सभी को बेहतर स्वास्थ्य सुविधाएं उपलब्ध कराने की दिशा में सरकारें निरंतर प्रयासरत रही हैं। हालांकि इस दिशा में अब तक अपेक्षित सफलता नहीं मिल पाई है, लेकिन आयुष्मान भारत योजना के तहत डिजिटल हेल्थ मिशन की कल्पना पूर्ण डिजिटल हेल्थ इकोसिस्टम के तौर पर की गई है। इसके तहत सभी नागरिकों की एक स्वास्थ्य आइडी होगी, व्यक्तिगत हेल्थ रिकाड्र्स का डिजिटाइजेशन होगा और देशभर के डाक्टरों व स्वास्थ्य सुविधाओं की रजिस्ट्री होगी।
इसके पायलट प्रोजेक्ट की सफलता के बाद अब इसे पूरे देश में लागू किया जा रहा है। मिशन के संदर्भ में दावा यह है कि नागरिकों की अनुमति के बिना उनके हेल्थ रिकाड्र्स किसी के साथ साझा नहीं किए जाएंगे। यह डिजिटल इकोसिस्टम डाक्टरों, अस्पतालों व स्वास्थ्य देखभाल सेवाओं से संबंधित कार्यों में आसानी सुनिश्चित करेगा। गरीबों व मध्य वर्ग को इलाज कराने में आने वाली समस्याओं के समाधान में भी इसकी बड़ी भूमिका होगी।
किसी भी सरकारी अस्पताल, सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र या हेल्थ एंड वेलनेस सेंटर या कोई भी स्वास्थ्य देखभाल सेवा प्रदाता जो हेल्थ इंफ्रास्ट्रक्चर रजिस्ट्री में शामिल हो, उसकी मदद से हेल्थ आइडी हासिल की जा सकती है। मोबाइल या वेब एप्लीकेशन पर स्वयं रजिस्ट्रेशन करके भी हेल्थ आइडी हासिल की जा सकती है। इसमें कोई दोराय नहीं है कि अस्पतालों को रोगियों के लिए सुरक्षित बनाने की आवश्यकता है। अगर यह जरूरत न होती तो हम अपने प्रियजन को अस्पताल में भर्ती कराते समय यह सवाल नहीं करते कि कौन-सा डाक्टर रोगी की देखभाल करेगा?
दरअसल, स्वास्थ्य देशभाल सेवाओं को प्रदान करने में उपचार प्रोटोकाल्स का पालन करना आसान नहीं है, क्योंकि देश के लगभग 90 प्रतिशत अस्पतालों में इलेक्ट्रानिक मेडिकल रिकाड्र्स (ईएमआर) की सुविधा नहीं है। ईएमआर की मदद से रोगी से जुड़ी तमाम घटनाओं को एक दस्तावेज के प्रारूप में तैयार किया जाता है यानी हमें अपने मोबाइल प्लेटफार्म पर यह मालूम रहता है कि अस्पताल में हमारे रोगी से संबंधित तमाम आंकड़ा मशीनों, लैब्स, नर्सों, तकनीशियनों व डाक्टरों के बीच किस प्रकार से घूम रहा है। इसे इस तरह भी कहा जा सकता है कि रोगी की देखभाल किस प्रकार हो रही है, इसकी हमें जानकारी रहती है।
वर्तमान में इसके लिए जिस प्रक्रिया का पालन किया जाता है उसमें अगर रोगी में कोई जटिलता विकसित हो जाए तो जिस बात से समस्या उत्पन्न हुई उसे मालूम करना कठिन हो जाता है। रोगी के साथ जो तमाम दस्तावेज रखे जाते हैं, उनमें समीक्षा व व्याख्या के लिए पर्याप्त जानकारी उपलब्ध नहीं होती है। रोग के वास्तविक कारण की समीक्षा न कर पाना डाक्टरों व सिविल सोसाइटी के लिए चिंता का विषय है। गौरतलब है कि सितंबर 2018 में उत्तराखंड हाई कोर्ट ने डाक्टरों को आदेश दिया था कि वह दवाओं का नुस्खा कागज पर नहीं, बल्कि डिजिटली देंगे ताकि नुस्खे की त्रुटियों से बचा जा सके। अब लगता है कि आयुष्मान भारत डिजिटल हेल्थ मिशन के लांच होने से इस दिशा में सकारात्मक परिवर्तन आएंगे।
विशेषज्ञों का कहना है कि अगर डाक्टरों, नर्सों व तकनीशियनों को कागज कलम की जगह स्मार्ट डिजिटल टूल्स उपलब्ध करा दिए जाएंगे तो हेल्थकेयर में रुग्णता व मृत्यु दर में काफी कमी आएगी, हेल्थकेयर उपलब्धता में जबरदस्त सुधार होगा खर्चे में भी काफी कमी आएगी। आज डाक्टरों के लिए यह बहुत कठिन है कि रोगी का सही इलाज करने के लिए सारा मेडिकल डाटा हासिल कर सकें। संभावित मानवीय चूक होने के डर से डाक्टरों पर जबरदस्त दबाव रहता है।
अगर ईएमआर सिस्टम को विकसित कर लिया जाता है तो रोगियों का उपचार करने में डाक्टरों को आसानी होगी। उनसे भूल-चूक की आशंका भी कम ही रहेगी। लेकिन समझने वाली बात यह है कि यदि ईएमआर सिस्टम स्वास्थ्य देखभाल में क्रांति ला सकता है तो अमेरिकी हेल्थकेयर सिस्टम संघर्ष क्यों कर रहा है? ऐसा इसलिए क्योंकि अमेरिका में ईएमआर को पूर्णत: बिलिंग सॉफ्टवेयर के तौर पर विकसित किया गया था और उसमें मेडिकल कंपोनेंट्स बाद में डाला गया। अगर आयुष्मान भारत डिजिटल हेल्थ मिशन ईएमआर को मेडिकल कंपोनेंट्स के साथ प्रोत्साहित करे तो यह देशव्यापी हो सकता है और इससे बहुत लाभ भी होगा।