भर्ती की नई व्यवस्था से खर्च के अलावा नौकरी पाने वाले उम्मीदवारों को मानसिक तनाव से भी मिलेगा छुटकारा

केंद्र सरकार की नौकरियों के लिए प्रतियोगी छात्रों को में केंद्रीय स्तर पर अलग-अलग लगभग 20 भर्ती बोर्डो की परीक्षाएं देनी होती हैं। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक केंद्र सरकार की करीब सवा लाख वेकेंसी के लिए हर साल ढाई से तीन करोड़ छात्र आवेदन करते हैं। छात्रों को सामान्यतया केंद्र सरकार में एसएससी, बैंक और रेलवे जैसी परीक्षाओं में हर साल 10-15 फॉर्म अलग-अलग भरने पड़ते हैं। प्रत्येक बार युवाओं को तीन-चार सौ रुपये से लेकर आठ-नौ सौ रुपये तक की फीस भरनी पड़ती है। हर बार अलग-अलग प्रतियोगिता परीक्षा भी देनी पड़ती है। हर भर्ती की परीक्षा तिथियां अलग-अलग होती हैं और आवेदन प्रक्रिया भी अलग-अलग होती है। कई बार एक से अधिक परीक्षाओं की तारीखें एक ही दिन पड़ने से अभ्यर्थियों को कोई एक एग्जाम छोड़ना पड़ता है।

अक्सर यह देखने में आता है कि कई बार जब दो-तीन परीक्षा करानी होती है, तो इन्फ्रास्ट्रक्चर की कमी की वजह से कई जगहों पर नकल की आशंका भी बढ़ जाती है। परीक्षा के दौरान केंद्रों की सुरक्षा के लिए जिला प्रशासन को अलग से अधिकारियों और पुलिस को तैनात करना पड़ता है। बार-बार परीक्षाएं होने से बार-बार इस प्रक्रिया से गुजरना पड़ता है। इससे खर्च बढ़ने के साथ-साथ भर्ती की प्रक्रिया लंबी हो जाती है। इस प्रक्रिया को आसान बनाने के लिए लंबे समय से ऐसी किसी भर्ती एजेंसी की मांग हो रही थी जो सभी नौकरियों के लिए कॉमन हो। इसके लिए अब सरकार ने राष्ट्रीय भर्ती एजेंसी का गठन किया है। लिहाजा यह ऐतिहासिक सुधार है जिसके जरिये भर्ती, चयन और नौकरी तीनों में आसानी होगी। इस सुधार की सबसे बड़ी खासियत यह है कि देश के हर जिले में कम से कम एक परीक्षा केंद्र होगा, जो दूरदराज के इलाकों में रहने वाले उम्मीदवारों तक पहुंच बढ़ाएगा। इसकी एक खासियत यह भी है कि आने वाले समय में राष्ट्रीय भर्ती एजेंसी द्वारा आयोजित परीक्षा में शामिल होने वाले अभ्यर्थियों को प्रदत्त सीईटी स्कोर को केंद्र सरकार, राज्य सरकार, केंद्र शासित प्रदेशों, सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यमों, निजी क्षेत्र की अन्य भर्ती एजेंसियों आदि के साथ साझा किया जा सकेगा ताकि अन्य क्षेत्र भी लाभान्वित हो सकें।

भर्ती प्रक्रिया को आसान बनाने की कोशिश : प्रतियोगी परीक्षाओं को कराने की वर्तमान में जो व्यवस्था है, इसके तहत उम्मीदवारों को विभिन्न परीक्षाओं में उपस्थित होने के लिए लंबी दूरी भी तय करनी पड़ती है। इससे युवाओं का धन, श्रम और समय ज्यादा लगता है। विशेषकर ग्रामीण क्षेत्र की लड़कियों को काफी कठिनाई होती है। शहर में आकर रहने और आवाजाही के लिए उन्हें अनेक मुश्किलों का सामना करना पड़ता है। साथ ही, विभिन्न भर्ती बोर्डो को भी तारीखों का चयन करने में समस्या होती है, लेकिन अब कॉमन एलिजिबिलिटी टेस्ट के आने से इस समस्या का काफी हद तक समाधान हो जाएगा। अब परीक्षाएं कम होंगी, तो उम्मीदवारों को तारीखों को लेकर ज्यादा परेशान नहीं होना पड़ेगा। इस लिहाज से सरकार का एक कॉमन परीक्षा का कदम सराहनीय है। लेकिन सरकार को पूरी तरह से जांच पड़ताल कर ही इस योजना को अमलीजामा पहनाना चाहिए। यह ध्यान रखना होगा कि कॉमन एलिजिबिलिटी टेस्ट में कहीं यूपीएससी परीक्षा में हिंदी बनाम अंग्रेजी जैसा विवाद न खड़ा हो जाए, कहीं मैथ्स या फिर अंग्रेजी भाषा को तरजीह का सवाल न खड़ा हो जाए, आखिर ये करोड़ों युवाओं के करियर का सवाल है।

