यूक्रेन के संगठन ने जीता शांति का नोबेल:उसकी फाउंडर ने बंकर से दिया था इंटरव्यू, पुतिन के विरोध का चेहरा बनीं

7 महीने से जंग लड़ रहे यूक्रेन और रूस के दो संगठनों को शांति का नोबेल पुरस्कार मिला है। शुक्रवार को इस अवॉर्ड का ऐलान किया गया। वॉर क्राइम के खिलाफ काम कर रहे यूक्रेन के ऑर्गेनाइजेशन सेंटर फॉर सिविल लिबर्टीज का नाम भी विजेताओं में है।

ओलेक्सांद्रा मात्वीचुक इस संगठन की हेड हैं। यूक्रेन पर रूसी हमले के पहले से ही वे मानवाधिकार से जुड़े मुद्दे उठाती रही हैं। युद्ध की शुरुआत के वक्त वे यूक्रेन की राजधानी कीव में थीं। बरसती मिसाइलों के बीच उन्हें बंकर में छिपना पड़ा था। नोबेल पुरस्कार का ऐलान होते वक्त भी वे ट्रेन में थीं और पोलैंड से कीव जा रही थीं।

 कीव में रूसी मिसाइलें बरस रही हैं
यूक्रेन-रूस जंग शुरू होने के वक्त भास्कर ने ओलेक्सांद्रा से बात की थी। उस वक्त उन्होंने कीव के एक बंकर में पनाह ली थी। ओलेक्सांद्रा ने तब के हालात बताते हुए कहा था कि यहां लोगों का हौसला बरकरार है। कीव से बड़े पैमाने पर पलायन हुआ है। लोग पोलैंड की सीमा की तरफ गए हैं।

ऊंची इमारतों को खाली करा लिया गया है और लोगों को मेट्रो स्टेशनों-बंकरों में रहने की सलाह दी गई है। ज्यादातर लोग बंकरों में ही हैं। युद्ध में आम लोग मारे जा रहे हैं। बड़ा मानवीय संकट यूक्रेन में खड़ा हो रहा है। कीव पर भयानक बमबारी हो रही है। रूस बेलारूस की जमीन से यूक्रेन पर मिसाइलें दाग रहा है।

जंग के बीच लोगों की मदद कर रहीं ओलेक्सांद्रा
रूस ने फरवरी में यूक्रेन पर हमला कर राजधानी कीव को घेर लिया था। तब ओलेक्सांद्रा देशभर से भागकर कीव पहुंच रहे लोगों की मदद करने लगीं। ओलेक्सांद्रा पुतिन और रूस के विरोध का चेहरा बन गईं। वे अंतरराष्ट्रीय मीडिया में लगातार यूक्रेन का पक्ष भी रखती रहीं।

2013 में पहली बार चर्चा में आईं
ओलेक्सांद्रा यूक्रेन के ह्यूमन राइट्स कमिश्नर ऑफिस में सलाहकार रह चुकी हैं। वे यूक्रेन में मानवाधिकार के मुद्दों पर सालाना रिपोर्ट पब्लिश करती हैं। यूक्रेन में नवंबर 2013 में रूस समर्थक राष्ट्रपति के खिलाफ यूरोमैडन आंदोलन शुरू हुआ था। तब ओलेक्सांद्रा ने लोगों की मदद के लिए इमरजेंसी सेंटर चलाया। 30 नवंबर को सरकार ने कीव में प्रदर्शनकारियों पर हमला कर दिया। इसी के बाद ओलेक्सांद्रा चर्चा में आईं थीं।

पुतिन के खिलाफ मुकदमा चलाना चाहिए : ओलेक्सांद्रा
नोबेल पीस प्राइज के लिए चुने जाने के बाद ओलेक्सांद्रा ने कहा- ह्यूमन चार्टर के उल्लंघन के लिए रूस को संयुक्त राष्ट्र की सुरक्षा परिषद से बाहर किया जाना चाहिए। संयुक्त राष्ट्र को युद्ध पीड़ितों के साथ न्याय करना चाहिए।

एक इंटरनेशल ट्रिब्यूनल बनाकर रूस के राष्ट्रपति पुतिन, बेलारूस के राष्ट्रपति लूकाशेन्को और दूसरे युद्ध अपराधियों के खिलाफ मुकदमा चलाना चाहिए। यूक्रेन के पीड़ितों को न्याय दिए बिना स्थायी शांति नहीं आ सकती है।

