आज के समय में होम लोन की ब्याज दर घटकर 6.7 फीसद तक पर आ गई है। अगर औसतन देखा जाए तो यह रेट सात फीसद के आसपास बैठती है। Home Loan पर मौजूदा ब्याज दर की तुलना अगर पांच या सात साल पहले के रेट से किया जाए तो यह बात सामने आती है कि इस समय ब्याज दर पूर्व के मुकाबले काफी कम है। यही वजह है कि आज से कुछ साल पहले होम लोन पर मकान लेने वाले लोग अपने बचे हुए लोन के भुगतान के लिए MCLR की बजाए एक्सटर्नल बेंचमार्क यानी रेपो रेट पर आधारित ब्याज दर को अपनाना चाहते हैं। कई ऐसे लोग हैं, जो इंटरनेट पर इस बात को लेकर काफी रिसर्च करते हैं कि MCLR पर होम लोन जारी रखना सही विकल्प है कि उन्हें रेपो रेट पर आधारित ब्याज दर में स्वीच करने के ऑप्शन को देखना चाहिए। आज हमने इस सवाल का जवाब तलाशने की कोशिश की हैः
टैक्स एंड इंवेस्टमेंट एक्सपर्ट बलवंत जैन ने इस बारे में कहा कि MCLR (मार्जिनल कॉस्ट ऑफ फंड्स बेस्ड लेंडिंग रेट) बैंकों की सीमांत लागत पर आधारित होता है। ऐसे में बैंकिंग अक्षमता का खामियाजा भी कई बार बॉरोअर्स को उठाना पड़ता है। इसका मतलब ये है कि अगर किसी भी वजह से अगर किसी बैंक की लागत ज्यादा बैठती है तो वह अपने ग्राहकों को ज्यादा रेट पर कर्ज देगा। दूसरी ओर RLLR एक्सटर्नल बेंचमार्क यानी रेपो रेट के साथ एक खास प्रीमियम पर आधारित होते हैं। उन्होंने कहा, ‘ऐसे में मेरी राय यह है कि लोगों को MCLR की बजाय RLLR को तरजीह देना चाहिए।’
सेबी सर्टिफाइड इंवेस्टमेंट एडवाइजर जितेंद्र सोलंकी ने भी जैन की बात को लेकर सहमति जताई। उन्होंने कहा कि अगर बॉरोअर्स को MCLR से RLLR में स्वीच करने का ऑप्शन मिलता है, तो उन्हें इसे अपनाना चाहिए ये क्योंकि कहीं-ना-कहीं ज्यादा फायदेमंद है। हालांकि, ऐसे होम लोन बॉरोअर्स के लिए ज्यादा श्रेयस्कर है, जिन्होंने हाल में ही लोन लिया है और उन्हें लंबे समय तक किस्त का भुगतान करना हो क्योंकि यह दीर्घअवधि में लाभदायक साबित हो सकता है।
जैन ने रेपो लिंक्ड लेंडिंग रेट (RLLR) की इन खास बातों को रेखांकित कियाः
1. बैंक और हाउसिंग फाइनेंस कंपनियां रेपो रेट बढ़ने पर MCLR तुरंत बढ़ा देती हैं लेकिन रेट घटने पर जल्द ऐसा नहीं करती हैं। इसके साथ ही अगर आरबीआई रेपो रेट में 0.25 फीसद की कमी करती हैं तो अतीत में यह देखा गया है कि अधिकतर बैंक या HFCs मार्जिनल कॉस्ट पर आधारित ब्याज दर में 0.05 से लेकर 0.10 फीसद की कटौती करते थे। बहुत कम ही ऐसे लेंडर हैं जो आरबीआई द्वारा रेट में की गई पूरी कमी का लाभ ग्राहकों को पास करते थे। RLLR में ऐसा नहीं है। रेपो रेट में किसी तरह की घट-बढ़ पर होम लोन रेट पर भी उसी दर से कमी या वृद्धि हो जाती है।
2. अगर बैंक या हाउंसिग फाइनेंस कंपनी ने ज्यादा रेट से भी लोन लिया है तो RLLR में उसका प्रभाव देखने को नहीं मिलेगा, जबकि MCLR में ऐसा नहीं है।
3. MCLR की तुलना में RLLR में ज्यादा पारदर्शिता है। इसकी वजह यह है कि बैंक का मार्जिनल कॉस्ट क्या बैठ रहा है यह किसी को पता ही नहीं चलता था। वहीं, रेपो रेट आधारित लेंडिंग रेट में आप खुद इस बात को कैलकुलेट कर सकते हैं।