महिलाओं ने किया मां बनने से इनकार:चीन, जापान और साउथ-कोरिया में कम पैदा हो रहे बच्चे; बूढ़ों को सुसाइड का सुझाव दे रहा प्रोफेसर

17 जनवरी 2023 को चीन की कम्युनिस्ट सरकार ने बताया था कि 60 साल में पहली बार वहां की आबादी में 8 लाख 50 हजार की कमी आई है। ठीक 5 दिन बाद 23 जनवरी को जापान के प्रधानमंत्री फुमियो किशिदा ने कहा कि देश की घटती आबादी को लेकर अभी कुछ नहीं किया गया तो बहुत देर हो जाएगी।

इसके 2 ही दिन बाद 25 जनवरी को साउथ कोरिया सरकार ने बताया कि उनके यहां 2022 के नवंबर महीने तक केवल 2 लाख 31 हजार बच्चे पैदा हुए, जो पिछले साल के मुकाबले 4.3% कम हैं। इन तीनों ही देशों के लिए घटती आबादी बड़ी मुश्किलें पैदा कर रही है।

साउथ कोरिया में फर्टिलिटी रेट घटकर 1% से नीचे पहुंचा
साउथ कोरिया ने अगस्त 2022 में सबसे कम फर्टिलिटी रेट का अपना ही रिकॉर्ड तोड़ दिया। यहां लगातार तीसरे साल दुनिया में सबसे कम बच्चे पैदा हुए। 2020 में पहली बार पैदा होने वाले बच्चों से मरने वाले लोगों की तादाद ज्यादा हुई। 2021 में फर्टिलिटी रेट घटकर 0.81% हो गया और 2022 में सबसे निचले स्तर 0.79% पर पहुंच गया। इसका मतलब यह है कि वहां एक महिला एक बच्चे को भी जन्म नहीं दे रही है।

पहले बर्थ कंट्रोल का कानून बनाया, अब आबादी बढ़ाने की चुनौती
1960 के दशक में साउथ कोरिया में एक महिला औसतन 6 बच्चे पैदा करती थी। नॉर्थ कोरिया के साथ हुई जंग के आर्थिक नुकसान से उभरने के लिए साउथ कोरिया ने बर्थ कंट्रोल के लिए कई सख्त कानून लागू किए। इसके 20 साल बाद एक महिला औसतन 2.1 बच्चे पैदा करने लगी। ये ट्रेंड धीरे-धीरे वहां के लाइफ स्टाइल का हिस्सा बन गया। साउथ कोरिया में सरकार कई तरह की स्कीम लाकर और प्रोग्राम चलाकर 16 साल में 17 लाख करोड़ रुपए खर्च कर चुकी है। फिर भी वहां बर्थ रेट नहीं सुधर पाया है।

महिलाएं बच्चों की एकतरफा जिम्मेदारी नहीं उठाना चाहती हैं…
साउथ कोरिया में हाल ही के दिनों में ‘मैरिज स्ट्राइक’ शब्द काफी फेमस हुआ है। दरअसल शादी के बाद पड़ने वाले एकतरफा बोझ से बचने के लिए यहां महिलाएं शादी करने से बच रही हैं। इतना ही नहीं बल्कि 2022 में किए गए एक सर्वे के मुताबिक यहां पुरुषों से ज्यादा अब महिलाएं बच्चे पैदा नहीं करना चाहती हैं। इसका असर वहां के बर्थ रेट पर भी पड़ रहा है।

हालात इतने खराब हो गए हैं कि वहां छोटे बच्चों के लिए बनाए गए स्कूलों को अब नर्सिंग होम्स में बदला जा रहा है। न्यूयॉर्क टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक जिस स्कूल में वहां कभी 700 बच्चे हुआ करते थे, वहां अब केवल 4 बच्चे रह गए हैं।

