यमुना सफाई- 8372 करोड़ खर्च, फिर भी सबसे प्रदूषित नदी:37 में से 33 एसटीपी का ट्रीटेड पानी फिर नालों में मिल रहा; दिल्ली का यमुना प्रदूषण में 80% हिस्सा

यमुना नदी का महज 2% हिस्सा दिल्ली में पड़ता है और यमुना के प्रदूषण का 80% हिस्सा दिल्ली से मिलता है। यमुना को साफ करने के लिए अब तक 8372 करोड़ रुपए खर्च हो चुके हैं और इतने खर्चे से दिल्ली में 37 सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट बनाए गए और नतीजा है कि देश की राजधानी से गुजरने वाली यमुना नदी देश की सबसे प्रदूषित नदी है।

विडंबना ये है कि दिल्ली सरकार का दावा है कि उसके पास पानी को साफ करने का इतना बड़ा बुनियादी ढांचा है कि वह दिल्ली में पैदा होने वाले गंदे पानी का 80% साफ कर सकता है और अगले दो महीने में यह क्षमता शत-प्रतिशत गंदे पानी को साफ करने की होगी।

सेंटर फॉर साइंस एंड एन्वायरन्मेंट (सीएसई) ने अपनी नई रिपोर्ट में पाया है कि यदि दिल्ली के एसटीपी के ट्रीटेड पानी को यदि यमुना में सीधे पहुंचाया जाता तो यमुना फिर से जीवंत हो जाती। लेकिन स्थिति यह है कि 37 में से 33 एसटीपी यमुना तटों से काफी दूर बने हैं।

उनका ट्रीटेड पानी जिन 22 नालों के जरिए यमुना में पहुंचता है, उनमें पहले से गंदा पानी बह रहा होता है, इसलिए पानी को ट्रीट करने का कोई फायदा ही नहीं होता। दिल्ली के ट्रीटेड पानी का केवल 10 फीसदी ही बागवानी सरीखे काम में इस्तेमाल होता है।

यमुना एक्शन प्लान-3 में 11 प्रोजेक्ट पर काम जारी

यमुना एक्शन प्लान-1 व 2 में यमुना की सफाई पर 1514.70 करोड़ रुपए खर्च हुए। दिल्ली सरकार ने यमुना की सफाई पर 2017 से 2022 के दौरान 6856.91 करोड़ रुपए खर्च किए। अब यमुना एक्शन प्लान-3 के तहत 2009.12 करोड़ रुपए दिल्ली में यमुना की सफाई के लिए 11 प्रोजेक्ट पर काम चल रहा है।

सीएसई के महानिदेशक सुनीता नारायण ने कहा कि दिल्ली से यमुना को मिलने वाले प्रदूषण का 84જ્% हिस्सा 22 नालों में से केवल दो नालों नजफगढ़ नाला और शाहदरा नाले से आ रहा है।

यमुना नदी के प्रदूषण की स्थिति बदतर होती जा रही

मानसून के बाद के 9 माह में नदी में न के बराबर पानी रहता है और केवल शहर के 22 नालों का कचरा व मल ही बहता है। दिल्ली में यमुना पल्ला गांव से प्रवेश करती है और वहां से आईएसबीटी पहुंचने तक यमुना में घुली हुई ऑक्सीजन का स्तर 5 से 6 मिलीग्राम प्रति लीटर होता है लेकिन आईएसबीटी आते ही यह मात्रा शून्य हो जाती है।

बल्कि दिल्ली के आगे के हिस्से में यमुना की बायोलॉजिकल ऑक्सीजन डिमांड तय सीमा से 40-50 गुना तक बढ़ जाती है। सूखे मौसम में एक लीटर पानी में फीकल कॉलीफॉर्म की संख्या 2 लाख से ज्यादा पहुंच जाती है।