श के मुख्य न्यायाधीश एनवी रमना ने हाल ही में केंद्रीय जांच एजेंसी सीबीआइ के संबंध में अपने विचार व्यक्त किए हैं। उन्होंने खेद जताया है कि कुछ मामलों में सीबीआइ की कार्यशैली व निष्क्रियता पर प्रश्न उठने के कारण केंद्रीय जांच एजेंसी की विश्वसनीयता सार्वजनिक जांच के दायरे में आ गई है। सीजेआइ ने देश में महत्वपूर्ण मसलों की जांच व्यवस्था में सुधार के लिए विभिन्न जांच एजेंसियों को एक छत के नीचे लाने हेतु एक स्वतंत्र संस्था बनाने की बात भी कही है।
न्यायमूर्ति रमना ने सीबीआइ की अतीत में बनी छवि को याद दिलाते हुए कहा कि पहले जब भी नागरिकों को राज्य पुलिस की कुशलता व निष्पक्षता पर संदेह होता था तो वे न्याय की अपेक्षा में सीबीआइ जांच की मांग करते थे। परंतु समय के साथ अन्य प्रतिष्ठित संस्थाओं की भांति सीबीआइ भी सार्वजनिक जांच के दायरे में आ गई और इसके कार्यों व निष्क्रियता ने एजेंसी की विश्वसनीयता पर प्रश्न खड़े किए हैं।
सरकारों को, विशेष रूप से संवैधानिक व कानूनी संस्थाओं का दुरुपयोग करने से हर हाल में बचना चाहिए। इन संस्थाओं में कार्यरत लोक सेवक जनता की सेवा करने व अपने दायित्वों को निष्ठा से निभाने की शपथ लेकर आते हैं। परंतु कई प्रकार के दबाव के चलते उन्हें कभी न कभी अपने सिद्धांतों से समझौता करना पड़ता हो तो इसमें कोई आश्चर्य नहीं है। ऐसे में प्रत्यक्ष नुकसान लोकतंत्र व इसे कायम रखने वाली संस्थाओं का होता है जिससे धीरे धीरे इन संस्थानों से जनता का विश्वास उठ जाता है। ऐसा होने पर जनता इन संस्थानों द्वारा किए गए प्रत्येक कार्य को संदेह की दृष्टि से ही देखती है, चाहे वे कार्य सही से भी किए गए हों।
इसके अतिरिक्त एक महत्वपूर्ण बात यह भी है कि भारत के प्रत्येक व्यक्ति को जीवन जीने व व्यक्तिगत स्वतंत्रता समेत अनेक अन्य संवैधानिक व कानूनी अधिकार प्राप्त है। व्यक्तिगत गरिमा व निजता का अधिकार इनमें प्रमुख हैं। प्रत्येक सरकारी अधिकारी व कर्मचारी से अपेक्षा रहती है कि वह इन अधिकारों का आदर करे और कोई ऐसा कार्य करने से बचे जिससे इन अधिकारों का उल्लंघन होता हो। उच्चतम न्यायालय ने समय समय पर अनेक मामलों में यह इंगित किया है कि सरकारी अधिकारियों द्वारा यदि नागरिकों के मूलभूत अधिकारों का उल्लंघन किया जाता है तो इसमें सरकार की प्रत्यक्ष जिम्मेदारी होगी। इसके अतिरिक्त अपराध शास्त्र का सिद्धांत है कि दोष सिद्ध होने से पहले कानून को किसी भी आरोपी को निर्दोष ही समझना चाहिए और चाहे कितने भी दोषी छूट जाएं, पर एक भी निर्दोष को झूठा फंसा कर सजा नहीं होनी चाहिए।
इसमें कोई संदेह नहीं है कि देश की उत्तम कानून व्यवस्था में जांच प्रक्रिया व जांच एजेंसियों की महत्वपूर्ण भूमिका है। आम तौर पर किसी भी आपराधिक मामले में यह आवश्यक है कि तथ्यों से संबंधित सत्य सामने आए ताकि न्यायालय को उस मामले में निर्णय लेने में आसानी व सहयोग हो सके। स्वाभाविक रूप से न्यायालय आपराधिक मामलों में अपने निर्णय के लिए जांच एजेंसी की रिपोर्ट पर निर्भर रहते हैं और उनके निर्णय में सरकारी एजेंसी की जांच महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। देश या राज्य की न्याय व्यवस्था, खासकर आपराधिक न्याय प्रशासन में राज्य ही अभियोक्ता होता है, क्योंकि किसी भी आपराधिक कार्य खासकर संज्ञेय अपराध को राज्य के विरुद्ध अपराध माना जाता है। इस व्यवस्था में राज्य की संस्थाएं जैसे पुलिस, अन्य जांच एजेंसियां, अभियोग पक्ष व न्यायपालिका इत्यादि पीडि़त को न्याय दिलाने में सहयोग करते हैं। न्यायपालिका को आपराधिक मामले से जुड़े सारे तथ्यों, साक्ष्यों व गवाहों के बयानों समेत संबंधित कानून आदि के अवलोकन, समीक्षा के उपरांत अपने न्यायिक विवेक के आधार पर निर्णय देना होता है। न्याय प्रशासन की पूरी प्रक्रिया में मामले की निष्पक्ष जांच, समस्त संबंधित व्यक्तियों की गवाही, आरोपियों की गिरफ्तारी व साक्ष्यों का एकत्रीकरण इत्यादि महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
सामान्यत: किसी भी आपराधिक मामले की जांच में जांचकर्ता का घटनास्थल पर पहुंचना, तथ्यों व परिस्थितियों का अवलोकन करना, संदिग्ध अपराधियों को खोज कर गिरफ्तार करना, अपराध से संबंधित साक्ष्य को एकत्रित कर लोगों के बयान दर्ज करना, जगहों की तलाशी व संपत्ति की जब्ती आदि कार्य सम्मिलित होते हैं। एकत्रित सामग्री के आधार पर जांच एजेंसी राय बनाती है कि आरोपित के विरुद्ध अदालत में प्रस्तुत करने योग्य कोई आपराधिक मामला बनता है अथवा नहीं। यदि जांच एजेंसी इस निष्कर्ष पर पहुचती है कि आरोपी के विरुद्ध आपराधिक मामला बनता है, तब वह अपनी रिपोर्ट में इसका उल्लेख कर न्यायालय में दाखिल करती है।
भारत में कई जांच एजेंसियां हैं। सामान्यत: जांच संबंधी प्रक्रिया भारतीय आपराधिक प्रक्रिया संहिता 1973 के प्रविधानों से नियंत्रित होती है, पर कुछ अन्य एजेंसियों के द्वारा की जाने वाली जांच के मामलों में जांच प्रक्रिया विशेष कानूनों से भी संचालित होती है। समय के साथ सीबीआइ देश की एक प्रमुख जांच एजेंसी के रूप में उभरी जिसको जनता, संसद, न्यायपालिका व सरकार का विश्वास प्राप्त रहा है। लंबे समय से यह संगठन एक भ्रष्टाचार निरोधी जांच एजेंसी से एक बहुआयामी, बहु अनुशासनात्मक केंद्रीय पुलिस कानून प्रवर्तन एजेंसी के रूप में विकसित हुआ है, जिसमें भारत में कहीं भी अपराधों की जांच और मुकदमा चलाने की शक्ति, विश्वसनीयता और कानूनी जनादेश प्राप्त है। परंतु सीबीआइ अपनी यह छवि सदैव कायम नहीं रख सकी है। इसकी छवि पर समय समय पर दाग लगते रहे हैं।