OMG-2 को बैन नहीं कर सकता सेंसर बोर्ड:कुछ आपत्तिजनक होगा तो सुधारे जाने तक रिलीज रुकेगी, जानिए कैसे काम करता है सेंसर बोर्ड

11 अगस्त को रिलीज होने जा रही अक्षय कुमार की OMG 2 को लेकर खबरें थीं कि सेंसर बोर्ड ने इसे बैन कर दिया है और इसकी रिलीज पर रोक लगा दी है, लेकिन सेंसर बोर्ड के पास ये अधिकार नहीं होता है कि वो किसी फिल्म को बैन कर सके। ये कहना है पूर्व चेयरमैन पहलाज निहलानी का।

कैसे पास होती हैं सेंसर बोर्ड से फिल्में?
पूर्व चेयरमैन पहलाज निहलानी के मुताबिक, जब कोई प्रोड्यूसर फिल्म दिखाने के लिए सेंसर बोर्ड के पास आता है तो एग्जामिनिंग कमेटी फिल्म देखती है जिसमें चार मेंबर्स होते हैं। इनमें दो महिलाएं और दो पुरुष होते हैं। इस कमेटी में कोई बोर्ड मेंबर नहीं होता है। चार मेंबर्स की कमेटी फिल्म देखने के दौरान रील दर रील अपने पॉइंट्स नोट करती जाती है।

अगर उन्हें कोई भी आपत्तिजनक बात लगती है या कोई कट लगाने का सजेशन है तो बाद में सभी चार सदस्य आपस में डिस्कशन करने के बाद फिल्म पर अपनी फाइनल रिपोर्ट दिखाते हैं। इनमें से सबसे सीनियर मेंबर सभी के पॉइंट्स सुनकर डिसीजन ले सकता है। सभी चार सदस्य फिर अपनी रिपोर्ट्स के आधार पर डिस्कशन करके फिल्म में फाइनल कट्स या कोई डिस्क्लेमर लगाने की सिफारिश करते हैं। अगर चारों मेंबर्स में कट्स और कौन सा सर्टिफिकेट देना है, इस पर सहमति न बन पाए तो चेयरमैन सेकेंड व्यूइंग के तौर पर फिल्म खुद देखकर फैसला करते हैं।

इसके बाद प्रोड्यूसर को बुलाकर डिस्कशन किया जाता है या शो कॉज नोटिस दिया जाता है और बताया जाता है कि फिल्म में क्या-क्या चेंजेज किए जाने हैं। इस दौरान प्रोड्यूसर को भी पूरा मौका दिया जाता है कि अगर उसे किसी कट या डिस्क्लेमर पर आपत्ति है तो वो अपनी बात रख पाए।

अगर किसी सीन को लेकर चारों मेंबर्स को आपत्ति है, लेकिन प्रोड्यूसर उसे फिल्म में रखना चाहता है, तो इस पर भी उसे डिबेट का मौका दिया जाता है। अगर वो अपने तर्कों से मेंबर्स को कन्विंस कर लेता है तो फिर चारों मेंबर्स एक बार फिर डिस्कशन करते हैं कि कट लगने हैं या नहीं।

अगर प्रोड्यूसर सेंसर बोर्ड के बताए बदलाव न करे तो?
पहलाज निहलानी के अनुसार, अगर प्रोड्यूसर ऐसा करता है तो वो फिल्म थिएटर में रिलीज ही नहीं कर पाएगा। सेंसर बोर्ड मेंबर्स फिल्म देखने के बाद जो कट्स या डिस्क्लेमर फिल्म में प्रपोज करते हैं, उन्हें फिल्म में बदलाव कर प्रोड्यूसर को एक बार फिर सेंसर बोर्ड की रिवाइजिंग कमेटी को दिखाना पड़ता है।

