अतीक की पॉलिटिक्स का पावर गेम:जेल से 4 बार चुनाव लड़ा, निर्दलीय जीत की हैट्रिक बनाई, यूपीए सरकार बचाई, सपा ने पावर दिया तो जेल भी भिजवाया

15 अप्रैल, 2023 माफिया अतीक ‘अतीत’ बन गया था। लेकिन एक वक्त ऐसा भी था, जब यूपी में उसकी तूती बोलती थी। अतीक ने अपने आतंक से पहले पैसा और पावर कमाई। फिर इसी की बदौलत राजनीति में आया। अतीक ने निर्दलीय के तौर पर राजनीति में एंट्री ली, फिर जीत की हैट्रिक बनाई।

विधायकी से रौब कमाया, तो सांसदी से पावर हासिल की। उस किरदार में भी आया, जब अतीक सरकार गिराने और बचाने की पटकथा तैयार करने लगा। पहले अतीक ने पार्टियों को टूल बनाया, बाद में नेताओं ने उसका इस्तेमाल किया। सपा ने पद, पोजिशन और रुतबा दिया, तो जेल भी भिजवाया।

तीन चुनावों में हैट्रिक मारकर सबका ध्यान खींचा
जरायम की दुनिया में कामयाबी हासिल करने के बाद अतीक पर ‘पावर’ के साथ-साथ ‘पद’ पाने की सनक सवार हो गई। यही वजह थी कि 1989 में वह पहली बार इलाहाबाद (पश्चिमी) विधानसभा सीट से निर्दलीय ही चुनाव लड़ा और जीत गया। अतीक को 25,906 वोट मिले। उसने अपने प्रतिद्वंद्वी कांग्रेस प्रत्याशी गोपालदास को 8102 वोटों से मात दे दी।

फिर 1991 का चुनाव आया। इस चुनाव में भी अतीक ने 36424 वोट पाकर भाजपा उम्मीदवार रामचंद्र जायसवाल को 15743 वोटों से हरा दिया। यूपी में सरकारें अपना 5 साल का कार्यकाल पूरा नहीं कर पा रही थीं, इसलिए बार-बार चुनाव हो रहे थे। 1993 में फिर चुनाव हुआ। इस बार अतीक ने भाजपा उम्मीदवार तीरथराम कोहली को हरा दिया।

अतीक ने बतौर निर्दलीय प्रत्याशी लगातार तीन चुनावों में जीत की हैट्रिक जमा दी। इससे बाकी राजनीतिक दलों का ध्यान भी अतीक की ओर गया। यही वजह रही कि 1993 में पहली बार अतीक के सपोर्ट में सपा ने चुनाव मैदान में अपना कोई उम्मीदवार तक नहीं उतारा।

यूपी की राजनीति का नया अध्याय… गेस्ट हाउस कांड

2 जून, 1995 को यूपी में एक ऐसी घटना हुई, जो राजनीति के अध्याय में हमेशा के लिए जुड़ गई। इस घटना को गेस्ट कांड नाम दिया गया। दरअसल, सपा-बसपा गठबंधन टूटने के बाद 2 जून 1995 में बसपा सुप्रीमो मायावती लखनऊ के मीराबाई स्टेट गेस्ट हाउस में बैठक कर रही थी। इसी दौरान उन पर कुछ लोगों ने हमला कर दिया।

इस कांड के मुख्य आरोपियों में अतीक अहमद का नाम भी था। इसी घटना के बाद मुलायम सिंह यादव ने पहली बार अतीक अहमद के सिर पर हाथ रखा। 1996 में चुनाव हुआ, तो सपा ने अतीक को टिकट दे दिया। वह पहली बार किसी पार्टी के झंडे पर चुनाव लड़ा। इस चुनाव में उसके खिलाफ भाजपा ने तीरथराम कोहली को मैदान में उतारा, लेकिन अतीक चुनाव जीत गया।

सपा ने सांसदी का टिकट नहीं दिया तो अपना दल को अपनाया
बात 1999 आम चुनाव की है। चार बार विधायकी जीतने के बाद अतीक अब सांसद बनना चाह रहा था। उसने सपा से प्रतापगढ़ सीट से आम चुनाव का टिकट मांग लिया, लेकिन बात बनने की बजाय बिगड़ गई। अतीक ने फटाक से सपा छोड़कर सोनेलाल पटेल की पार्टी अपना दल जॉइन कर ली।

