गुरुग्राम जमीन घोटाला, रॉबर्ट वाड्रा पैदल ED ऑफिस पहुंचे:जांच एजेंसी ने दूसरा समन भेजा था, बोले- जनता की आवाज दबाने की कोशिश

कांग्रेस सांसद प्रियंका गांधी के पति रॉबर्ट वाड्रा आज, मंगलवार को पैदल ही प्रवर्तन निदेशालय (ED) के ऑफिस पहुंचे। जहां उनसे गुरुग्राम के शिकोहपुर लैंड घोटाले में पूछताछ होगी। ED ने जमीन सौदे से जुड़ी मनी लॉन्ड्रिंग जांच में पूछताछ के लिए उन्हें दूसरा समन भेजा था। वाड्रा इससे पहले 8 अप्रैल को भेजे गए पहले समन पर पेश नहीं हुए थे।

ED ऑफिस जाते हुए वाड्रा ने कहा- “जब भी मैं लोगों की आवाज बुलंद करूंगा, ये लोग मुझे दबाएंगे और एजेंसियों का दुरुपयोग करेंगे। मैं हमेशा सभी सवालों के जवाब देता हूं और देता रहूंगा।”

वहीं वाड्रा के ED दफ्तर जाते हुए उनके साथ मौजूद समर्थकों ने ”जब जब मोदी डरता है, ईडी को आगे करता है” के नारे लगाए। वाड्रा के ED दफ्तर पहुंचने तक कांग्रेसी नारेबाजी करते रहे।

2008 में हुआ जमीन का सौदा फरवरी 2008 में रॉबर्ट वाड्रा की कंपनी स्काईलाइट हॉस्पिटैलिटी ने ओंकारेश्वर प्रॉपर्टीज से गुरुग्राम के शिकोहपुर गांव में 3.5 एकड़ जमीन 7.5 करोड़ रुपए में खरीदी थी। उसी साल, तत्कालीन मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा की अगुआई वाली हरियाणा सरकार ने इस जमीन पर 2.7 एकड़ के लिए व्यवसायिक कॉलोनी विकसित करने का लाइसेंस दिया। इसके बाद कॉलोनी बनाने की जगह स्काईलाइट कंपनी ने इस जमीन को DLF को 58 करोड़ रुपए में बेच दिया, जिससे लगभग 50 करोड़ रुपए का मुनाफा हुआ।

IAS अधिकारी ने म्यूटेशन रद्द किया 2012 में, हरियाणा के वरिष्ठ आईएएस अधिकारी अशोक खेमका ने इस सौदे में अनियमितताओं का हवाला देते हुए जमीन के म्यूटेशन (स्वामित्व हस्तांतरण) को रद्द कर दिया था। खेमका ने दावा किया कि यह प्रक्रिया नियमों के खिलाफ थी। इसमें भ्रष्टाचार की आशंका थी।

2018 में दर्ज की गई FIR साल 2018 में हरियाणा पुलिस ने रॉबर्ट वाड्रा, भूपेंद्र हुड्डा, डीएलएफ, और ओंकारेश्वर प्रॉपर्टीज के खिलाफ एक शिकायत के आधार पर FIR दर्ज की थी। जिसमें धोखाधड़ी, आपराधिक साजिश और भ्रष्टाचार के आरोप में IPC की धारा 420, 120, 467, 468 और 471 के तहत मामला दर्ज किया गया था। बाद में IPC की धारा 423 के तहत नए आरोप जोड़े गए थे।

भूपेंद्र सिंह हुड्डा पर ये आरोप जमीन की यह डील जब हुई, उस समय हरियाणा में कांग्रेस की सरकार थी और भूपेंद्र सिंह हुड्डा मुख्यमंत्री थे। जमीन खरीदने के करीब एक महीने बाद हुड्डा सरकार ने वाड्रा की कंपनी स्काईलाइट हॉस्पिटैलिटी को इस जमीन पर आवासीय परियोजना विकसित करने की परमिशन दे दी। आवासीय परियोजना का लाइसेंस मिलने के बाद जमीन के दाम बढ़ जाते हैं।

लाइसेंस मिलने के मुश्किल से 2 महीने बाद ही, जून 2008 में, डीएलएफ वाड्रा की कंपनी स्काईलाइट हॉस्पिटैलिटी से यह जमीन 58 करोड़ में खरीदने को तैयार हो जाती है। यानी मुश्किल से 4 महीने में 700 प्रतिशत से ज्यादा का मुनाफा वाड्रा की कंपनी को होता है। 2012 में हुड्डा सरकार कॉलोनी बनाने वाले लाइसेंस को DLF को ट्रांसफर कर देती है।

ED ने FIR के आधार पर जांच शुरू की इसके बाद ईडी ने संदेह जताया कि इस सौदे में मनी लॉन्ड्रिंग हुई, क्योंकि जमीन की कीमत कुछ ही महीनों में असामान्य रूप से बढ़ गई। इसके अलावा यह भी संदेह जताया कि ओंकारेश्वर प्रॉपर्टीज एक फर्जी कंपनी थी। उसे सौदे में भुगतान के लिए इस्तेमाल किया गया।

जमीन की खरीद से जुड़ा चेक कभी जमा नहीं किया गया। ईडी ने 2018 में हरियाणा पुलिस की FIR के आधार पर मनी लॉन्ड्रिंग का मामला दर्ज किया। यह जांच स्काईलाइट हॉस्पिटैलिटी की वित्तीय गतिविधियों और सौदे से प्राप्त आय पर केंद्रित है।

ईडी को संदेह, DLF को हुआ 5 हजार करोड़ का फायदा ईडी स्काईलाइट हॉस्पिटैलिटी की वित्तीय लेनदेन, जमीन की खरीद-बिक्री, और DLF के साथ सौदे की जांच कर रही है। साथ ही, यह भी देखा जा रहा है कि क्या इस सौदे से प्राप्त आय का उपयोग अवैध गतिविधियों में किया गया। आरोप है कि डीएलएफ को इस सौदे में फायदा पहुंचाने के लिए हुड्डा सरकार ने नियमों का उल्लंघन किया। इसमें वजीराबाद में डीएलएफ को 350 एकड़ जमीन आवंटन का भी जिक्र है, जिससे डीएलएफ को कथित तौर पर 5,000 करोड़ रुपए का फायदा हुआ।