गोरखपुर में निषाद पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष ने भाजपा के पूर्व सांसद जयप्रकाश निषाद के बहाने BJP पर निशाना साधा। उन्होंने कहा- अगर BJP को लगता है कि हमसे फायदा नहीं है तो गठबंधन तोड़ दें। लेकिन छुटभैए नेताओं से बेइज्जती न कराएं।
उन्होंने कहा- भाजपा में आयातित नेता अपने बड़बोलेपन से पार्टी लुटिया डूबो रहे हैं। ये नेता सपा, बसपा और कांग्रेस से इंपोर्ट किए गए हैं। ऐसे नेताओं से भाजपा के हाईकमान को सावधान रहना चाहिए।
वहीं जय प्रकाश निषाद ने दो टूक शब्दों में कहा- मेरी बदौलत निषाद पार्टी और संजय निषाद खड़े हुए हैं। जब वह मुझे नहीं जानते तो अपनी पार्टी के आम पदाधिकारी और कार्यकर्ता को तो भेड़-बकरी ही समझते होंगे।
उन्होंने कहा- जब कसरवल कांड हुआ तो समाज के साथ केवल मैं खड़ा था। सदन से लेकर सड़क तक मैंने लड़ाई लड़ी। इस कांड को पुरजोर तरीके से सदन में उठाया। जब डा. संजय निषाद कुछ भी नहीं थे तो मैं राज्य मंत्री हुआ करता था। फिर विधायक बना और राज्य सभा सदस्य भी।
पढ़िए डॉ. संजय निषाद ने क्या कहा था…
गोरखपुर में मंगलवार को एनेक्सी भवन सभागार में निर्बल इंडियन शोषित हमारा आम दल (निषाद) के राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ. संजय निषाद ने प्रेस कॉन्फ्रेंस की। इस दौरान BJP नेता जयप्रकाश निषाद का नाम लेने पर उन्होंने सवालिया अंदाज में पूछा कौन जयप्रकाश? वो रुद्रपुर वाले, जो भाजपा से विधायक हैं और मंत्री रहे हैं। मैं उन्हें ही जानता हूं।
सामने से जब जवाब आया कि नहीं चौरी-चौरा वाले, तो डॉ. संजय ने कहा- अच्छा वो जो हाथी पर चलकर आए हैं। उनका इशारा जयप्रकाश निषाद की पिछली पार्टी बसपा की ओर था। वहीं से यह भाजपा में शामिल हुए थे। डा. संजय ने उन्हें छुटभैया नेता भी कहा।
मंत्री जी-मंत्री जी कहते हुए आगे-पीछे घूमते थे डॉ. संजय
भाजपा नेता जयप्रकाश निषाद ने कहा- संजय निषाद कह रहे हैं कि मुझे नहीं जानते। जब उनकी पार्टी पैदा नहीं हुई थी, उससे पहले से मैं राजनीति में हूं। 2003 से सक्रिय हूं। 2007 से 2012 की बसपा सरकार में दर्जा प्राप्त राज्य मंत्री रहा। 2012 में बसपा से विधायक चुना गया। उस समय डा. संजय निषाद कुछ नहीं थे।
उन्होंने कहा- संजय निषाद मेरे ही आगे-पीछे मंत्री जी-मंत्री जी कहते घूमते थे। जब वह उस व्यक्ति को नहीं जानते, जिसने उन्हें खड़ा किया है तो आम कार्यकर्ता और समाज के लोगों को क्या ही पहचानते होंगे। यही उनके संस्कार हैं।
कसरवल कांड को लेकर मैंने सदन में आवाज उठाई
जयप्रकाश निषाद ने कहा- जिस कसरवल कांड का जिक्र करते हुए संजय निषाद आगे बढ़े, उसकी आवाज सदन में अकेला मैं उठाता था। मैंने उस समय समाज की लड़ाई सड़क से लेकर सदन तक लड़ी। समाज का संगठन होने के कारण हर जगह साथ दिया। जिन्होंने अपना खून निकालकर दिया, ऐसे लोगों की कीमत ये लोग क्या जानेंगे। समाज का कौन हितैषी है, कौन नहीं, इसे समाज के लोग बेहतर जानते हैं।
छुटभैया नेता कौन है, यह सबको पता है
जयप्रकाश निषाद ने कहा- छुटभैया कौन है,यह सबको पता है। इतिहास इसे बताएगा। मैं 2008 में बसपा सरकार में मंत्री रहा और 2012 में बसपा से ही विधायक रहा। 2017 में ही बसपा के चौरी-चौरा सीट से चुनाव लड़ा लेकिन हार गया। मैंने 2018 में भाजपा ज्वाइन कर लिया। 2020 में भाजपा ने मुझे राज्य सभा भेज दिया। ये कुछ नहीं थे तो छुटभैया कौन हुआ। जिसका जो नजरिया है, वैसे ही देखेगा।
जयप्रकाश बोले- भाजपा की बदौलत संजय निषाद का ये रुतबा
भाजपा को खुलेआम धमकी देने के सवाल पर जयप्रकाश निषाद ने कहा- डा. संजय निषाद का जो रुतबा है, वह भाजपा की बदौलत ही है। वह मंत्री हैं। बेटा विधायक है। एक बेटा सांसद था। आज उसी भाजपा को धमकी दे रहे हैं। डरा रहे हैं।
मैं जिस पार्टी में हूं,वहां किसी को मांगने की जरूरत नहीं
जयप्रकाश निषाद पर टिप्पणी करते हुए डॉ. संजय ने कहा था कि वह अपना टिकट नहीं ले पा रहे। मेरे पास आएं तो टिकट दे दूंगा। उनके बयान पर जवाब देते हुए जयप्रकाश निषाद ने कहा- मैं भाजपा में हूं। वहां का सच्चा कार्यकर्ता हूं।