  • ओलेक्सांद्रा बेलारूस और रूस में भी मानवाधिकार उल्लंघन के मुद्दे उठाती रही हैं और दोनों देशों की सरकार की आलोचक हैं।
  • ओलेक्सांद्रा का संगठन यूक्रेन में सिर्फ लोगों की नहीं बल्कि जानवरों के बचाव में भी मदद कर रहा है।
  • वे मानती हैं कि अगर पुतिन के युद्ध को यूक्रेन में ही नहीं रोका गया तो वे बाकी यूरोप की तरफ भी बढ़ सकते हैं।

2007 में बना था सेंटर फॉर सिविल लिबर्टीज

ये संगठन यूक्रेन की राजधानी कीव में 2007 में बना था। इसका मकसद यूक्रेन में लोकतंत्र को मजबूत करना था। संगठन का कहना है कि यूक्रेन में अब भी सही मायनों में लोकतंत्र नहीं है।ऑर्गेनाइजेशन की मांग है कि यूक्रेन को इंटरनेशनल क्रिमिनल कोर्ट का हिस्सा बनना चाहिए। इसी साल फरवरी में जब रूस ने यूक्रेन पर हमला किया तो इस संगठन वॉर क्राइम के मामलों की जांच की। अब ये मामले इंटरनेशनल कोर्ट में दायर किए जा रहे हैं।

जेल में बंद बेलारूस के ह्यूमन राइट्स एडवोकेट आलिस को शांति का नोबेल पुरस्कार

बेलारूस के ह्यूमन राइट्स एडवोकेट आलिस बिलिआत्स्के को भी नोबेल शांति पुरस्कार के लिए चुना गया है। आलिस ने 1980 में बेलारूस की तानाशाही के खिलाफ डेमोक्रेसी मूवमेंट का आगाज किया था। वे आज तक अपने देश में सच्चा लोकतंत्र बहाल करने की जंग लड़ रहे हैं।

रूस-यूक्रेन जंग में बेलारूस के राष्ट्रपति लुकाशेंको व्लादिमिर पुतिन के साथ खड़े हैं। आलिस का संगठन जेल में बंद लोकतंत्र समर्थकों को कानूनी मदद देता है। आलिस खुद भी अभी जेल में हैं।

रूस के ह्यूमन राइट्स ऑर्गेनाइजेशन मेमोरियल को भी अवॉर्ड
रूस के ह्यूमन राइट्स ऑर्गेनाइजेशन मेमोरियल को भी शांति का नोबेल पुरस्कार दिया गया है। यह संगठन 1987 में बना था। सोवियत संघ के 15 हिस्सों में बिखरने के बाद रूस का यह सबसे बड़ा मानवाधिकार संगठन बना।

इसने स्टालिन के दौर से अब तक राजनैतिक कैदियों के लिए आवाज उठाई। रूस ने जब चेचेन्या पर हमला किया और 2009 में संगठन की नतालिया एस्तेमिरोवा मारी गईं तो इस संगठन ने विश्व स्तर पर आवाज उठाई। रूसी सरकार इसे विदेशी जासूसों का संगठन बताती है।

1. भारत से भी तीन लोग अवॉर्ड के लिए नॉमिनेट हुए

टाइम मैगजीन ने भारत से तीन लोगों के नाम नोबेल पीस प्राइज की दौड़ में होने की जानकारी दी थी। इनमें फैक्ट चेकर मोहम्मद जुबैर और प्रतीक सिन्हा के अलावा सांप्रदायिकता के खिलाफ काम करने वाले कारवां-ए मोहब्बत संस्था के हर्ष मंदर थे। हालांकि, तीनों भारतीयों को नोबेल नहीं मिला।

2. जुबैर का नाम चर्चा में रहा पर नोबेल नहीं मिला, उन पर धार्मिक भावनाएं भड़काने समेत 7 केस
टाइम मैगजीन ने नोबेल पीस प्राइज के लिए मोहम्मद जुबैर के नाम का भी जिक्र किया था। वे ‘ऑल्ट न्यूज’ (Alt News) नाम से फैक्ट चेकिंग वेबसाइट में काम करते हैं। जुबैर लगातार विवादों में रहे हैं। धार्मिक भावनाएं भड़काने के मामले में उनकी गिरफ्तारी हुई थी। 22 दिन जेल में रहने के बाद फिलहाल उन्हें सुप्रीम कोर्ट से अंतरिम जमानत मिली हुई है।