पुलिस भर्ती घोटाला में अब भ्रष्टाचार की धाराएं लगेंगी:हरियाणा में 42 लाख रुपए का लेनदेन; हाईकोर्ट सख्त, FIR नहीं होगी रद

पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट ने 42 लाख रुपए के पुलिस नौकरी घोटाला मामले में दर्ज एफआईआर रद्द करने से इनकार कर दिया। जस्टिस जसजीत सिंह बेदी की कोर्ट ने फैसला सुनाया कि गुरमीत, जो शुरू में मामले में शिकायतकर्ता था, लेकिन बाद में उसे आरोपी बनाया गया, के खिलाफ जांच और पूरक आरोप पत्र कानूनी रूप से सही हैं और इस स्तर पर हस्तक्षेप करने योग्य नहीं है।

जनवरी 2017 में सिरसा के ऐलनाबाद थाने में गुरमीत की शिकायत पर मामला दर्ज किया गया था। गुरमीत ने आरोप लगाया था कि छह लोगों ने कथित राजनीतिक और पुलिस संबंधों के ज़रिए उनके बेटे को चंडीगढ़ पुलिस में सहायक उप-निरीक्षक (ASI) की नौकरी दिलाने का वादा करके उनसे 42 लाख रुपए ऐंठ लिए। कुछ भुगतान के बाद, सौदा टूट गया और आरोपियों ने कथित तौर पर गुरमीत को धमकाया।

जांच में भ्रष्टाचार एक्ट की धाराओं को शामिल करना जरूरी

कोर्ट ने अन्य अभियुक्तों के ख़िलाफ सिर्फ़ शुरुआती रिपोर्ट के आधार पर आरोप तय करने को भी रद्द कर दिया और कहा कि आगे की जांच में भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम की धारा 8 के तहत अपराध को शामिल किया जाना चाहिए। अदालत ने यह भी निर्देश दिया कि निचली अदालत आरोप तय करते समय सभी रिपोर्टों, शुरुआती, पूरक और अंतिम पर विचार करे।

SIT का गठन किया

कई वर्षों तक चली मुकदमेबाजी के बाद, इस साल की शुरुआत में एक विशेष जांच दल (SIT) का गठन किया गया। एसआईटी ने घोटाले में गुरमीत की सक्रिय भूमिका का हवाला देते हुए उसे आरोपी बनाया। पूरक आरोपपत्र में भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 120बी (आपराधिक षडयंत्र), 406 (आपराधिक विश्वासघात), 420 (धोखाधड़ी), 506 (आपराधिक धमकी) और 109 (उकसाने) के साथ-साथ भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम की धारा 8 भी लगाई गई।

HC बोला- एफआईआर रद्द करने का सवाल ही नहीं

जस्टिस बेदी ने कहा कि गुरमीत के खिलाफ एफआईआर या पूरक रिपोर्ट को रद्द करने का कोई आधार नहीं है। उन्होंने कहा कि याचिकाकर्ता के संबंध में एफआईआर संख्या 0016 दिनांक 18 जनवरी 2017 और अंतिम रिपोर्ट संख्या 1बी दिनांक 06 मार्च 2025 को रद्द करने का सवाल ही नहीं उठता और यह याचिका खारिज की जाती है।

कोर्ट ने मामले पर की तल्ख टिप्पणी

गुरमीत की इस दलील पर कि उसे आरोपी के रूप में नामित करना संविधान के अनुच्छेद 20(3) (आत्म-दोषसिद्धि के विरुद्ध संरक्षण) का उल्लंघन है, अदालत ने स्पष्ट किया कि यह संरक्षण तभी लागू होता है जब किसी व्यक्ति पर औपचारिक रूप से आरोप लगाया जाता है।

जस्टिस बेदी ने सुप्रीम कोर्ट के निर्णयों का हवाला देते हुए कहा कि जांच के दौरान किसी व्यक्ति द्वारा जांच एजेंसी को उपलब्ध कराए गए किसी भी साक्ष्य का निश्चित रूप से उस व्यक्ति के खिलाफ इस्तेमाल किया जा सकता है, यदि उसने अभी तक आरोपी का दर्जा प्राप्त नहीं किया है, जो केवल तभी प्राप्त किया जा सकता है जब उसके खिलाफ औपचारिक आरोप हो।

संरक्षण का दावा नहीं कर सकता आरोपी

न्यायाधीश ने कहा कि इस मामले में, याचिकाकर्ता के खिलाफ औपचारिक आरोप तभी लगाया गया जब पूरक चालान प्रस्तुत किया गया, इसलिए, अभियुक्त का दर्जा प्राप्त करने से पहले याचिकाकर्ता द्वारा प्रदान की गई कोई भी सामग्री आत्म-दोषसिद्धि के बराबर नहीं होगी और इसलिए, वह अनुच्छेद 20(3) के तहत संरक्षण का दावा नहीं कर सकता। भ्रष्टाचार के आरोपों पर बोलते हुए, जस्टिस बेदी ने स्पष्ट किया कि भ्रष्टाचार निवारण (पीसी) अधिनियम की धारा 8 निजी व्यक्तियों को भी कवर करती है।

पीसी अधिनियम के तहत अपराध या तो एक लोक सेवक या एक निजी व्यक्ति या दोनों के संयोजन द्वारा किया जा सकता है। विशेष न्यायालय के समक्ष मुकदमे का सामना करने के लिए एक लोक सेवक का अस्तित्व आवश्यक नहीं है और यहां तक ​​कि उसकी अनुपस्थिति में भी, मामले के तथ्यों के आधार पर, निजी व्यक्तियों पर ऐसे अपराधों के लिए मुकदमा चलाया जा सकता है।

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