जितने अलीगढ़ के ताले मशहूर…उससे ज्यादा चमचम:79 साल पहले रघ्घा सेठ की रसोई से निकली; खासियत ऐसी कि सरकार ने दिया GI टैग

चमचम…ये नाम सुनते ही जेहन में मिठास घुल जाती है। यूं तो चमचम यूपी के कई शहरों में मिल जाती है, लेकिन अलीगढ़ के कस्बा इगलास की चमचम की बात ही कुछ और है। न सिर्फ देश बल्कि इसके दीवाने विदेशों में भी हैं। जो ऑनलाइन डिलीवरी के जरिए चमचम को मंगवाते हैं।

अलीगढ़ का नाम सुनते ही दिमाग में दो चीजें जाती हैं। पहली- ताला। दूसरी- इगलास की चमचम। दरअसल, इगलास अलीगढ़ का कस्बा है, जो मथुरा-अलीगढ़ रूट पर है। कहते हैं कि यहां से जो भी गुजरता है वह बिना चमचम खरीदे नहीं जाता। यही कारण है कि सड़क के दोनों तरफ चमचम की दुकाने हैं। एक और बात। स्पेशियलिटी के चलते यहां की चमचम को GI टैग भी मिला हुआ है।

दूध फाड़कर बनाई जाती है चमचम
चमचम को दूध फाड़कर तैयार किया जाता है। कस्बे में चमचम की शुरुआत करने वाले रघ्घा सेठ के पौत्र हरि सिंघल ने बताया कि चमचम तैयार करने के लिए पहले दूध फाड़कर छेना बनाया जाता है। इसमें इलायची मिलाई जाती है। ये सौंधी महक का काम करती है। फिर इसके गोले बनाए जाते हैं। इसे बनाने के लिए रिफाइंड या घी का इस्तेमाल नहीं किया जाता। बल्कि सिर्फ चाशनी में पकाया जाता है। यही कारण है कि यह एक महीने तक खराब नहीं होती है। लोग इसे आसानी से अपने साथ रखकर दूर-दूर तक ले जाते हैं।

25 पैसे से शुरू हुआ, आज 11 रुपए का चमचम
इगलास के चमचम की कीमत भी बिल्कुल बजट में है। यूं तो इसकी शुरुआत 1944 में हुई थी, उस समय एक पीस का रेट 25 पैसे रखा था। आज चमचम की कीमत बढ़कर 11 रुपए हो गई है। चमचम का एक किलो का पैकेट 220 रुपए का है। इसमें 20 पीस चमचम होते हैं।

चमचम लाए… मतलब इगलास गए थे
अलीगढ़ में टूरिस्ट कम आते हैं, लेकिन मथुरा-वृंदावन का रास्ते होने के चलते इगलास में टूरिस्ट जरूर ठहरते हैं। मकसद होता है यहां के चमचम का स्वाद लेना और अपने दोस्तों-रिश्तेदारों के लिए ले जाना। ये तरह-तरह के आकर्षक पैकिंग में उपलब्ध रहती है। इसलिए इसको कैरी करना भी आसान है।

मुंबई से आए टूरिस्ट प्रवेश सिंह कहते हैं कि बांके बिहारी के दर्शन के लिए निकलते थे। मगर रास्ते में ही इतने फोन आए कि इगलास की चमचम जरूर लेते आना। इसके बाद हमारा स्टॉपेज इगलास बन गया। ये है भी बहुत टेस्टी।

20 लाख का कारोबार हर दिन
इगलास के चमचम की शुरुआत तो एक घर से हुई थी। बताया जाता है कि रघ्घा सेठ ने इसे शुरू किया था। 1996 में उनका निधन हो गया। अब उनके परिवार के लोग इस विरासत को आगे बढ़ा रहे हैं। लेकिन इगलास में अब इसकी पूरी बाजार हो चुकी है। कस्बे में दोनों तरफ सिर्फ चमचम की दुकानें ही नजर आती हैं। एक अनुमान के मुताबिक, इस छोटे से कस्बे में चमचम का कारोबार 20-25 लाख रुपए का रोजाना है। त्योहार के दौरान यह 10 गुना तक हो जाता है। रघ्घा सेठ के अलावा, यहां मंगला चमचम वाले, ननुआ मिठाई वाले, बेसवां चमचम वाले, दुर्गा चमचम की दुकान काफी फेमस हैं।

कई राज्यों में डिमांड, विदेशों तक पहुंच
अलीगढ़ का चमचम यूपी के साथ हरियाणा, राजस्थान, मध्यप्रदेश और अन्य राज्यों तक जाता है। लेकिन इसकी मिठास विदेशों तक मशहूर है। इलाके में रहने वाले सरोज कुमार ने बताया,”मेरा बेटा अमेरिका में है। जब भी वह यहां आता है, तो अपने दोस्तों के लिए चमचम लेकर जरूर जाता है।”

इगलास की चमचम का नाम सुनकर आम पब्लिक के साथ बॉलीवुड और क्रिकेट सेलिब्रिटी तक के मुंह में पानी आ जाता है। मथुरा-वृंदावन आने वाले लोग चमचम खाना नहीं भूलते। नवजोत सिंह सिद्धू, जब यहां आए थे तो वह भी अपने साथ चमचम लेकर गए थे। पूर्व प्रधानमंत्री चौ. चरण सिंह के पौत्र और रालोद के राष्ट्रीय अध्यक्ष व राज्यसभा सांसद जयंत चौधरी भी जब अलीगढ़ आते हैं, तो चमचम को जरूर याद करते हैं। कवि अशोक चक्रधर ने तो कटोरदान में इगलास की चमचम कविता तक लिखी है। ‘भाभी जी घर पर हैं’ सीरियल के लेखक मनोज संतोष भी चमचम के मुरीद हैं।