साउथ कोरिया में बर्थ रेट कम होने के पीछे वहां की सरकार महिलाओं की जागरुकता को जिम्मेदार ठहरा रही है। पिछले साल इलेक्शन कैंपेन के दौरान साउथ कोरिया के राष्ट्रपति ने घटती आबादी के लिए इकलौता जिम्मेदार फेमिनिज्म यानी नारीवाद को ठहराया था।

साउथ कोरिया के राष्ट्रपति बर्थ रेट कम होने के कारण महिलाओं से इतना चिढ़ गए हैं कि उनकी सरकार अब बच्चों की किताबों से लैंगिक समानता जैसे शब्दों को ही हटवा रही है। उनकी सरकार वहां महिला सशक्तिकरण से जुड़े सरकारी हेडक्वार्टर को भी बंद करवाना चाहती है।

बच्चे पैदा करने पर महिलाओं को करियर छोड़ना पड़ता है
न्यूयॉर्क टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक शादी करने और बच्चे पैदा करने के बाद पुरुषों के मुकाबले महिलाओं का काम ज्यादा बढ़ जाता है। उन्हें अपना करियर तक छोड़ना पड़ता है। नौकरी के बावजूद महिलाएं रोजाना 3 घंटे से ज्यादा समय घर के कामों में लगाती हैं जबकि पुरुष केवल 54 मिनट ही देते हैं।

प्रेगनेंसी के बाद महिलाओं को ऑफिस में भी भेदभाव का सामना करना पड़ता है। कई बार उन्हें नौकरी से निकाल दिया जाता है। साउथ कोरिया में एक टीवी चैनल ने महिला न्यूज एंकर को प्रेग्नेंट होने के कारण नौकरी से निकाल दिया था। इसकी वहां सख्त आलोचना हुई थी। इन परेशानियों से बचने के लिए साउथ कोरिया में महिलाएं शादी करने और बच्चे पैदा करने से बचती हैं।

जापान में पैदा होने वाले बच्चों से 6 लाख ज्यादा लोग मरे
23 जनवरी को जापान के प्रधानमंत्री फुमियो किशिदा देश में आबादी घटने के मामले पर लगातार 45 मिनट तक बोलते रहे। उन्होंने कहा कि आबादी घटने की वजह से उनका देश एक संकट से गुजर रहा है।

दरअसल, पिछले साल जापान में 8 लाख से भी कम बच्चों ने जन्म लिया, जबकि इसी साल यहां 14 लाख लोगों की मौत हुई। यही वजह है कि 1 जनवरी 2023 को जापान की आबादी 12 करोड़ 47 लाख थी, जो एक जनवरी 2022 की आबादी की तुलना में 0.43% कम है।

जापान के लिए आबादी संकट आने वाले समय में कितनी बड़ी समस्या होगी इसका अंदाजा इस बात से लगा सकते हैं कि इस वक्त जापान की आबादी में 65 साल से अधिक उम्र के लोगों की संख्या 29% है। वहीं, शून्य से 14 साल के बच्चों की आबादी 11.6% है।

ऐसे में आने वाले साल में जापान की युवा आबादी में और गिरावट आने की संभावना है। इसकी वजह से यहां कामगारों की संख्या घटेगी, जबकि पेंशन और दूसरी सुविधा लेने वाले बुजुर्गों की आबादी लगातार काफी तेजी से बढ़ेगी। ये समस्या जापान के लिए अगले दशक की सबसे बड़ी मुसीबत हो सकती है।

जापान में कम बच्चे पैदा होने और आबादी घटने की वजह क्या है?
जापान में कम बच्चे पैदा होने की एक वजह निक्की एशिया वेबसाइट की इस रिपोर्ट से समझिए…

जापान की राजधानी टोक्यो के उत्तरी हिस्से में 30 साल की एक महिला साइतामा रहती है। कोरोना महामारी के दौरान साइतामा घर पर रह रही थी। ऐसे में उसे लगा कि ये समय दूसरा बच्चा पैदा करने के लिए सही है। हालांकि, जब उसने देखा कि महामारी के दौरान घर में रहने के बावजूद उसके पति घरेलू काम में उसकी मदद नहीं कर रहे हैं तो उसने दूसरा बच्चा पैदा करने का अपना इरादा बदल लिया।