ये कमेटी ओरिजिनल फिल्म का फुटेज देखती है और फिर मॉडिफाइड फुटेज देखती है कि किसी सीन में जो कट बताया गया था वो लगा या नहीं, कोई डायलॉग मॉडिफाई करना था, वो किया या नहीं। पूरे चेंजेज को देखने के बाद रिवाइजिंग कमेटी फाइनल फिल्म फुटेज पर साइन और सील करती है। फिल्म का पूरा रिकॉर्ड CBFC के पास रहता है। फिर सर्टिफिकेट देने के बाद जब फिल्म डिजिटल फॉर्मेट में प्रोड्यूसर को सौंपी जाती है और इस दौरान फिल्म में एक भी एक्स्ट्रा फ्रेम हुआ तो उसे एग्जिबिट करने की अनुमति नहीं दी जाती है।

फिल्म बैन नहीं सिर्फ रिफ्यूज कर सकता है सेंसर बोर्ड
सेंसर बोर्ड को 64 दिनों के भीतर फिल्म पास करनी होती है, लेकिन कई बार फिल्म की रिलीज डेट या कोई इमरजेंसी को देखते हुए इन्हें जल्दी भी पास कर दिया जाता है। ये अधिकार CEO या रीजनल ऑफिसर्स के पास होता है कि वो एग्जामिनिंग कमेटी और रिवाइजिंग कमेटी के मेंबर्स को बता दें कि उन्हें किस फिल्म का रिव्यू प्रायोरिटी बेसिस पर करके उसे सर्टिफिकेट देना है।

हाल ही में खबर आई थी कि अक्षय कुमार की 11 अगस्त को रिलीज होने जा रही फिल्म OMG 2 की रिलीज पर बोर्ड ने रोक लगा दी है, लेकिन पहलाज निहलानी ने कहा कि सेंसर बोर्ड किसी फिल्म को बैन नहीं कर सकता है। वो इसे रिफ्यूज जरूर कर सकता है कि उन्हें फिल्म के किसी सीन या डायलॉग पर आपत्ति है। रिवाइजिंग कमेटी प्रोड्यूसर को बताती है कि इसमें क्या मॉडिफिकेशन हो सकते हैं।

मेकर्स को खुद ही अंदाजा होता है कि फिल्म में कहां क्या विवादित हो सकता है तो वो चाहें तो खुद ही कमेटी को चेंजेज करके फिल्म पास करवा सकते हैं।

अगर चेंजेज के बावजूद कमेटी फिल्म को मान लीजिए पास नहीं करती है तो प्रोड्यूसर फिर बदलाव करके फिल्म पास करवाने की कोशिश कर सकता है।

आमतौर पर फिल्में इसके बाद पास कर दी जाती हैं, लेकिन अगर ऐसा भी नहीं हो पाता तो प्रोड्यूसर के पास पहले ट्रिब्यूनल के पास जाने का रास्ता खुला रहता था, लेकिन 2021 में सरकार ने इसे गैरजरूरी मानकर भंग कर दिया है। इसके बाद प्रोड्यूसर के पास केवल कोर्ट का दरवाजा खटखटाने का रास्ता बचता है।

आदिपुरुष के मामले में कहां चूका सेंसर बोर्ड?
पहलाज निहलानी बोले- फिल्म की भाषा को बोर्ड ने सीरियसली नहीं लिया। मर्यादा पुरुषोत्तम राम या हनुमान की भाषा कैसी हो, इस पर फिल्म देखने वाली कमेटी ने ध्यान ही नहीं दिया। कई बार पैनल में ऐसे मेंबर्स होते हैं जो इन बातों की गंभीरता नहीं समझते और वो लिबरल विचारधारा अपनाते हैं।

ऐसे में सीनियर ऑफिसर्स या CEO की जिम्मेदारी होती है कि तो माइथॉलॉजी जैसे गंभीर विषय पर एक्सपर्ट्स को बैठाएं क्योंकि रिव्यू से पहले स्क्रिप्ट सेंसर के पास होती है ताकि वो तय कर पाएं कि उन्हें किसे फिल्म दिखानी चाहिए तो वहां एग्जामिनिंग कमेटी या रिवाइजिंग कमेटी में बैठने वाले लोगों का चुनाव बहुत ही सावधानी से करना बेहद अहम है, लेकिन कई बार इसमें चूक हो जाती है क्योंकि इसमें भी सीनियर ऑफिसर्स द्वारा फेवरिज्म हावी है जिससे ऐसी गड़बड़ी हो जाती है।

