देश के सैन्य बलों का आधुनिकीकरण तेज करने के लिए रक्षा खरीद नीति में बड़े बदलाव की तैयारी है। अब से सैन्य सामान की खरीद फास्ट ट्रैक की जाएगी। रक्षा खरीद नीति (DPP) में सुधार के लिए रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने कमेटी का गठन किया है।
अभी हथियार व सैन्य प्लेटफॉर्म की खरीद में 8 चरण होते हैं। सबसे पहले आकलन करते हैं कि हथियार बाहर से क्यों खरीदना है। फिर खरीद के लिए सूचना आमंत्रित करना, प्रस्ताव मंगाना, टेक्निकल ट्रायल, फील्ड ट्रायल, कॉमर्शियल दावे मंगाना, सबसे कम दाम वाला वेंडर चुनना जैसी प्रक्रियाएं हैं।
इस पूरे काम में कम से कम 8 साल लग जाते हैं। कमेटी देखेगी कि यह प्रक्रिया एक-दो साल में कैसे पूरी हो सकती है।डीपीपी में परिवर्तन की मांग इसलिए जोर पकड़ रही है, क्योंकि सेना, नौसेना और वायु सेना को समय पर साजो-सामान नहीं मिल रहे।
खरीद प्रक्रिया कई बार 15 से 20 साल तक खिंच जाती है। जो सामान खरीदने की प्रक्रिया आज शुरू हुई है, 10 साल में उसकी टेक्नोलॉजी पुरानी पड़ जाती है।
5 साल में करीब 9 लाख करोड़ रु. का सामान खरीदना
इस साल सैन्य खरीद के लिए तीनों सेनाओं का बजट करीब एक लाख 80 हजार करोड़ रु. है। 5 साल में करीब 9 लाख करोड़ रु. का सामान खरीदना है।
कमेटी तय करेगी कि कितना बजट स्वदेशी हथियारों के लिए रखें। डीपीपी में आखिरी बदलाव 5 साल पहले हुए थे। उसके बाद भी कई प्रोजेक्ट लटके हैं। मेक इन इंडिया पर नीति भी नए सिरे से तय की जाएगी।
39 हजार 125 करोड़ के हथियार और उपकरण
रक्षा मंत्रालय ने साल 2024 में पांच सैन्य सौदों पर दस्तखत किए थे। नौसेना और वायुसेना के लिए ब्रह्मोस मिसाइल, रडार समेत 39 हजार 125 करोड़ के हथियार और उपकरण खरीदे जाने हैं। पांच में से एक रक्षा सौदा मिग-29 विमानों के एयरो इंजन की खरीद के लिए हिंदुस्तान एयरोनाटिक्स लिमिटेड (HAL) के साथ किया गया था।
क्लोज-इन हथियार प्रणाली (CIWS) और अत्याधुनिक रडार की खरीद के लिए लार्सन एंड टूब्रो लिमिटेड से दो करार हुए थे। इसके अलावा, ब्रह्मोस मिसाइलों की खरीद के लिए ब्रह्मोस एयरोस्पेस प्राइवेट लिमिटेड (BAPL) के साथ दो सौदों को फाइनल किया गया था।
पांच कॉन्ट्रैक्ट
- सबसे बड़ा कॉन्ट्रैक्ट 19,519 करोड़ रुपए का था। इसमें इंडो-रूसी जॉइंट वेंटर वाले ब्रह्मोस एयरोस्पेस से 450 किमी एक्सटेंडेड रेंज वाली 220 ब्रह्मोस सुपरसॉनिक की डील शामिल है।
- 988 करोड़ रुपए का एक अन्य कॉन्ट्रैक्ट ब्रह्मोस वर्टिकल लॉन्च सिस्टम का भी था।
- प्राइवेट सेक्टर कंपनी L&T के साथ दो IAF कॉन्ट्रैक्ट साइन किए गए। पहली डील 7,669 करोड़ रुपए की थी, जिसके तहत क्लोज-इन वेपन सिस्टम की 61 फ्लाइट्स खरीदी जाएंगीं। दूसरी डील 5,700 करोड़ रुपए के 12 हाई पावर रडार के लिए की गई। इन रडार से चीन और पाकिस्तान सीमा पर तैनात मौजूदा लॉन्ग रेंज IAF रडार को रिप्लेस किया जाएगा।
- पांचवां कॉन्ट्रैक्ट मिग-29 फाइटर्स के RD-33 एयरो इंजन के लिए था, जिसे हिन्दुस्तान एयरोनॉटिक्स 5,250 करोड़ रुपए में रूस की मदद से बनाएगा। इस डील के तहत 80 नए इंजन बनाए जाएंगे जो IAF फ्लीट के 60 ट्विन इंजन मिग-29 की ऑपरेशनल कैपेबिलिटी बढ़ाएंगे।
दुश्मनों के लिए आफत क्यों…
- आरडी-33 एयरो इंजन मिग-29 के बाकी बचे जीवन में अहम होंगे। इनका निर्माण रूस ओईएम की ट्रांसफर आफ टेक्नोलाजी (TOT) लाइसेंस के जरिए होगा।
- क्लोज-इन हथियार प्रणाली कम दूरी की आने वाली मिसाइलों और दुश्मन के विमानों का पता लगाने और उन्हें नष्ट करने के लिए रक्षा प्रणाली है।
- नया रडार वायुसेना की रक्षा क्षमता को बढ़ाएगा। इसके आधुनिक सेंसर छोटे लक्ष्यों को भी साध लेंगे। निजी क्षेत्र के हाथों बनने वाली भारत में यह पहली रडार प्रणाली होगी।