मानसून में बारिश से तापमान कम हो जाता है, लेकिन शरीर की पानी की जरूरत कम नहीं होती है। नमी और ठंडक के बावजूद शरीर से पसीने और यूरिन के जरिए पानी जाता रहता है। इसलिए पानी पीते रहना जरूरी है। कई लोग सोचते हैं कि ज्यादा पानी पीना हमेशा फायदेमंद होता है, जबकि हद से ज्यादा पानी पीने से इलेक्ट्रोलाइट्स का संतुलन बिगड़ सकता है और हाइपोनैट्रेमिया जैसी समस्या हो सकती है। सबसे कॉमन गलतफहमी यह है कि प्यास लगना ही पानी की जरूरत का संकेत है। हकीकत में, प्यास एक देर से आने वाला संकेत है- खासकर मानसून जैसे मौसम में जब प्यास कम लगती है। इस तरह के सभी मिथकों की सच्चाई जानना जरूरी है, ताकि मानसून में भी शरीर हाइड्रेटेड और स्वस्थ बना रहे।
आज ‘फिजिकल हेल्थ’ में हम हाइड्रेशन को लेकर मिथक और सच्चाई पर बात करेंगे। साथ ही जानेंगे कि-
- बारिश का पानी पीने के लिए कितना सुरक्षित होता है?
- यूरिन का रंग पानी जैसा होने का मतलब क्या है?
मिथक 1: बारिश के मौसम में कम पानी पीने की जरूरत होती है।
सच्चाई: भले ही मानसून में गर्मी कम होती है और पसीना कम निकलता है, लेकिन शरीर की पानी की जरूरत वैसी ही बनी रहती है। असल में हवा में नमी ज्यादा होने से पसीना जल्दी सूख जाता है, जिससे यह लगता है कि हमें पसीना नहीं आ रहा है। हालांकि, शरीर में लगातार वाष्पन की प्रक्रिया जारी रहती है और यूरिन के जरिए भी पानी शरीर से बाहर निकलता है। अगर पानी कम पिया जाए तो शरीर की कोशिकाएं ठीक से काम नहीं कर पातीं, जिससे थकान, चक्कर या सिरदर्द महसूस हो सकता है। इससे डिहाइड्रेशन की स्थिति पैदा हो सकती है।
मिथक 2: बारिश का पानी पीने के लिए सुरक्षित होता है।
सच्चाई: बारिश का पानी ‘डिस्टिल्ड’ भले ही दिखता है, लेकिन यह वायुमंडल से गुजरते समय उसमें मौजूद पॉल्यूटेंट्स, बैक्टीरिया और केमिकल्स को सोख लेता है। खासतौर पर शहरी इलाकों में, यह पानी एसिडिक हो सकता है और इसमें माइक्रोब्स भी हो सकते हैं। अगर यह पानी बिना उबाले या फिल्टर किए पिया जाए तो इसे पीने से संक्रमण और पेट की बीमारियों का खतरा हो सकता है।
मिथक 3: पानी पीना हमेशा फायदेमंद होता है।
सच्चाई: पानी पीना जरूरी है, लेकिन हर चीज की तरह इसकी भी एक सीमा होती है। अगर जरूरत से ज्यादा पानी पीया जाए तो इससे हाइपोनेट्रीमिया जैसी स्थिति पैदा हो सकती है, जिसमें शरीर में सोडियम जैसे जरूरी इलेक्ट्रोलाइट्स बहुत कम हो जाते हैं। इसका असर यह होता है कि कोशिकाओं में पानी भरने लगता है, जिससे दिमाग में सूजन, मतली, सिरदर्द, भ्रम और गंभीर मामलों में बेहोशी तक हो सकती है।
मिथक 4: प्यास लगना ही हाइड्रेशन की सही पहचान है।
