‘मेरे भाई असम राइफल में तैनात थे। हुकमेंद्र जब छोटा था तो मैं उसे अपने पास लाया था। अब मैं अपने आपको ही दोषी मानता हूं, क्योंकि न उसे लाता, न उसकी हत्या होती। आरोपी मंथन जब पिस्टल लेकर घुसा तो मैं चिल्ला उठा, मैंने उसे रोका। मगर उसने मेरे सामने भतीजे के सिर में गोली मार दी।
जिस टाइम गोली मारी, उस समय मेरा भतीजा कॉपी पर लिख रहा था, गोली लगते ही वह जमीन पर गिर गया था, मगर पेन हाथ में था। वो मेरा भतीजा नहीं, बेटा था। मंथन सिंह को उम्रकैद हुई तो मेरे भतीजे की आत्मा को अब जरूर शांति मिली होगी। अगर कोर्ट हत्यारे को फांसी देती तो और संतुष्टि होती।’
यह कहते हुए संजय कुमार गुर्जर की आंखें भर आती हैं। जिनके भतीजे हुकमेंद्र सिंह गुर्जर की 4 साल पहले मंथन सिंह ने बुंदेलखंड महाविद्यालय (BKD) में गोली मार दी थी। फिर गोंदू कम्पाउंड में जाकर कृतिका त्रिवेदी की हत्या कर दी थी।
आरोपी मंथन को सजा दिलाने तक दोनों परिवार के लोगों ने कितने दिनों तक पैरवी की? कितने गवाह पेश हुए? ऐसे कौन से अहम सबूत थे, जिसके कारण आरोपी दोष सिद्ध् हुआ और उसे सजा दिलाने में अहम साबित हुए ? इन सभी सवालों को लेकर रिपोर्टर ने पीड़ित परिवार के सदस्यों और शासकीय अधिवक्ता से बात की।
पहले पढ़िए पूरा मामला
मथुरा के जटवारी गांव निवासी हुकमेंद्र झांसी के बुंदेलखंड महाविद्यालय (BKD) में एमए मनोविज्ञान फाइनल ईयर का छात्र था। वह पुराने हॉस्टल में रहता था। उसी की क्लास में निवाड़ी के मोहल्ला हर्षमऊ का रहने वाला मंथन सिंह सेंगर पढ़ता था। गोंदू कंपाउंड के चाणक्यपुरम में रहने वाली कृतिका त्रिवेदी एमए फाइनल (इतिहास) में पढ़ती थी।
मंथन कृतिका से एकतरफा प्यार करता था। इधर, कृतिका और हुकमेंद्र एनसीसी लिए थे। उनके बीच अच्छी दोस्ती थी और दोनों बातचीत करते थे। ये बात आरोपी मंथन को नापंसद थी। 19 फरवरी साल 2021 को हुकमेंद्र अपनी क्लास में मेज पर बैठकर पढ़ रहा था।
तभी मंथन वहां आया। उसने पिस्टल से हुकमेंद्र के सिर में गोली मार दी, तो वह मेज पर गिर गया। इसके बाद क्लास के ब्लैकबोर्ड पर चॉक से दिल बनाकर फिनिश लिखा। इसके बाद मंथन पिस्टल लहराते हुए कृतिका के घर पहुंचा। कृतिका घर के बाहर अपनी 80 साल की दादी से बात कर रही थी।
तभी मंथन ने गोली मारकर कृतिका की हत्या कर दी। उसने दादी और पिता को भी गोली मारने की कोशिश की थी। लेकिन, पुलिस ने मौके पर पहुंचकर उसे पिस्टल के साथ गिरफ्तार कर लिया। हुकमेंद्र ने इलाज के दौरान दिल्ली में दम तोड़ दिया था, जबकि कृतिका की मौके पर ही मौत हो गई थी।