भर्ती की नई व्यवस्था से उम्मीदवारों को मानसिक तनाव से भी छुटकारा मिलेगा। उन्हें विभिन्न परीक्षाओं में शामिल होने का तनाव नहीं होगा और वे आसानी से एक परीक्षा दे पाएंगे। एलिजिबिलिटी टेस्ट उन उम्मीदवारों के बोझ को कम करेगा, जो वर्तमान में प्रत्येक परीक्षा के लिए विभिन्न पाठ्यक्रम के अनुसार अलग-अलग पाठ्यक्रमों की तैयारियां करते हैं। वर्तमान में एसएससी, बैंकिंग और रेलवे की परीक्षाओं में पूछे जाने वाले सवालों में एकरूपता नहीं होती है। यह परीक्षा शुरू होने के बाद परीक्षाíथयों को अलग अलग परीक्षाओं और उनके अलग-अलग ढंगों के लिए तैयारी नहीं करनी पड़ेगी।

इस तरह परीक्षा की नई व्यवस्था से उम्मीदवारों के साथ-साथ विभिन्न भर्ती बोर्डो को लाभ होगा। इससे इनका पैसा और समय दोनों बचेगा। अगर कोई भर्ती बोर्ड एक साल में 20 परीक्षाओं का आयोजन करता है तो इसका मतलब है कि उसे 20 बार परीक्षा केंद्र बनाने पड़ते हैं। इसमें पैसा और समय दोनों अधिक लगता है। सीईटी से यह लाभ होगा कि भर्ती परीक्षाएं आयोजित करने वाले मौजूदा तंत्र पर दबाव कम होगा। लेकिन खतरा यह है कि भर्ती एजेंसियों का दबाव कम करने की यह कवायद कहीं देश की नौजवान पीढ़ी पर दबाव और ज्यादा बढ़ा न दे। हमें इस मोर्चे पर विशेष सावधानी बरतना होगा। अच्छी बात यह है कि सीईटी द्वारा आयोजित परीक्षा में उम्मीदवार कितनी भी बार परीक्षा दे सकेगा, इसकी कोई सीमा नहीं है। सरकार अनुसूचित जाति, जनजाति, पिछड़ा वर्ग एवं अन्य श्रेणी के उम्मीदवार की आयु सीमा में भी कुछ छूट दे सकती है। यही नहीं, सीईटी काफी हद तक लंबे भर्ती चक्र को कम कर देगा, क्योंकि कुछ भर्ती विभागों ने अपने स्तर-2 या दूसरे स्तर की परीक्षा को छोड़ने का फैसला किया है। ये एजेंसियां प्रारंभिक स्तर की परीक्षा यानी सीईटी स्कोर के आधार पर भर्ती के लिए आगे बढ़ेंगी और उसके बाद शारीरिक परीक्षण व चिकित्सा परीक्षण होगा। इससे अभ्यर्थियों को नौकरी देने में लगने वाले समय में कमी आएगी और यह भर्ती चक्र को भी काफी कम करेगा। सामान्य पात्रता परीक्षा के पैटर्न में मानकीकरण भी आएगा।

इस सिस्टम से नौकरियों की भर्ती प्रक्रिया में अपेक्षित पारदर्शिता की उम्मीद की जा रही है। एक बात और, नेशनल रिक्रूटमेंट एजेंसी के जरिये कॉमन एलिजिबिलिटी टेस्ट की तैयारी के साथ यह भी उचित होगा कि केंद्रीय सेवाओं में रिक्त पड़े करीब सात लाख से अधिक पदों को समय रहते भरने में तत्परता का परिचय दिया जाए। इसके साथ ही स्वीकृत पदों को वास्तविक जरूरत के आधार पर बढ़ाया जाना चाहिए। बेहतर होगा कि कॉमन एलिजिबिलिटी टेस्ट को राज्य सरकारें अपने लिए अनुकरणीय उदाहरण समङों। कुछ ऐसा ही निर्णय उन्हें भी लेना चाहिए। वर्तमान में कुल सरकारी नौकरियों की बात करें तो केवल 14 प्रतिशत सार्वजनिक रोजगार केंद्र (मुख्य रूप से रेलवे और रक्षा में) के दायरे में आते हैं, जबकि शेष भर्ती परीक्षाएं राज्यों के दायरे में आती हैं।