यह वह दौर था, जब अतीक को पूर्वांचल में अल्पसंख्यक वोटरों में सेंध लगाने के लिए इस्तेमाल किया जाने लगा था। अपना दल ने उसे प्रतापगढ़ से टिकट दिया, लेकिन वह चुनाव हार गया। अब अतीक को खुश करने के लिए अपना दल ने उसे यूपी का अध्यक्ष बना दिया।

2002 के उपचुनाव में अपना दल ने उसे फिर टिकट दिया, इस बार वह चुनाव जीत गया। वह सपा उम्मीदवार गोपालदास यादव को हराकर 5वीं बार विधायक बन गया। उस वक्त अपना दल नेता सोनेलाल ने अतीक को फ्री हैंड दे रखा था। पार्टी के लिए आर्थिक फंडिंग भी अतीक ही करता था। इस दौर में अतीक की पूर्वांचल में होल्ड काफी बढ़ गई थी।

2004 आम चुनाव में अतीक फूलपुर से चुनाव लड़ा और जीत गया
भाजपा देश में इंडिया शाइनिंग के नारा बुलंद कर रही थी, लेकिन यूपी में राजनीतिक समीकरण बदल रहे थे। अब अतीक की नजदीकी एक बार फिर सपा से बढ़ रही थी। अतीक को बड़ा फलक चाहिए था। तो मुलायम सिंह यादव को पूर्वांचल के मुसलमानों में अपनी पकड़ मजबूत बनाने के चेहरा चाहिए था। यही वजह रही कि उन्होंने अतीक की सपा में दोबारा वापसी करवाई।

सपा ने उसे 2004 के आम चुनाव में फूलपुर सीट से टिकट भी दिया। अतीक यह चुनाव जीत गया, लेकिन उसे अपनी इलाहाबाद पश्चिम सीट छोड़नी पड़ी। फिर यहां उपचुनाव हुए। इस चुनाव में सपा ने अतीक को खुश करने के लिए उसके छोटे भाई अशरफ को टिकट दे दिया।

बसपा ने अशरफ के खिलाफ राजू पाल को उतारा। मुकाबला कांटे का रहा। लेकिन राजू पाल चुनाव जीतकर विधायक बन गए। अशरफ को ये बात पसंद नहीं आई। उसने कुछ महीनों बाद ही राजू पाल की हत्या कर दी। इस हत्या में अतीक और अशरफ नामजद आरोपी बने। और यहीं से अतीक के पतन का दौर भी शुरू हो गया।

पार्टी की छवि बचाने के लिए सपा ने पार्टी से निकाला
बात, मई 2007 की है। विधानसभा चुनाव में बसपा की पूर्ण बहुमत सरकार बन गई। मायावती सत्ता में फिर लौट आईं। उन्होंने गेस्ट हाउस कांड के आरोपी अतीक अहमद के खिलाफ कार्रवाई शुरू कर दी। बसपा सरकार में उसके खिलाफ कई मुकदमे दर्ज कर लिए गए।

अतीक अब मोस्ट वॉन्टेड बन गया। अतीक इस वक्त तक सपा से सांसद था, लेकिन सपा ने छवि बचाने के लिए उसे पार्टी से निकाल दिया। अब यूपी पुलिस अतीक को गिरफ्तार करने के लिए निकल पड़ी। अतीक फरार हो गया। उसकी गिरफ्तारी के लिए पूरे देश में अलर्ट जारी कर दिया गया। इसी बीच उसने दिल्ली में सरेंडर कर दिया।

अतीक का न्यूक्लियर डील और यूपीए सरकार में रोल
अतीक बतौर सपा सांसद जेल में बंद था, लेकिन कांग्रेस ने अपनी सरकार बचाने के लिए उसका इस्तेमाल किया। 2008 में अमेरिका के साथ परमाणु समझौते को लेकर मनमोहन सिंह सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाया गया। उस समय यूपीए सरकार के पास साधारण बहुमत के लिए 44 मतों की कमी थी। मतदान से 48 घंटे पहले सरकार ने पैरोल पर 6 बाहुबलियों को जेल से बाहर निकालकर उनके वोट डलवाए गए। इन बाहुबलियों में अतीक भी था, जिसके वोट से यूपीए सरकार बच गई।

