Divorce Temple मातसुगोका टोकेई-जी जिस डिवोर्स टेम्पल के नाम से जाना जाता है। यह मंदिर का जापान में बेहद खूबसूरत जगह पर स्थित है। आप यहां का वास्तुकला देखकर मंत्रमुग्ध हो जाएंगे। यह मंदिर तलाकशुदा महिलाओं को सशक्त बनाने के रूप में दुनियाभर में प्रसिद्ध हुआ। आज इसे महिलाओं की स्वतंत्रता के लिए एक प्रतीक के रूप में जाना जाता है। आइए जानते हैं क्या है डिवोर्स टेम्पल का इतिहास।
Divorce Temple:आज के मॉडर्न ज़माने में भी तलाकशुदा महिलाओं को कई तरह के ताने और बातें सुननी पड़ती हैं, लेकिन सदियों पहले ऐसा भी वक्त था जब महिलाओं को तलाक लेने की इजाज़त भी नहीं थी। वो अत्याचार सहने पर मजबूर थीं, क्योंकि उन्हें तलाक लेने की मनाही थी। यह तब तक चला जब तक जापान के एक आश्रम ने इसे बदलने की नहीं सोची।
12वीं और 13वीं शताब्दी के दौरान जापानी समाज में तलाक के प्रावधान थे, लेकिन वे सिर्फ पुरुषों के लिए ही थे। पुरुष अपनी पत्नियों को आसानी से तलाक दे सकते थे जबकि महिलाएं घरेलू दुर्व्यवहार के खिलाफ खड़ी भी नहीं हो सकती थीं। उन्हें अपना पूरा जीवन अपने टॉक्सिक पतियों को समर्पित कर बिताना पड़ा क्योंकि अलग होने का कोई कानूनी तरीका नहीं था।
हालांकि, 1285 में, मातसुगोका टोकेई-जी (Matsugaoka Tokeiji), जिसे डिवोर्स टेम्पल के नाम से भी जाना गया। इसके दरवाजें ऐसी महिलाओं के लिए खुले, जो घरेलू हिंसा की शिकार थीं। आइए जानें जापान के इस खास मंदिर के इतिहास के बारे में।
टोकेई-जी मंदिर का इतिहास
डिवोर्स टेम्पल या तलाक का मंदिर यह नाम सुनने में जितना अजीब है, उतना ही अनोखा इसके पीछे का विचार भी है। Matsugaoka Tokeiji नाम के इस मंदिर को 600 साल पहले बनाया गया था। यह जापान के कामाकुरा शहर में स्थित है। जापान का यह मंदिर ऐसी कई महिलाओं का घर है, जो घरेलू हिंसा का शिकार बनीं। इसकी वजह भले ही बेहद दुखद और दिल दुखाने वाली हो, लेकिन इसकी सख्त जरूरत भी थी। सदियों पहले कई महिलाएं अपने अत्याचारी पति से बचने के लिए इस मंदिर में पनाह लेती थीं।
इस खास मंदिर को काकूसान-नी नाम की एक नन ने अपने पति होजो टोकीमून की याद में बनवाया था। यहीं उन्होंने उन सभी महिलाओं का स्वागत किया जो अपनी शादी से खुश नहीं थीं और न ही उनके पास तलाक लेने का कोई तरीका था।
मंदिर में नहीं थी पुरुषों को आने की अनुमति
कामकुरा युग में, पतियों को बिना कोई कारण बताए अपनी शादी को खत्म करने के लिए सिर्फ एक औपचारिक तलाक पत्र, “साढ़े तीन पंक्तियों का नोटिस” लिखने की आवश्यकता होती थी। वहीं, दूसरी ओर महिलाओं के पास इस तरह अधिकार नहीं था। इस शादी से भाग जाना ही उनके पास इकलौता चारा था। टोकेई-जी में तीन साल रहने के बाद, उन्हें अपने पतियों के साथ वैवाहिक संबंध तोड़ने की अनुमति दी जाती थी। बाद में इस अवधि को घटाकर सिर्फ दो साल कर दिया गया था।
इस मंदिर को अक्सर “अलगाव का मंदिर” भी कहा जाता था। 600 साल पुराने इस मंदिर में साल 1902 तक पुरुषों का आना मना था। इसके बाद 1902 में एंगाकु-जी ने जब इस मंदिर की देखरेख संभाली तो पहली बार एक पुरुष मठाधीश को नियुक्त किया।
खूबसूरत बागानों से घिरा है यह मंदिर
यह बौद्ध मंदिर पांच ज़ेन भिक्षुणियों के नेटवर्क का एक हिस्सा है, जिसे अमागोज़न के नाम से जाना जाता है। मंदिर सुंदर बगीचों से घिरा हुआ है और इसमें एक मुख्य हॉल है जो आगंतुकों के लिए खुला है। मीजी काल में इसे एक जापानी व्यापारी टोमिटारो हारा ने खरीदा था। 1923 में ग्रेट कांटो भूकंप के कारण मंदिर को बड़ी वास्तुशिल्प क्षति हुई और इसके पुनर्निर्माण में 10 साल का समय लगा। मंदिर में एक कब्रिस्तान भी है और कई मशहूर हस्तियों को वहां दफनाया भी गया है।
मंदिर की मुख्य नन का पद काफी महत्वपूर्ण माना जाता था। जिस पर कई बार कुछ शाही महिलाएं भी रही हैं, जो अपने पतियों की मृत्यु के बाद नन बन जाती थीं, जो एक पुरानी जापानी परंपरा भी थी।
हालांकि, 1873 में जापान में तलाक कानून लागू होने के बाद इस मंदिर ने महिलाओं को तलाक देना बंद कर दिया, लेकिन यह मंदिर महिलाओं के लिए तलाक को वैध बनाने और उन्हें घरेलू अत्याचार से बचने में मदद करने के जापानी समाज के प्रयासों का प्रतीक बन गया।