वक्फ संशोधन एक्ट की वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट में बुधवार को लगातार दूसरे दिन सुनवाई हो रही है। केंद्र की तरफ से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कोर्ट से कहा कि यह ऐसा मामला नहीं है जहां मंत्रालय ने एक बिल बनाया और बिना सोच-विचार के वोटिंग कर दी गई हो। हम एक बहुत पुरानी समस्या को खत्म कर रहे हैं, जिसकी शुरुआत 1923 में देखी गई थी।
उन्होंने कहा कि कुछ याचिकाकर्ता पूरे मुस्लिम समुदाय की ओर से नहीं बोल सकते। आपके पास जो याचिकाएं आई हैं, वे ऐसे लोगों ने दायर की हैं जो सीधे इस कानून से प्रभावित नहीं हैं। किसी ने यह नहीं कहा कि संसद को यह कानून बनाने का अधिकार नहीं था। JPC की 96 बैठकें हुईं और हमें 97 लाख लोगों से सुझाव मिले, जिस पर बहुत सोच-समझकर काम किया गया।
कल 20 मई को CJI बीआर गवई, जस्टिस एजी मसीह और जस्टिस के. विनोद चंद्रन की बेंच के सामने केंद्र ने पहले उठे मुद्दों तक सुनवाई सीमित रखने का अनुरोध किया था। केंद्र की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा, सुनवाई उन तीन मुद्दों पर हो, जिन पर जवाब दाखिल किए हैं।
याचिकाकर्ताओं की ओर से सीनियर एडवोकेट कपिल सिब्बल, एएम सिंघवी और राजीव धवन पेश हुए। सिब्बल ने कहा, सरकार धार्मिक संस्थाओं की फंडिंग नहीं कर सकती। मस्जिद में मंदिरों की तरह 1000-2000 करोड़ चढ़ावे में नहीं होते।
इस पर CJI ने कहा, मैं मंदिर भी गया हूं, दरगाह और चर्च भी गया हूं। हर किसी के पास चढ़ावे का पैसा है। हालांकि सिब्बल ने कहा, दरगाह दूसरी बात है, मैं मस्जिदों की बात कर रहा हूं।
कोर्ट ने मुस्लिम पक्ष से कहा- राहत के लिए मजबूत दलीलें लाइए
बेंच ने कहा था कि मुस्लिम पक्ष को अंतरिम राहत पाने के लिए मामले को मजबूत और दलीलों को स्पष्ट करना चाहिए। याचिकाकर्ताओं का कहना था कि कोई संपत्ति ASI (आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया) के संरक्षण में है तो वह वक्फ संपत्ति नहीं हो सकती।
कोर्ट का सवाल था- क्या ASI की संपत्ति में प्रार्थना नहीं हो सकती, वक्फ प्रापर्टी ASI के दायरे में आने से धर्म पालन का हक छिन जाता है। इस पर याचिकाकर्ता के वकील कपिल सिब्बल ने बताया था कि नए कानून के तहत अगर कोई संपत्ति ASI संरक्षित है तो वह वक्फ संपत्ति नहीं हो सकती। वक्फ रद्द हो जाए तो फिर वह वक्फ संपत्ति नहीं। ये संविधान के अनुच्छेद 25 का उल्लंघन है।
इसी दलील पर CJI ने मुस्लिम पक्ष को हिदायत दी थी- “स्पष्ट मामला न हो तो कोर्ट हस्तक्षेप नहीं कर सकता। हर कानून के पक्ष में संवैधानिकता की धारणा होती है। हम अंतरिम राहत दे सकें, इसके लिए आपकी दलीलें बहुत मजबूत और स्पष्ट होनी चाहिए वरना, संवैधानिकता की धारणा बनी रहेगी।”
नए वक्फ कानून के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट सिर्फ 5 मुख्य याचिकाओं पर ही सुनवाई कर रहा है। इसमें AIMIM सांसद असदुद्दीन ओवैसी की याचिका शामिल है। सुप्रीम कोर्ट ने दोनों पक्षों को बहस के लिए 7 घंटे का वक्त तय किया है। मंगलवार को 3 घंटे तक याचिकाकर्ताओं की दलीलें सुनने के बाद बेंच ने मामला आज तक के लिए स्थगित कर दिया था।
20 मई की सुनवाई की बड़ी बातें…
सरकार का पक्ष
- कुल तीन मुद्दे हैं, जिन पर रोक लगाने की मांग की गई है। उस पर जवाब दाखिल कर दिया है। कोर्ट केवल इन्हीं मुद्दों पर सुनवाई को सीमित रखे।
- यह कानून पारदर्शिता, जवाबदेही और प्रशासनिक सुधार के लिए लाया गया है।
- कानून संविधान के खिलाफ नहीं है और धार्मिक स्वतंत्रता या अधिकारों में हस्तक्षेप नहीं करता है।
- वक्फ अपने स्वभाव से ही धर्मनिरपेक्ष अवधारणा है। संवैधानिकता के अनुमान को देखते हुए इसे रोका नहीं जा सकता।