हुकमेंद्र के चाचा संजय ने नवाबाद थाना में केस दर्ज कराया था। घटना के समय संजय बीकेडी में ही कर्मचारी थे। इस डबल मर्डर केस में एससी-एसटी एक्ट कोर्ट के विशेष न्यायाधीश धीरेंद्र कुमार (तृतीय) ने शुक्रवार को मंथन सिंह को दोषी करार दिया। उसे उम्रकैद की सजा सुनाई। साथ ही 5.10 लाख रुपए का जुर्माना भी लगाया।
आरोपी के हाथ में मिले थे बारूद के कण
जिला शासकीय अधिवक्ता मृदुल श्रीवास्तव ने बताया कि कृतिका की हत्या के बाद पुलिस ने आरोपी मंथन सिंह को मौके पर गिरफ्तार किया था। गोली चलाने के बाद बारूद के कण उसके हाथ गिरे थे। FSL टीम ने हाथों के स्वैप सैंपल लेकर विधि विज्ञान प्रयोगशाला आगरा भेजे। जिसकी रिपोर्ट में हाथों पर बारूद होने की पुष्टि हुई। सैंपल लेने वाले FSL कर्मचारी की कोर्ट में गवाही सबसे अहम साबित हुई।
वहीं, दूसरा अहम सबूत था पिस्टल। 32 बोर की पिस्टल से हुकमेंद्र व कृतिका को गोली मारी गई थी। पोस्टमार्टम के दौरान हुकमेंद्र के शरीर से 32 बोर का कॉर्टेज बरामद हुआ था।
4 साल तक चला ट्रायल, 16 गवाह पेश हुए
हुकमेंद्र के चाचा सजय कुमार गुर्जर ने कहा- देखिए हम न्यायालय के फैसले की सराहना करते हैं। जिस क्रूरता के साथ मंथन ने क्लास में पढ़ते हुए मेरे भतीजे की हत्या की थी। अगर कोर्ट फांसी की सजा सुनाती तो हमें थोड़ी और ज्यादा संतुष्टि होती। हालांकि हम फैसले से पूरी तरह संतुष्ट हैं।
कहा- 4 साल तक ट्रायल चला। इस दौरान कभी आरोपी के चेहरे पर सिकन नजर नहीं आई। शहंशाहों की तरह वो कोर्ट में खड़ा रहता है। उसे कोई पछतावा नहीं है। ये प्री-प्लांड मर्डर था। मेरे से जितनी जी-जान से पैरवी हो सकती थी, वो की है। आगे भी करते रहेंगे।
बताया कि मामले में 16 गवाह पेश हुए। कहा- मैंने, हुकमेंद्र के साथ क्लास में पढ़ रही छात्रा सौम्या, कृतिका के पिता सुजीत त्रिवेदी, दादी संतोष त्रिवेदी ने कोर्ट में आरोपी के खिलाफ गवाही दी।
संजय ने कहा- मेरे भाई ने 23 साल 11 महीने असम राइफल में जॉब की, आज उसकी उम्र 56 साल है। अभी वो प्राइवेट गार्ड की नौकरी कर रहे हैं। ऐसे कर्मशील व्यक्ति के बेटे को छीना है। मेरा राम जैसा भाई है, जो पूरे जीवनभर देश सेवा में बॉर्डर पर रहा। लेकिन आरोपी ने मेरे सामने भतीजे को गोली मार दी। मैं उसे कॉलेज में कर्मचारी के पद पर तब तैनात था।
कृतिका के पिता बोले- ये समाज का दुश्मन
कृतिका के पिता सुजीत त्रिवेदी ने कहा- कोर्ट के फैसले का हम स्वागत करते हैं। आरोपी जिंदगी भर जेल में रहे, तो बहुत अच्छा होगा। ये समाजिक हत्यारा व समाज का दुश्मन है। हम लोगों का क्या, जो था खोने को, हम खो चुके हैं। हमारा तो जो था वो चला गया। अब ये जेल से बाहर नहीं आना चाहिए।