आमतौर पर कोई किसी टीके के ब्रांड के बारे में जानने का खास इच्छुक नहीं होता है। हम में से शायद ही किसी को पता हो कि हमें किसी फ्लू के लिए लगा टीका किस ब्रांड का था। लेकिन, कोरोना के मामले में ऐसा नहीं है। कोरोना का कहर फैलने के बाद पिछले साल ही कंपनियां टीका बनाने में जुट गई थीं। ट्रायल पूरा करने के बाद आज कई कंपनियों के टीके उपलब्ध हो चुके हैं। आए दिन खबरों में लोगों को अलग-अलग ब्रांड के बारे में पढ़ने को मिलता रहता है। यही जानकारी कुछ मामलों में मुश्किल का कारण बन रही है, क्योंकि कुछ लोग खास टीका लगवाने के इंतजार में टीकाकरण नहीं करा रहे हैं।
खास टीके का इंतजार गलत : विशेषज्ञों का कहना है कि सभी टीके तय प्रक्रिया और मानक के अनुसार बनाए जाते हैं। हर देश में सरकार नियमानुसार टीकों को मान्यता देती है। ऐसे में किसी खास ब्रांड के इंतजार में टीकाकरण नहीं कराना गलत है। सबसे अच्छा टीका वही है, जो आपको सबसे पहले मिल जाए। हर टीके का काम आपको संक्रमण के संभावित खतरे से बचाना है। कुछ कम या ज्यादा प्रतिशत के साथ सभी टीके प्रभावी हैं। सुरक्षा के मानकों पर भी किसी तरह का समझौता नहीं किया जाता है। ऐसे में किसी खास टीके के इंतजार में रुके रहना आपको खतरे में डाल सकता है।
समर्थन में अलग-अलग तर्क : किसी खास ब्रांड के टीके के समर्थन में अलग-अलग तरह के तर्क दिए जा रहे हैं। ब्रिटेन में एस्ट्राजेनेका के टीके को कुछ लोग देशप्रेम से जोड़कर देख रहे हैं, क्योंकि यह वहीं की कंपनी है। अमेरिका में फाइजर की वैक्सीन के लिए भी इंटरनेट मीडिया पर लोग खूब तर्क दे रहे हैं। ऐसे लोगों की भी बड़ी संख्या है, जो रूस के स्पुतनिक-वी टीके का इसलिए इंतजार कर रहे हैं, क्योंकि उसकी एफिकेसी ज्यादा पाई गई है।
भारत में उपलब्ध टीके: एस्ट्राजेनेका द्वारा विकसित व सीरम इंस्टीट्यूट द्वारा बनाई जा रही कोविशील्ड और भारत बायोटेक की कोवैक्सीन यहां उपलब्ध हैं। रूस की स्पुतनिक- वी को मंजूरी दी जा चुकी है। वैश्विक स्तर पर प्रमाणित टीकों के भारत में प्रयोग से जुड़े नियमों में कुछ नरमी से अन्य कंपनियों के टीकों के आने की उम्मीद भी बढ़ गई है।