ईरान ने जून में इजराइल-अमेरिका के साथ 12 दिन चले युद्ध के बाद देश में जासूसी के खिलाफ आक्रामक अभियान छेड़ रखा है।
पिछले 2 महीने में पुलिस ने देशभर में ताबड़तोड़ छापेमारी कर 21 हजार से ज्यादा लोगों को जेल में डाला है। इन पर अमेरिका और इजराइल के लिए ईरानी की जासूसी करने के आरोप लगे हैं। इनमें आम नागरिक, वैज्ञानिक, परमाणु एक्सपर्ट से लेकर डॉक्टर-इंजीनियर भी शामिल है।
ईरान के कानून प्रवर्तन प्रवक्ता सईद मोंतजेरोलमहदी के मुताबिक, इजराइली और अमेरिकी हमलों के बाद सुरक्षा बलों ने देशभर में तलाशी अभियान चलाया है।
जनता से संदिग्धों की सूचना देने की अपील के जरिए गिरफ्तारी की गईं। जनता से मिली सूचनाओं में 41% की वृद्धि दर्ज की गई।
परमाणु वैज्ञानिक सहित 7 लोगों को जासूसी के आरोप में फांसी दी
ईरान ने इजराइल के लिए जासूसी करने के आरोप में 7 व्यक्तियों को फांसी दी। इनमें ईरान के एक परमाणु वैज्ञानिक रूजबेह वादी भी शामिल हैं।
उन्हें इजराइल के लिए जासूसी करने के आरोप में 6 अगस्त 2025 को फांसी दी गई। उन पर आरोप था कि उन्होंने इजराइल की खुफिया एजेंसी मोसाद को संवेदनशील जानकारी प्रदान की थी।
इसके अलावा 3 कुर्द नागरिकों एड्रिस अली, आज़ाद शोझाई और रसूल अहमद रसूल को इजराइल के लिए जासूसी करने के आरोप में फांसी दी गई।
इनकी फांसी 25 जून 2025 को हुई। इन पर आरोप था कि उन्होंने 2020 में ईरान के परमाणु वैज्ञानिक मोहसिन फखरीजादेह की हत्या में मदद की थी।
बता दें कि इजराइल के ऑपरेशन ‘राइजिंग लॉयन’ के तहत किए गए हमलों में ईरान के कई 20 शीर्ष सैन्य अधिकारी और 14 परमाणु वैज्ञानिक मारे गए। इसके अलावा, 974 आम लोग मारे गए और 1484 घायल हुए। ईरान के परमाणु संयत्रों के नुकसान पहुंचा था।
2 महीने में 13 लाख अफगान शरणार्थियों को निर्वासित किया
इजराइली हमले के बाद ईरान में अफगानी शरणार्थियों के खिलाफ गुस्सा चरम पर है। उन्हें जासूस बताकर बड़े पैमाने पर निर्वासित किया जा रहा है जिससे पहले से अस्थिरता से गुजर रहे अफगानिस्तान में मानवीय संकट गंभीर हो गया है।
संयुक्त राष्ट्र शरणार्थी एजेंसी के अनुसार, 2 माह में ईरान से 13 लाख से अधिक अफगान शरणार्थि लौट चुके हैं और यह संख्या साल के अंत तक 30 लाख तक पहुंच सकती है।
इस्लाम कला सीमा चौकी से हर दिन 30,000 से 50,000 अफगान लौट रहे हैं। कई परिवार रातोंरात अपने घर खाली कर रहे हैं, तो कुछ को केवल पहनावे के साथ ही निकलना पड़ा। महिलाओं और बच्चों की स्थिति सबसे खराब है।
कई महिलाएं केवल एक जूते पहनकर लौट रही हैं, क्योंकि दूसरा जूता निर्वासन छापे में खो गया। अफगानिस्तान में पहले से ही 2.37 करोड़ लोग (आबादी का आधा से अधिक) मानवीय सहायता पर निर्भर हैं। अफगानिस्तान में आर्थिक स्थिति भी गंभीर है।
बेरोजगारी चरम पर है, बैंकिंग प्रतिबंधों ने व्यापार और आयात-निर्यात प्रभावित किया है, और विदेशों में काम करने वाले अफगानों से आने वाले पैसे में कमी आई है।
अमेरिकी विदेश मंत्री मार्को रुबियो ने अफगानिस्तान के लिए लगभग ₹8,580 करोड़ की 22 सहायता योजनाएं समाप्त कर दी हैं, जिससे संकट और बढ़ गया। तालिबान शासन के तहत लौटने वाली महिलाओं पर शिक्षा, रोजगार और स्वतंत्र आवागमन पर सख्त पाबंदियां हैं।