तरीके से आ गया है।

अमेरिका पहुंचने के बाद क्या होता है?

  • पंजाब, हरियाणा और दिल्ली में काम करने वाली संस्था स्टडी अब्रॉड कंसल्टेंट एसोसिएशन के चेयरमैन सुकांत त्रिवेदी के मुताबिक अमेरिका में घुसने के बाद डंकी जानबूझकर अपने आप को वहां की पुलिस के हवाले कर देता है। इसके बाद उसे जेल में डाला जाता है। इस जेल को कैम्प कहा जाता है।
  • डंकी को जेल से छुड़ाने के लिए वकील हायर किया जाता है। इसका खर्च एजेंट या डंकी का कोई रिश्तेदार उठाता है। वकील अपनी दलीलों से कोर्ट को भरोसा दिलाता है कि डंकी को अमेरिका में रहने दिया जाए। इसके बाद डंकी को जेल से रिहा किया जाता है।
  • डंकी अमेरिका पर बोझ न बने, इसलिए उसे कमाने और खाने की अनुमति दी जाती है। ये अनुमति बढ़ती रहती है। 8-10 साल में ग्रीन कार्ड मिल जाता है। ग्रीन कार्ड मिलने का मतलब है डंकी अब यूएस में परमानेंट रह सकता है और उसे काम करने का अधिकार है। इसके 10-15 साल बाद उसे अमेरिका की नागरिकता भी मिल जाती है।
  • जिस तरह से भारत में अवैध कॉलोनियों को वैध करने के लिए हर 5 से 7 साल के बीच स्कीम निकाली जाती है। ठीक वैसे ही अमेरिका में अवैध लोगों को नागरिकता देने के लिए स्कीम निकाली जाती है। इसमें कुछ फीस भरने के बाद डंकी अमेरिका का नागरिक बन जाता है।

यदि डंकी का कोई रिश्तेदार या परिचित अमेरिका का नागरिक है तो…

  • जेल में डंकी से पूछा जाता है कि क्या अमेरिका में उसका कोई परिचित रहता है। यदि वह हां कहता है तो उस परिचित से संपर्क किया जाता है और डंकी को रिहा करने के बदले इमिग्रेशन बॉन्ड भरने के लिए कहा जाता है। यह एक तरह की जमानत है, जिसके बदले डंकी को कई शर्तों के साथ रिफ्यूजी कैम्प से रिहा किया जाता है। इस परिचित का इंतजाम एजेंट करते हैं, लेकिन इसके बदले अलग से पैसा लेते हैं।
  • बॉन्ड की राशि इंडिया से डंकी के परिजन एजेंट को देते हैं। ये राशि 3 लाख 40 हजार से 2 करोड़ तक हो सकती है। बॉन्ड कितना लगेगा ये इमिग्रेशन मामलों की अदालत पर डिपेंड करता है।
  • डंकी को कमाने-खाने की अनुमति के साथ जेल से रिहा कर दिया जाता है। इस दौरान डंकी पर अवैध रूप से बॉर्डर पार करने का केस चलता है, जिसमें उसे हर सुनवाई में मौजूद होना जरूरी है। ये जरूरी नहीं है कि हर डंकी को इमिग्रेशन बॉन्ड का मौका मिले। कई लोगों को रिफ्यूजी कैंप में रखने के बाद इंडिया डिपोर्ट भी कर दिया जाता है।

एक्सपर्ट बोले- ट्रैवल एजेंट के जरिए जा रहे हैं तो उसकी पहले पड़ताल करें

जालंधर के वीजा एक्सपर्ट सौरभ बजाज का कहना है कि लोग अगर सही तरीके फॉलो करें तो उन्हें मुश्किल नहीं आएगी। विदेश में वर्क वीजा या स्टडी के लिए 40 से 50 लाख नहीं लगते हैं। यह खर्च 8 से 10 लाख के बीच में रहता है।

उन्होंने कहा कि अगर आप विदेश में पढ़ाई या वर्क परमिट पर जाना चाहते हैं। साथ ही किसी ट्रैवल एजेंट के माध्यम से आवेदन की प्रक्रिया कर रहे हैं तो सबसे पहले आप जिस ट्रैवल एजेंट को चुन रहे हैं यह देखना होगा कि क्या वह पंजाब सरकार के पास रजिस्टर है या नहीं है। यह पता उस जिले की प्रशासन की वेबसाइट पर आसानी से लग जाता है। जिसमें वह एजेंट काम कर रहा होता है। वहां पर उनकी सूची अपडेट होती है।

दूसरा ये सारा ऑनलाइन होता है। यह भी देखना होगा कि प्रोजेक्टर जनरल ऑफ इमिग्रेंटस (पीजीई) के पास क्या वह रजिस्टर है नहीं। क्यों यह एजेंट बिल्कुल सुरक्षित होते हैं। तीसरा जिस देश में जाना है उस देश की आधिकारिक वेबसाइट पर आवेदन की सारी प्रक्रिया रहती है। वहां से सारी जानकारी हासिल की जा सकती है।