जापान टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक कोरोना वायरस के चलते यहां हेल्थ और इकोनॉमी को लेकर हालात बुरे हो गए हैं। जिसके कारण महिलाएं अभी मां बनने से बच रही हैं। वहीं 2022 में सरकार ने एक रिपोर्ट जारी की थी। इसमें बताया गया था कि 20 से 40 साल के लोग महंगाई और नौकरी से जुड़ी चिंताओं के कारण फैमिली प्लानिंग करने से दूर भाग रहे हैं।

जापान में आबादी बढ़ाने के लिए सरकार क्या कर रही है?
जापान में बर्थ रेट को बढ़ाने के लिए सरकार कोई कसर नहीं छोड़ रही है। जापान टुडे की रिपोर्ट के मुताबिक इस साल से वहां बच्चे पैदा करने पर मिलने वाली राशि में 48 हजार रुपए की बढ़ोतरी की है। जापान में बच्चा पैदा करने पर पेरेंट्स को अब 3 लाख रुपए दिए जा रहे हैं।

इसके अलावा घर बसाने के इच्छुक जोड़ों को छह लाख येन यानी करीब 4.25 लाख रुपए तक की प्रोत्साहन राशि देने का फैसला किया है। ऐसा इसलिए किया जा रहा है, ताकि लोग शादी कर जल्द बच्चे पैदा करें।

60 साल में पहली बार चीन की आबादी घटी
चीन में 2022 में 90 लाख 56 हजार बच्चे पैदा हुए हैं, जबकि 1 करोड़ 41 हजार लोगों की मौत हुई।

2021 के अंत में चीन की जनसंख्या 141.26 करोड़ थी, जो 2022 के अंत में घटकर 141.18 करोड़ हो गई। जन्म दर में आ रही गिरावट की वजह से यहां कामकाजी लोगों की आबादी कम हुई है।

साउथ चाइना मॉर्निंग पोस्ट के मुताबिक चीन की फैक्ट्रियों में काम करने वाले 15 से 64 साल के लोगों की संख्या 2014 में 99 करोड़ 70 लाख थी, जो 2022 में घटकर 98 करोड़ 60 लाख हो गई।

चीन में क्यों घटने लगी आबादी?
चीन के इस हालत में पहुंचने के लिए सबसे ज्यादा जिम्मेदार उसकी पॉपुलेशन कंट्रोल पॉलिसी है। दरअसल, 1979 में चीन में वन चाइल्ड पॉलिसी इंट्रोड्यूस की गई थी। 1980 से इसे लागू कर दिया गया। तब चीन की आबादी 98.61 करोड़ थी और लगातार बढ़ रही थी। चीन को डर था कि बढ़ती आबादी देश के विकास में बाधा बन सकती है।

इस वजह से ये पॉलिसी लागू की गई थी। इस दौरान लोगों को परिवार नियोजन के प्रति जागरूक भी किया गया और सख्ती भी की गई। 1 से ज्यादा बच्चे होने पर लोगों पर फाइन लगाया गया, नौकरी से निकाला गया, महिलाओं को जबरन गर्भपात कराने के लिए मजबूर किया गया और पुरुषों की जबरन नसबंदी की गई।

2016 तक चीन में वन चाइल्ड पॉलिसी लागू रही। माना जाता है कि इस दौरान चीन ने 40 करोड़ बच्चों का जन्म रोका। इसका नुकसान ये हुआ कि देश में वृद्ध लोगों की आबादी बढ़ती रही और युवा आबादी कम हो गई। इस वजह से 2016 में थोड़ी छूट देते हुए टू-चाइल्ड पॉलिसी लागू की गई।