मेरे कार्यकाल में अमित शाह ने भी कुछ फिल्मों के रिव्यू में दखल दिया था क्योंकि उस समय फिल्मों को लेकर काफी विवाद हो रहे थे। शाहरुख खान की फिल्म का टाइटल बदला गया था। उससे पहले संजय लीला भंसाली की फिल्म गोलियों की रासलीला रामलीला के टाइटल पर काफी हंगामा हुआ था। तो ऐसे कई सेंसिटिव मामले हुए थे। लोग सेंसर बोर्ड में मोर्चा लेकर आ जाते थे।

OTT सेंसरशिप से अब भी बाहर
OTT पर सेंसरशिप नहीं होने पर पहलाज निहलानी ने कहा कि इसे भी सेंसर करना चाहिए, क्योंकि वल्गैरिटी, गाली-गलौज बहुत ज्यादा बढ़ गई है। हमारे देश की संस्कृति दूषित हो रही है। एक तरफ फिल्मों या छोटे से ऐड के लिए भी सेंसरशिप लागू है, वहीं दूसरी तरफ OTT पर कोई लगाम नहीं है, जबकि फिल्में और OTT IB मिनिस्ट्री के अंडर ही आती हैं।

OTT सेंसरशिप के पक्ष में फिल्ममेकर विवेक रंजन अग्निहोत्री भी हैं। उन्होंने दैनिक भास्कर से बातचीत में कहा कि OTT CBFC के दायरे में नहीं आता है, लेकिन वो कानून से ऊपर तो नही है। इसे भी सेंसर करना चाहिए क्योकि फिल्में, टीवी शोज और विज्ञापन भी सेंसर बोर्ड के दायरे में आते हैं।

9 सेंटर्स पर होता है सर्टिफिकेशन का काम
केंद्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड यानी सेंटर फॉर फिल्म सर्टिफिकेशन ऑफ इंडिया को जून 1983 तक केंद्रीय फिल्म सेंसर बोर्ड के नाम से जाना जाता था। इसकी स्थापना मुंबई में की गई। शुरुआत में इसके रीजनल ऑफिस मुंबई, चेन्नई और कोलकाता में थे। अब इसके रीजनल ऑफिस बेंगलुरु, हैदराबाद, तिरुवनंतपुरम, नई दिल्ली, कटक और गुवाहाटी में भी हैं, जो रीजनल सिनेमा के सर्टिफिकेशन का काम करते हैं। यानी देशभर में कुल 9 जगहों पर ‘सेंट्रल बोर्ड ऑफ फिल्म सर्टिफिकेशन’ के ऑफिस हैं।

केंद्र सरकार द्वारा बोर्ड में एक अध्यक्ष और कम से कम बारह से पच्चीस तक मेंबर्स को अपॉइंट किया जाता है। इनका कार्यकाल तीन साल से ज्यादा का नहीं होता है। सेंसर बोर्ड में नियुक्ति के लिए ऐसे लोगों को चुना जाता है जो कि फिल्मों की समझ रखते हों। आमतौर पर फिल्मी पर्सनैलिटी, सोशल वर्कर, आर्ट्स की समझ रखने वाले या एजुकेशन से जुड़े व्यक्ति को तवज्जो दी जाती है। रीजनल सेंटर्स में फिल्म सर्टिफिकेशन के लिए इन लोगों के पैनल की सहायता ली जाती है।

क्यों बना सेंसर बोर्ड?
सेंसर बोर्ड एक सेंसरशिप बॉडी है जो मिनिस्ट्री ऑफ इन्फॉर्मेशन एंड ब्रॉडकास्टिंग के अंडर में काम करती है। भारत में कोई भी फिल्म, टीवी ऐड, सीरियल दिखाने से पहले एक सर्टिफिकेट की जरूरत पड़ती है, जिसे सेंसर बोर्ड जारी करता है। अगर कोई प्रोड्यूसर ऐसा न करे तो वो फिल्म, ऐड या टीवी शो को दिखा ही नहीं सकता है। सेंसर बोर्ड पहले कंटेंट की समीक्षा करता है और फिर सर्टिफिकेट देता है, ताकि आप पब्लिक डोमेन में कंटेंट दिखा पाएं।