अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) के निदेशक डॉ. रणदीप गुलेरिया ने कहा है कि कोरोना वायरस एक सामान्य बीमारी है। पैनिक की जरूरत नहीं है। कोरोना वायरस से जुड़े एक ऑनलाइन कार्यक्रम को संबोधित करते हुए रणदीप गुलेरिया ने कहा कि देश में 10-15 फीसदी लोग ही हैं, जिन्हें गंभीर संक्रमण होता है। फिर इन्हें रेमडेसिविर, ऑक्सीजन या प्लाज्मा की जरूरत पड़ सकती है। कोरोना की मौजूदा स्थिति की बात करें तो जनता में घबराहट का आलम है, लोग अपने घरों में रेमडेसिविर इंजेक्शन जमा कर रहे हैं। ऑक्सीजन सिलेंडर जुटा रहे हैं। जिसका परिणाम यह हुआ है कि ऑक्सीजन आपूर्ति का संकट पैदा हो गया है। एक अनावश्यक अफरातफरी का माहौल पैदा हो गया है।
रणदीप गुलेरिया ने कहा कि कोविड-19 का संक्रमण एक सामान्य इंफेक्शन है। करीब 90 फीसद लोगों में बुखार, जुकाम, शरीर में दर्द, खांसी जैसे मामूली लक्षण सामने आते हैं। जिसमें रेमडेसेविर सरीखे दवाओं की जरूरत नहीं पड़ती। घरेलू औषधि और योग के जरिये अपना इलाज कर सकते हैं। इससे आप सात से 10 दिन के भीतर ठीक हो सकते हैं। आपको घर पर रेमडेसिविर इंजेक्शन या ऑक्सीजन रखने की जरूरत बिल्कुल नहीं है।
10-15 फीसद लोग ही करते हैं गंभीर संक्रमण का सामना
एम्स निदेशक ने कहा कि केवल 10-15 फीसद लोग ही कोरोना के गंभीर संक्रमण का सामना करते हैं। जबकि पांच फीसद से भी कम मरीजों को वेंटिलेटर की जरूरत पड़ सकती है।
रिपोर्ट पॉजिटिव आए तो तत्काल न भागें अस्पताल
इसके साथ ही रणदीप गुलेरिया ने यह भी कहा, अगर हम इस डेटा को देखें तो पता चलता है कि घबराहट या अफरातफरी की कोई वजह नहीं है। अगर किसी की रिपोर्ट ऑजिटिव आती है तो वो तुरंत अस्पताल या ऑक्सीजन पाने के लिए नहीं दौड़े।
बता दें कि ऑनलाइन परिचर्चा कार्यक्रम में मेदांता के चेयरमैन डॉ नरेश त्रेहन, एम्स के मेडिसिन विभाग के प्रमुख और प्रोफेसर डॉ. नवीत विग और स्वास्थ्य सेवाओं के महानिदेशक डॉ. सुनील कुमार भी शामिल थे।