नवगठित नेशनल रिक्रूटमेंट एजेंसी यानी एनटीए केवल प्राथमिक स्तर (प्रारंभिक परीक्षा) की ही परीक्षा आयोजित करवाएगी, अर्थात इससे नौकरी के लिए इच्छुक प्रतियोगी छात्र केवल अगले स्तर की परीक्षा देने हेतु पात्र माने जाएंगे, न कि सीधे रूप से नौकरी मिल जाएगी। साथ ही, अभी भी विभिन्न भर्ती बोर्ड की परीक्षा में शामिल होने से केवल प्रारंभिक परीक्षाओं से ही निजात मिली है, अगले चरण की परीक्षाओं के लिए आवेदन तथा परीक्षाओं में शामिल होने की जरूरत अभी भी रहेगी। यहां एक सुझाव यह है कि सरकार को अगले स्तर की परीक्षाओं को करवाने का जिम्मा भी राष्ट्रीय भर्ती एजेंसी को सौंपे जाने पर गंभीरता से विचार करना चाहिए। इसके अलावा, ग्रुप सी तथा डी की सरकारी नौकरियों में बहुस्तरीय परीक्षा करवाने का विकल्प हटा देना चाहिए। इससे समय, धन और संसाधनों की अनावश्यक बर्बादी होती है। अगर इस सुझाव पर अमल करने की दिशा में आगे बढ़ा जाता है तो भर्ती प्रक्रिया में पारदर्शिता को बढ़ावा मिलने के साथ-साथ कीमती समय और संसाधनों की भी बचत होगी।

पिछले कुछ वर्षो से लाखों युवाओं को नौकरी इसीलिए भी नहीं मिल पा रही है, क्योंकि विज्ञापन आने के बाद दो-तीन वर्षो तक परीक्षा नहीं होती। मसलन 1.35 लाख पदों पर होने वाली रेलवे ग्रुप डी और एनटीपीसी की परीक्षा के विज्ञापन को जारी किए हुए दो साल से अधिक वक्त हो चुके हैं, लेकिन अभी तक परीक्षा का पहला चरण भी पूरा नहीं हो पाया है। अजीब विडंबना है कि देश में या तो भर्ती वक्त पर नहीं निकलती, निकलती है तो परीक्षा होने में समय लग जाता है, फिर प्रतियोगी छात्र प्रवेश पत्र से लेकर परीक्षा केंद्र तक पहुंचने की मुसीबतों को ङोलता है। फिर कभी पेपर लीक होने की खबर आ जाती है तो कभी धांधली की। कई बार परीक्षा से पहले ही सारे प्रश्न इंटरनेट मीडिया पर वायरल हो जाते है।

हमारे देश में सरकारी नौकरियों के लिए भर्ती प्रक्रिया की जो दुर्गति है, उसका खमियाजा बेरोजगार युवाओं को भुगतना पड़ता है। सरकारी नौकरियों की भर्ती प्रक्रिया में पक्षपात, रिश्वत, रसूख, सिफारिश वगैरह का बोलबाला छिपी बात नहीं है। भर्ती प्रक्रिया में अनियमितता और भ्रष्टाचार की इंतिहा ने देश की शिक्षा व परीक्षा प्रणाली को मजाक बनाकर रख दिया है। वर्तमान में रोजगार की कमी युवाओं को पहले से ही बेचैन किए हुए है, ऊपर से चयन प्रक्रिया से उनका भरोसा भी उठ जाए तो इसके घातक नतीजे हो सकते हैं। आम लोगों में यह विश्वास या धारणा बन जाना बहुत ही दुर्भाग्यपूर्ण एवं निराशाजनक है कि बिना सिफारिश के हमारे देश में सरकारी नौकरी नहीं मिलती है। हालांकि केंद्रीय सेवाओं की नौकरियों के मुकाबले राज्यों के भर्ती आयोगों द्वारा की जाने वाली भर्ती प्रक्रियाओं में भ्रष्टाचार होने की खबरें अधिक आती हैं।

एक सुझाव यह है कि नौकरियों में फर्जीवाड़ा करके युवाओं से छल करने के लिए जिम्मेदार लोगों के लिए भी फास्ट ट्रैक अदालतों में मामले निपटा कर उन्हें तुरंत कड़ा दंड देने का प्रविधान किया जाए। एक नियम यह अवश्य बनना चाहिए कि किसी भी सरकारी भर्ती के नोटिफिकेशन के साथ यह तय हो कि भर्ती कितने समय में पूरी होगी। सरकार यह तो कड़ाई से सुनिश्चित कर ही सकती है कि परीक्षाएं समय पर हों, और जो छात्र परीक्षा पास कर लेते हैं, उन्हें जल्द से जल्द नियुक्ति पत्र मिले। आशा है कि केंद्र सरकार के साथ-साथ राज्य सरकारें भी प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी करने वाले युवाओं की मांगों पर ध्यान देंगी, ताकि आगे से सृजन वाली शक्ति रोजगार मांगने, सरकारों के खिलाफ प्रदर्शन करने और फॉर्म भरने के बाद नौकरियों के इंतजार में जाया नहीं होगी।