हरियाणा सरकार को हाईकोर्ट का झटका:वसूली नोटिफिकेशन रद्द, कहा-ये नियमों के उलट; CM सैनी के पिछले कार्यकाल में जारी हुआ था

पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने हरियाणा सरकार की हरियाणा रियल एस्टेट रेगुलेटरी अथॉरिटी (HRERA) को अधिकार देने के फैसले को रद्द कर दिया है। सरकार ने HRERA के अधिकारियों को कलेक्टर की तरह पावर देते हुए बकाया वसूली के अधिकार दे दिए थे।

इसको चैलेंज किए जाने के बाद हाईकोर्ट ने सरकार की अधिसूचना रद्द कर दी है। न्यायमूर्ति सुरेश्वर ठाकुर और न्यायमूर्ति एचएस ग्रेवाल की खंडपीठ ने कहा कि HRERA के अधिकारी केवल जांच और मुआवजे की राशि तय कर सकते हैं, लेकिन वे स्वयं वसूली नहीं कर सकते।

हाईकोर्ट ने कहा-

रियल एस्टेट अधिनियम में विभिन्न प्राधिकरणों की भूमिकाएं स्पष्ट रूप से परिभाषित हैं। HRERA के अधिकारियों को वसूली का अधिकार देना इस कानूनी ढांचे का उल्लंघन है।

कोर्ट ने हरियाणा सरकार को भी नसीहत दी कि उसे नियमों में जरूरी संशोधन कर सही अधिकारियों की नियुक्ति करनी चाहिए। हाईकोर्ट के इस फैसले के बाद अब सरकार को नए सिरे से वसूली प्रक्रिया तैयार करनी होगी। राजस्व विभाग को विशेष अधिकारी नियुक्त करने होंगे। HRERA को भी अपनी कार्यप्रणाली में बदलाव करना होगा।

सरकार ने 11 मई, 2024 को जारी की थी अधिसूचना हरियाणा में CM नायब सैनी की ही अगुआई वाली सरकार की ओर से 11 मई, 2024 को अधिसूचना जारी की गई थी। इसमें HRERA के अधिकारियों को ब्याज, जुर्माना और मुआवजा जैसी राशियों को सीधे वसूलने का अधिकार दिया था। इसके पीछे सरकार ने 5 फायदे होने के तर्क दिए थे।

अधिसूचना पर उठाए सवाल, याचिका दायर हुई अधिसूचना के जारी होने के बाद वाटिका लिमिटेड ने इसे चुनौती देते हुए कोर्ट में याचिका दायर की थी। उन्होंने तर्क दिया था कि HRERA के अधिकारियों को ऐसी शक्तियां नहीं दी जा सकतीं। इसकी वजह ये है कि रियल एस्टेट अधिनियम में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि बकाया राशि को भू-राजस्व के बकाया के रूप में ही वसूला जाना चाहिए, न की HRERA अधिकारियों द्वारा। इससे अधिकारी मनमानी कर सकते है।

दलील स्वीकार कर कोर्ट ने सुनाया फैसला हाईकोर्ट ने याचिकाकर्ता की दलीलों को स्वीकार करते हुए मामले की सुनवाई की। अब हाईकोर्ट ने फैसला सुनाया कि रियल एस्टेट (विनियमन और विकास) अधिनियम, 2016 के तहत इस कदम की अनुमति नहीं थी। यह पहले से बनी कानूनी प्रक्रिया का उल्लंघन करता है। मुआवजे, जुर्माने या ब्याज से संबंधित HRERA अधिकारियों द्वारा पारित आदेश को हरियाणा भूमि राजस्व अधिनियम, 1887 के तहत सख्ती से लागू किया जाना चाहिए, उन्हें अदालती आदेशों की तरह नहीं माना जाना चाहिए।

हाईकोर्ट के फैसले के 2 मुख्य पॉइंट्स…

  • अधिकारी केवल जांच और मुआवजा तय कर सकते है: पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट ने महत्वपूर्ण फैसले में HRERA (हरियाणा रियल एस्टेट रेगुलेटरी अथॉरिटी) की शक्तियों की सीमा तय कर दी है। अदालत ने स्पष्ट किया है कि HRERA के अधिकारी केवल जांच कर सकते हैं और मुआवजे की राशि तय कर सकते हैं, लेकिन वे स्वयं वसूली नहीं कर सकते।
  • वसूली प्रक्रिया को कानूनी ढांचे के अनुरूप बनाने की सलाह: हाईकोर्ट ने हरियाणा सरकार को सलाह दी है कि उसे नियमों में आवश्यक संशोधन करना चाहिए। इसके अलावा उचित राजस्व अधिकारियों की नियुक्ति भी करनी चाहिए। वसूली प्रक्रिया को कानूनी ढांचे के अनुरूप बनाने की सलाह भी सरकार को दी।

कोर्ट ने सरकार के ये तर्क खारिज किए न्यायालय ने राज्य के इस तर्क को भी खारिज कर दिया कि हरियाणा भूमि राजस्व अधिनियम की धारा 27 के तहत शक्तियों का इस्तेमाल इस तरह का फैसला लेने की अनुमति देने के लिए किया जा सकता है। इस पर कोर्ट ने जोर देकर कहा कि प्रवर्तन और न्यायनिर्णयन दो अलग-अलग कार्य हैं और इन्हें अलग-अलग ही रहना चाहिए। सुनवाई के दौरान, न्यायालय ने एकल पीठ के पिछले फैसले की भी आलोचना की, जिसमें सिविल न्यायालय के आदेशों की तरह HRERA के आदेशों को लागू करने की अनुमति दी गई थी।