यही पार्टी है, जहां एक कार्यकर्ता प्रदेश अध्यक्ष और राष्ट्रीय अध्यक्ष बन सकता है। इस पार्टी में कुछ मांगना नहीं पड़ता। पार्टी खुद ही जब समय आता है, बड़ी से बड़ी जिम्मेदारी दे देती है। डॉ. संजय को मेरी चिंता करने की जरूरत नहीं। वह कार्यकर्ता को ही नहीं समझते तो उसके दर्द को क्या समझेंगे।
2018 में निषाद समाज ने सिर माथे चढ़ाया, 2024 में पटक दिया
डा. संजय निषाद ने गोरखपुर लोकसभा उपचुनाव 2018 में उनके बेटे के हाथों भाजपा की हुई हार को याद दिलाते हुए संदेश देने की कोशिश की थी। साथ ही संतकबीरनगर में अपने बेटे की हार के लिए भाजपा नेताओं को जिम्मेदार ठहराया था। जयप्रकाश निषाद इसका जवाब देते हैं।
वह कहते हैं कि 2018 में पूरा समाज उनके साथ था और सिर माथे पर बिठाकर जीत दिला दी। जब उनके बेटे ने सदन में इस समाज के हित में कोई आवाज नहीं उठाई तो 2024 के लोकसभा चुनाव में नीचे पटक दिया। भाजपा नेताओं ने भरपूर वोट दिलाया लेकिन निषाद बहुल बूथों पर डॉ. संजय के बेटे को वोट नहीं मिला।
कसरवल कांड को भुनाकर ये मलाई खा रहे, शहीद के पिता दर-दर की ठोकर
जयप्रकाश निषाद ने कसरवल कांड का जिक्र भी किया। उन्होंने कहा- रेलवे ट्रैक पर आंदोलन करते हुए इटावा के अखिलेश निषाद को गोली लग गई थी और उसी में वो शहीद हो गए थे। उसी कांड को भुनाकर डॉ. संजय और उनका परिवार आज मलाई खा रहा है जबकि शहीद अखिलेश निषाद के पिता दर-दर की ठोकरें खा रहे हैं। मैंने निषाद महाकुंभ में उनके पूरे परिवार को बुलाया था।
मछुआ समाज की सच्ची हितैषी है भाजपा
जयप्रकाश निषाद ने कहा कि मछुआ समाज की सच्ची हितैषी भाजपा ही है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी व मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ इस समाज के हित के लिए लगातार लगे हैं। दूसरे लोग इस समाज को केवल भरमाते हैं। डा. संजय निषाद जैसे लोग मछुआरा समाज को धमकाते हैं। समाज ऐसे लोगों को अब बख्शने वाला नहीं है।
अब पढ़ते हैं आखिर अचानक क्यों BJP पर हमलावर हो गए डॉ. संजय निषाद
डा. संजय निषाद मंगलवार को अचानक भाजपा पर हमलावर हो गए। इशारों-इशारों में उन्होंने सरकार पर भी सवालिया निशान खड़े किए। 2018 में गोरखपुर जैसी सेफ सीट पर हुई भाजपा की हार को याद दिलाया। 2024 में भाजपा के खराब प्रदर्शन का जिक्र किया। पार्टी को गठबंधन तोड़ लेने के लिए चैलेंज किया। भाजपा के शीर्ष नेतृत्व पर कुछ नेताओं के जरिए सहयोगी दलों को नीचा दिखाने का आरोप भी लगाया।
चुनाव से पहले सभी विकल्प खुला रखने वाली बात है
वरिष्ठ पत्रकार कुमार हर्ष बताते हैं कि यह चुनाव से पहले सभी विकल्पों को खुला रखने का कवायद है। छोटे दल हमेशा विज्ञान के उस सिद्धांत पर चलते हैं कि ऊष्मा का संचरण अधिक से कम की ओर होता है।
एक जमाने में समाजवादी पार्टी ने कांग्रेस से गठबंधन किया था। उसके बाद प्रदेश का मुख्य दल बन गई थी और अब कांग्रेस पता नहीं कहां चली गई। छोटे दल का यह प्रयास होता है कि जो सत्ता में हो उसके साथ बने रहो और चुनाव आने से पहले अपने विकल्प को खुला रखो ताकि दूसरे जगह भी जा सको।
अंदरूनी चुनौतियों से उबरने की भी कोशिश
वरिष्ठ पत्रकार कुमार हर्ष का कहना है कि डॉ. संजय को उनके समाज के लोग ही वोटों का सौदागर कहने लगे हैं। इस सौदे का लाभ केवल परिवार को बांटते हैं। इस तरह से उनके होम टर्फ पर ही चुनौतियों की भरमार है। जिससे निपटने के लिए इस तरह का आक्रामक रुख अख्तियार किया जा रहा है।
प्रदेश सरकार में अपनी ताकत बढ़ाने की कवायद
कुमार हर्ष कहते हैं कि सहयोगी दलों की दिल्ली में चाहे जो स्थिति हो लेकिन प्रदेश में उन्हें मुख्यमंत्री के अनुसार चलना पड़ता है। इनकी हर शर्तें नहीं मानी जाती हैं। इस तरह के बयानों के जरिए चुनाव से पहले सरकार में अपनी ताकत बढ़ाने और अपनी शर्तों पर सरकार में रहने की कवायद भी हो सकती है।