कैमूर में अब आम के साथ ड्रेगन फ्रूट की खेती:आर्मी से रिटायर होने के बाद खेती को बनाया पहली पसंद, प्राकृतिक खाद का करते हैं इस्तेमाल

आर्मी से रिटायर होने के बाद खेती-बाड़ी को अपनी पसंद बनाने वाले कैमूर के रामगढ़ प्रखंड के बड़ौरा गांव निवासी सूबेदार(सेवानिवृत्त) प्रवीण सिंह आम की बागवानी के साथ ही ड्रेगन फ्रूट की खेती कर रहे हैं।

उनका यह नवाचार बिहार की जलवायु में ड्रेगन फ्रूट की खेती को नया आयाम दे सकता है। आम के पेड़ों के बीच ड्रेगन फ्रूट के पौधे लगाकर उन्होंने इस फल के लिए अनुकूल तापमान का वातावरण तैयार किया है।

लू और गर्मी से पौधों को बचाने का नया तरीका

ड्रेगन फ्रूट को अत्यधिक गर्मी और लू से नुकसान होता है। आमतौर पर किसान इसे हरे तिरपाल से ढककर सुरक्षित करते हैं, लेकिन प्रवीण सिंह ने इसका अनोखा समाधान निकाला।उन्होंने आम के बगीचे के बीच में 50 टावरों के सहारे लगभग 200 पौधे लगाए। आम के पेड़ छाया और तापमान का संतुलन बनाए रखते हैं, जिससे पौधों की बढ़ोतरी, फ्लॉवरिंग और फ्रूटिंग दोनों ही बेहतर होती है।

रासायनिक खाद से दूरी, प्राकृतिक खाद से सफलता

प्रवीण सिंह किसी भी तरह की रासायनिक खाद या बाजार की तैयार ऑर्गेनिक खाद का उपयोग नहीं करते। वे नीम की खली, सरसों की खली और हरी खाद का प्रयोग करते हैं। प्राकृतिक खाद का असर यह हुआ कि ड्रेगन फ्रूट के पौधों में सिर्फ एक साल में ही फ्लॉवरिंग और फ्रूटिंग शुरू हो गई, जबकि सामान्यता यह प्रक्रिया डेढ़ साल बाद होती है। इस उपलब्धि से कृषि विभाग के वैज्ञानिक भी आश्चर्यचकित हैं।

स्थानीय किसान से मिला बीज, विदेशी प्रजाति का प्रयोग

प्रवीण सिंह बताते हैं कि उन्हें ड्रेगन फ्रूट के पौधे रामगढ़ प्रखंड के जल्दाहा गांव के किसान अजय सिंह से मिले, जो कैमूर के पहले किसान हैं जिन्होंने अमेरिकन ड्रेगन फ्रूट की खेती की थी।उन्होंने अपने खेत में अमेरिकन ब्यूटी प्रजाति के पौधे लगाए हैं, जिनका फल अंदर और बाहर दोनों तरफ लाल रंग का होता है।

फंगस और गर्मी से बचाव के लिए नीम का उपयोग

ड्रेगन फ्रूट के पौधों को सबसे बड़ा खतरा फंगस और लू से होता है। इसके बचाव के लिए प्रवीण सिंह नीम की पत्ती का अर्क और नीम के तेल का छिड़काव करते हैं।हर साल आम के पेड़ों की छंटाई कर दी जाती है ताकि ड्रेगन फ्रूट के पौधों को पर्याप्त धूप मिले।इस प्रक्रिया से आम का उत्पादन भी बढ़ गया है।

एक टावर से 12-15 किलो तक उत्पादन

प्रवीण सिंह बताते हैं, एक टावर से करीब 12 से 15 किलो ड्रेगन फ्रूट की उपज होती है। बाजार में इस फल की मांग लगातार बढ़ रही है। आने वाले दिनों में वे ऑनलाइन मार्केटिंग से ड्रेगन फ्रूट की बिक्री की योजना बना रहे हैं।

किसानों के लिए संदेश, प्राकृतिक खेती ही भविष्य

प्रवीण सिंह का कहना है कि किसानों को रासायनिक खाद से दूरी बनाकर प्राकृतिक खाद का इस्तेमाल करना चाहिए। इससे न केवल आमदनी बढ़ती है, बल्कि मिट्टी की सेहत और पौधों की उम्र भी बढ़ती है।

प्राकृतिक खाद से एक साल में ही फ्लॉवरिंग और फ्रूटिंग

प्राकृतिक खाद के उपयोग से ड्रेगन फ्रूट के पौधों की ग्रोथ, फ्लॉवरिंग और फ्रूटिंग सामान्य समय से आधे में पूरी हो रही है। रासायनिक खाद की तुलना में इनसे निकला फल ज्यादा स्वादिष्ट और पौष्टिक होता है।

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