- संसद से पारित कानून को रोका नहीं जा सकता। अंतरिम आदेश से पहले कानून की संवैधानिकता का व्यापक परीक्षण किया जाए।
याचिकाकर्ताओं की दलीलें
- सिर्फ तीन मुद्दे नहीं, पूरे वक्फ पर अतिक्रमण मुद्दा है। कोई भी सुनवाई टुकड़ों में नहीं हो सकती। सरकार तय नहीं करेगी कि कौन से मुद्दे उठाए जाएं। अगर प्रावधान लागू हुए नुकसान तो भरपाई मुश्किल होगी।
- 2025 के संशोधनों को वक्फ पर कब्जा करने के लिए डिजाइन किया गया है, जो गैर-न्यायिक है। संशोधनों ने “एक बार वक्फ, हमेशा वक्फ” के सिद्धांत को निरस्त कर दिया है।
- रजिस्ट्रेशन न होने से वक्फ की वैधता पर असर नहीं होता था। केवल जुर्माना लगता था। संशोधन के बाद अगर रजिस्ट्रेशन नहीं हुआ तो वक्फ को मान्यता नहीं मिलेगी।
- कानून में जांच के लिए कोई प्रक्रिया-डेडलाइन तय नहीं है। जमीन के एक टुकड़े पर भी विवाद होने पर पूरी संपत्ति का वक्फ दर्जा खत्म हो जाएगा।
- यह शर्त रखी गई है कि केवल 5 साल तक इस्लाम का पालन करने वाला व्यक्ति ही वक्फ बना सकता है, जिसे असंवैधानिक बताकर चुनौती दी गई।
- पहले वक्फ बोर्ड का CEO मुस्लिम होना जरूरी था। अब गैर मुस्लिम हो सकता है, यह वक्फ संपत्तियों पर कब्जा करने का प्रयास है।
सुप्रीम कोर्ट के सवाल
- क्या पहले वक्फ संपत्ति का रजिस्ट्रेशन अनिवार्य था या सिर्फ निर्देश था?
- क्या वक्फ प्रापर्टी एएसआई के दायरे में आने से धर्म पालन का हक छिन जाता है? खजुराहो में एएसआई संरक्षित मंदिर में पूजा-अर्चना होती है।
- क्या एएसआई की संपत्ति में प्रार्थना नहीं हो सकती? स्पष्ट मामला न हो तो कोर्ट हस्तक्षेप नहीं कर सकता।
- संशोधन लागू होने के बाद वक्फ बोर्ड में गैर मुस्लिमों का बहुमत कैसे हो जाएगा? कहां लिखा है सांसद गैर मुस्लिम होगा?
सुप्रीम कोर्ट में पिछली सुनवाई…
15 मई: कोर्ट ने कहा था- अंतरिम राहत देने पर विचार करेंगे
15 मई की सुनवाई में तब CJI बीआर गवई और जस्टिस एजी मसीह ने केंद्र और याचिकाकर्ता को 19 मई तक हलफनामा पेश करने को कहा था। दोनों पक्षों के वकीलों ने कहा था कि याचिकाओं के मुद्दों पर नजर डालने के लिए जजों को कुछ और वक्त की जरूरत हो सकती है। केंद्र ने भी कहा कि सुप्रीम कोर्ट जब तक मामले को सुन रहा है, तब तक कानून के अहम प्रावधान लागू नहीं होंगे, यथास्थिति बनी रहेगी।
25 अप्रैल: केंद्र ने दायर किया था 1300 पेज का हलफनामा
केंद्र ने 25 अप्रैल को दायर हलफनामे में कहा था कि कानून पूरी तरह संवैधानिक है। यह संसद से पास हुआ है, इसलिए इस पर रोक नहीं लगाई जानी चाहिए। 1332 पन्नों के हलफनामे में सरकार ने दावा किया 2013 के बाद से वक्फ संपत्तियों में 20 लाख एकड़ से ज्यादा का इजाफा हुआ। इस वजह से कई बार निजी और सरकारी जमीनों पर विवाद हुआ।
17 अप्रैल: सॉलिसिटर जनरल बोले- लाखों सुझावों के बाद कानून बना
17 अप्रैल की सुनवाई में SG मेहता ने कहा था कि संसद से ‘उचित विचार-विमर्श के साथ’ पारित कानून पर सरकार का पक्ष सुने बिना रोक नहीं लगाई जानी चाहिए। उन्होंने कहा था कि लाखों सुझावों के बाद नया कानून बना है। ऐसे कई उदाहरण हैं, जिनमें गांवों को वक्फ ने हड़प लिया। कई निजी संपत्तियों को वक्फ में ले लिया गया। इस पर बेंच ने कहा कि हम अंतिम रूप से निर्णय नहीं ले रहे हैं।
16 अप्रैल: सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र को तीन निर्देश दिए थे
कानून के खिलाफ दलील दे रहे कपिल सिब्बल ने कहा,’हम उस प्रावधान को चुनौती देते हैं, जिसमें कहा गया है कि केवल मुसलमान ही वक्फ बना सकते हैं। सरकार कैसे कह सकती है कि केवल वे लोग ही वक्फ बना सकते हैं जो पिछले 5 सालों से इस्लाम को मान रहे हैं? इतना ही नहीं, राज्य कैसे तय कर सकता है कि मैं मुसलमान हूं या नहीं और इसलिए वक्फ बनाने के योग्य हूं?’