सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को बॉम्बे हाईकोर्ट को फटकार लगाई। तलाक के मामले में हाईकोर्ट ने महिला के लिए ‘नाजायज पत्नी’ और ‘वफादार मालकिन’ जैसे शब्दों का इस्तेमाल किया था।
जस्टिस अभय एस ओका, जस्टिस अहसानुद्दीन अमानुल्लाह और जस्टिस ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की बेंच ने कहा- ऐसे शब्द महिला विरोधी हैं और इनका प्रयोग महिला के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है।
बेंच ने कहा, इस तरह के शब्दों का इस्तेमाल संविधान के लोकाचार और आदर्शों के खिलाफ हैं। दुर्भाग्य से बॉम्बे हाईकोर्ट ने नाजायज पत्नी शब्द का इस्तेमाल करने की हद तक जाकर ऐसा किया। चौंकाने वाली बात यह है कि पैराग्राफ 24 में हाईकोर्ट ने ऐसी पत्नी को वफादार मालकिन भी बताया है।
बेंच ने कहा- संविधान की धारा 21 के तहत प्रत्येक व्यक्ति को गरिमापूर्ण जीवन जीने का मौलिक अधिकार है। किसी महिला को अवैध पत्नी या वफादार मालकिन कहना भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत उस महिला के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन होगा।
बेंच ने कहा-
विवाह को अमान्य घोषित करने वाली महिला को ‘नाजायज पत्नी‘ कहना बहुत गलत है। इससे उसकी गरिमा को ठेस पहुंची है। बेंच ने टिप्पणी करते हुए कहा कि अमान्य विवाह के मामलों में हाईकोर्ट ने पतियों के लिए ऐसे विशेषणों का उपयोग नहीं किया। कोई भी व्यक्ति अमान्य विवाह में पक्षकार रही महिला का जिक्र करते समय ऐसे विशेषणों का उपयोग नहीं कर सकता।
हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 24 और 25 पर सुनवाई
सुप्रीम कोर्ट ने हिंदू विवाह अधिनियम 1955 की धारा 24 और 25 के यूज पर विरोधी विचारों के मामले में सुनवाई की। अधिनियम की धारा 24 में मुकदमे के लंबित रहने तक भरण-पोषण और कार्यवाही के खर्चों का नियम है। धारा 25 स्थायी गुजारा भत्ता और भरण-पोषण से जुड़ी है।
बेंच ने कहा- एक पति या पत्नी जिसका विवाह 1955 अधिनियम की धारा 11 के तहत शून्य घोषित किया गया है, वह 1955 अधिनियम की धारा 25 का हवाला देकर दूसरे पति या पत्नी से स्थायी गुजारा भत्ता या भरण-पोषण मांगने का हकदार है।
इसने कहा कि स्थायी गुजारा भत्ता की ऐसी राहत दी जा सकती है या नहीं यह हमेशा प्रत्येक मामले के सबूत और पक्षों के व्यवहार पर निर्भर करेगा। धारा 25 के तहत राहत देना हमेशा सोच-विचार कर लिया फैसला होगा।
धारा 24 में लिखी शर्तें पूरी हों
बेंच ने कहा- यदि कोर्ट इस फैसला पर पहुंचता है कि पक्षकारों के बीच विवाह शून्य है। तो अधिनियम के तहत कार्यवाही के अंतिम निपटारे तक कोर्ट को भरण-पोषण देने से रोका नहीं जा सकता, बशर्ते धारा 24 में लिखी शर्तें पूरी हों।
कोर्ट ने कहा कि धारा 24 के तहत प्रार्थना पर निर्णय लेने के समय कोर्ट को हमेशा पक्षकार के व्यवहार पर विचार करना चाहिए, क्योंकि इसके तहत राहत देना हमेशा सोच कर लिया जाता है। सुप्रीम कोर्ट ने निर्देश दिया कि अपील को गुण-दोष के आधार पर निर्णय के लिए उपयुक्त बेंच के समक्ष रखें।