सच्चाई: यह सच नहीं है। हमें प्यास तब महसूस होती है, जब शरीर को पानी की कमी महसूस होती है। असल में पानी तो शरूर में पहले ही कम हो चुका होता है यानी यह शरीर का देर से आने वाला एक अलार्म है। शरीर के ऑर्गन्स और सेल में जब पानी की कमी होने लगती है, तब ब्रेन हाइपोथैलेमस के जरिए प्यास का मैसेज भेजता है। मानसून के मौसम में जब वातावरण ठंडा होता है, तब प्यास की अनुभूति और भी धीमी हो जाती है, जिससे डिहाइड्रेशन का खतरा बढ़ जाता है।मिथक 5: सिर्फ पानी ही हाइड्रेशन के लिए पर्याप्त है।सच्चाई: शरीर की हाइड्रेशन जरूरतों को पूरा करने के लिए सिर्फ पानी ही नहीं, बल्कि इलेक्ट्रोलाइट्स और फ्लूइड्स से भरपूर ड्रिंक्स और भोजन भी मदद करते हैं। उदाहरण के लिए खीरे में 95% तक पानी होता है। तरबूज, संतरा और छाछ में पानी ही नहीं, जरूरी मिनरल्स भी होते हैं। ये पानी के साथ मिलकर कोशिकाओं के कामकाज और तापमान नियंत्रण में मदद करते हैं।मिथक 6: मानसून में ठंडा पानी पीने से गला खराब होता हैसच्चाई: ठंडा पानी पीना सीधे तौर पर कभी किसी संक्रमण या सर्दी-जुकाम का कारण नहीं होता है। बीमारियां वायरस और बैक्टीरिया से होती हैं, न कि पानी के ठंडे तापमान से होती हैं। जब तक आपका शरीर ठंडा पानी सहन कर पा रहा है और आपको इससे कोई परेशानी नहीं हो रही है, तब तक इसे पीना पूरी तरह सुरक्षित है। हां, अगर गले में पहले से सूजन है या सर्दी-जुकाम है, तब ठंडा पानी पीने से थोड़ी परेशानी हो सकती है।
मिथक 7: बिल्कुल साफ पेशाब मतलब शरीर पूरी तरह हाइड्रेटेड है।
सच्चाई: यह सच नहीं है। बहुत ज्यादा पानी पीने से पेशाब तो बिल्कुल पारदर्शी हो सकती है, लेकिन इससे जरूरी इलेक्ट्रोलाइट्स जैसे सोडियम और पोटैशियम शरीर से निकल सकते हैं। इसका मतलब ये नहीं कि शरीर पूरी तरह हेल्दी हाइड्रेटेड है। हेल्दी हाइड्रेशन का सबसे अच्छा संकेत पेशाब का हल्का पीला रंग है, जो बताता है कि न तो शरीर में पानी की कमी है और न ही एक्स्ट्रा फ्लशिंग हो रही है। यूरिन का बिल्कुल साफ होने का मतलब बीमारी का इशारा भी हो सकता है-
मिथक 8: मानसून में इलेक्ट्रोलाइट्स की जरूरत नहीं होती है।
सच्चाई: मानसून के मौसम में भी जब हम पसीना बहाते हैं या उल्टी-दस्त जैसी समस्या होती है, तब शरीर से जरूरी इलेक्ट्रोलाइट्स बाहर निकलते हैं। इलेक्ट्रोलाइट्स जैसे- सोडियम, पोटेशियम, मैग्नीशियम न सिर्फ कोशिकाओं में पानी के संतुलन को बनाए रखते हैं, बल्कि मांसपेशियों की सक्रियता, नर्व सिग्नल और दिल की धड़कनों को नियंत्रित करने में भी मदद करते हैं। इन्हें संतुलित बनाए रखने के लिए दही, केला, नारियल पानी जैसी चीजें आहार में जरूर शामिल करें।
मिथक 9: ज्यादा पसीना आने का मतलब है ज्यादा पानी पीना जरूरी है।
सच्चाई: मानसून में उमस के कारण सामान्य से ज्यादा पसीना आ सकता है। पसीना शरीर का तापमान नियंत्रित करने का तरीका है, लेकिन हर बार ज्यादा पसीना आने का मतलब यह नहीं कि आपको बहुत ज्यादा पानी की जरूरत है। जरूरी यह है कि आप पसीने के साथ खोए हुए इलेक्ट्रोलाइट्स की भरपाई भी करें। सिर्फ पानी पीते रहने से सोडियम और पोटैशियम का संतुलन बिगड़ सकता है। अगर आप बहुत पसीना बहाते हैं तो नारियल पानी, नमक-चीनी का घोल या इलेक्ट्रोलाइट ड्रिंक लेना ज्यादा असरदार है।