LMV लाइसेंस से लाइट ट्रांसपोर्ट गाड़ी चलाना वैध- हाईकोर्ट:बीमा कंपनी की अपील खारिज, हाईकोर्ट ने 20 लाख का मुआवजा बरकरार रखा

राजस्थान हाईकोर्ट जोधपुर ने यूनाइटेड इंडिया इंश्योरेंस कंपनी की अपील खारिज करते हुए मोटर दुर्घटना पीड़ित परिवार को 20.20 लाख रुपये का मुआवजा बरकरार रखा है। जस्टिस मनोज कुमार गर्ग ने अपने फैसले में लाइट मोटर व्हीकल (LMV) लाइसेंस धारक लाइट ट्रांसपोर्ट व्हीकल (LTV) चला सकता है, बशर्ते गाड़ी का वजन 7500 किलोग्राम से कम हो।​

दरअसल, 7 अगस्त 2012 को पाली जिले के सुमेरपुर में हुई मोटर दुर्घटना में कालूराम की मौत हो गई थी। मृतक की पत्नी ललिता देवी की ओर से मोटर एक्सीडेंट क्लेम ट्रिब्यूनल में मुआवजे की याचिका दायर की थी। इसमें एक्सिडेंट करने वाली कार के ड्राइवर फालना निवासी नारायणसिंह, की लापरवाही और तेज गति को दुर्घटना का कारण बताया गया था।​

ट्रिब्यूनल ने 20 जनवरी 2017 को याचिकाकर्ताओं के पक्ष में 20 लाख 20 हजार रुपये मुआवजा दिया था, जिस पर 9 प्रतिशत वार्षिक ब्याज भी तय किया गया था। बीमा कंपनी को मुआवजा देने के लिए उत्तरदायी ठहराया गया था। इसी फैसले को चुनौती देते हुए बीमा कंपनी ने हाईकोर्ट में अपील दायर की।​

बीमा कंपनी ने कहा – पॉलिसी शर्तों का उल्लंघन किया

बीमा कंपनी की ओर से वकील ने हाईकोर्ट में पैरवी करते हुए तर्क दिया कि दुर्घटना के समय ड्राइवर के पास लाइट मोटर व्हीकल का लाइसेंस था, जबकि वह लाइट ट्रांसपोर्ट व्हीकल चला रहा था। इसके अलावा, गाड़ी के पास आवश्यक परमिट और फिटनेस सर्टिफिकेट भी नहीं थे। वकील ने कहा कि ड्राइवर ने बीमा पॉलिसी की शर्तों का उल्लंघन किया था, इसलिए बीमा कंपनी पर मुआवजा देने की जिम्मेदारी नहीं बनती। दुर्घटना मृतक की अपनी लापरवाही से हुई थी, इसलिए ट्रिब्यूनल ने गलत तरीके से बीमा कंपनी को उत्तरदायी ठहराया है।​

पीड़ित परिवार का पक्ष

पीड़ित ललिता देवी की ओर से अधिवक्ता ने बीमा कंपनी की अपील का विरोध किया। वकील ने तर्क दिया कि ट्रिब्यूनल द्वारा पारित मुआवजा न्यायसंगत है और दुर्घटना के समय ड्राइवर के पास वैध लाइसेंस था। गाड़ी लाइट मोटर व्हीकल की श्रेणी में आती थी, इसलिए कोर्ट को ट्रिब्यूनल के फैसले में हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए।​

हाईकोर्ट ने खारिज किया बीमा कंपनी का तर्क

हाईकोर्ट ने दोनों पक्षों की दलीलों का अध्ययन करने के बाद बीमा कंपनी के मुख्य तर्क को खारिज कर दिया। कोर्ट ने कहा कि मोटर व्हीकल्स एक्ट की धारा 10 के अनुसार ड्राइवर को गाड़ियों की श्रेणी (class) के लिए लाइसेंस रखना होता है, न कि गाड़ियों के प्रकार (type) के लिए। एक ही श्रेणी में विभिन्न प्रकार की गाड़ियां हो सकती हैं और उन्हें चलाने के लिए अलग से एंडोर्समेंट की जरूरत नहीं होती।​

कोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के मुकुंद देवांगन बनाम ओरिएंटल इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड मामले का हवाला देते हुए स्पष्ट किया कि लाइट मोटर व्हीकल में ट्रांसपोर्ट व्हीकल भी शामिल है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि 7500 किलोग्राम से कम वजन वाली कोई भी गाड़ी लाइट मोटर व्हीकल की श्रेणी में आती है और LMV लाइसेंस धारक ऐसी सभी गाड़ियां चला सकता है।​

कोर्ट ने बजाज एलायंस जनरल इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड बनाम रम्भा देवी मामले का भी संदर्भ दिया। इन फैसलों के आधार पर कोर्ट ने कहा कि बीमा कंपनी का लाइसेंस वैधता संबंधी तर्क बेबुनियाद है।​

लाइसेंस वैध, गाड़ी का वजन भी सीमा से कम

कोर्ट ने जांच में पाया कि ड्राइवर के पास LMV लाइसेंस था जो 26 दिसंबर 2003 को जारी हुआ था और 25 दिसंबर 2013 तक वैध था। दुर्घटना 7 अगस्त 2012 को हुई थी, जो लाइसेंस की वैधता अवधि में थी। गाड़ी के रजिस्ट्रेशन विवरण से पता चला कि खाली गाड़ी का वजन केवल 800 किलोग्राम था, जो 7500 किलोग्राम की सीमा से बहुत कम था।​

कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि 1994 के संशोधन अधिनियम संख्या 54 के बाद भी लाइट मोटर व्हीकल की परिभाषा से ट्रांसपोर्ट व्हीकल को बाहर नहीं किया गया है। धारा 10(2)(d) में उल्लिखित लाइट मोटर व्हीकल श्रेणी में ट्रांसपोर्ट व्हीकल शामिल रहते हैं। ड्राइवर के पास वैध लाइसेंस था और गाड़ी निर्धारित वजन सीमा के भीतर थी।​

हाईकोर्ट ने कहा कि ट्रिब्यूनल ने बीमा कंपनी की संयुक्त और पृथक देयता को सही तरीके से तय किया था। बीमा कंपनी की अपील में दम नहीं है, इसलिए इसे खारिज खारिज कर दिया गया।

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