सपा को डेंट पहुंचाने के लिए कांग्रेस ने अतीक को चुनाव लड़वाया
बात, 2009 की है। अतीक जेल से बाहर निकला। एक बार फिर अपना दल ने बिना मौका गंवाए उसे आम चुनाव लड़ने का प्रस्ताव दे दिया। अतीक प्रतापगढ़ से चुनाव लड़ा, फायदा कांग्रेस को मिला। सपा ने राजा भइया के रिश्तेदार अक्षय प्रताप सिंह को टिकट दिया था। वहीं, कांग्रेस ने रत्ना सिंह को मैदान में उतारा। अतीक के लड़ने से कांग्रेस चुनाव जीत गई और सपा को झटका लगा।

सपा ने अतीक को जेल से करवाया रिहा
2012 में यूपी विधानसभा चुनाव थे। अतीक ने जेल से नामांकन भरा। उसने इलाहाबाद हाईकोर्ट से जमानत की अपील की। उसे जमानत भी मिल गई, लेकिन अतीक राजू पाल की पत्नी पूजा पाल से विधानसभा चुनाव हार गया। लेकिन जब सपा सत्ता में लौटी तो अखिलेश सरकार ने 2013 में अतीक को फिर जेल भिजवा दिया। इसके बाद सपा ने 2014 के लोकसभा चुनाव में अतीक को पहले सुलतानपुर सीट से टिकट दिया, लेकिन बाद में उसे श्रावस्ती से मैदान में उतार दिया। लेकिन वह चुनाव हार गया।

अखिलेश ने अतीक से छीन लिया टिकट
2017, यूपी में विधानसभा चुनाव थे। अतीक ने कानपुर कैंट से सपा के टिकट पर विधानसभा चुनाव की तैयारी शुरू कर दी। लेकिन इसी बीच प्रयागराज के शुआट्स यूनिवर्सिटी में बवाल हो गया। मामला मीडिया में खूब छाया। इस वक्त सपा में अखिलेश यादव और शिवपाल सिंह यादव में ठन गई थी। शिवपाल ने अतीक को कानपुर कैंट से टिकट दे दिया था, लेकिन अखिलेश ने अतीक का टिकट काट दिया। इसी बीच हाईकोर्ट की दखल पर पुलिस ने फरवरी 2017 में उसे गिरफ्तार भी कर लिया।

अतीक का अब नया ठिकाना देवरिया जेल थी। अतीक जेल से रहते हुए 2018 फूलपुर सीट से उपचुनाव लड़ा। इस बार यह चुनाव वह बतौर निर्दलीय उम्मीदवार लड़ा। सपा ने आरोप लगाया कि अतीक यह चुनाव भाजपा की मदद के लिए लड़ रहे हैं। अतीक के लिए उसकी पत्नी शाइस्ता परवीन और उनके बेटों ने खूब प्रचार किया। हालांकि भाजपा यह चुनाव हार गई, सपा को जीत मिली।

ओवैसी, बसपा ने भी अतीक नाम का इस्तेमाल किया
बात, सितंबर 2021 की है। अतीक अहमदाबाद जेल में बंद था। असदुद्दीन ओवैसी ने अतीक की पत्नी शाइस्ता परवीन को अपनी पार्टी AIMIM जॉइन करवा दी। इसके लिए वह खुद लखनऊ आए। ओवैसी ने शाइस्ता को 2022 विधानसभा चुनाव के लिए उम्मीदवार भी घोषित कर दिया। लेकिन बाद में शाइस्ता ने ही चुनाव लड़ने से इनकार कर दिया।

16 महीने बाद शाइस्ता बसपा में शामिल हो गई। ऐसा माना जा रहा था कि बसपा उन्हें प्रयागराज मेयर पद का प्रत्याशी बना सकती है, लेकिन इस बीच उमेश पाल हत्याकांड हो गया। शाइस्ता का नाम हत्याकांड के आरोपियों में शामिल कर लिया गया। फिर बसपा ने शाइस्ता से पल्ला झाड़ लिया। अब तक STF हत्याकांड के आरोपियों का एनकाउंटर शुरू कर चुकी थी। शाइस्ता फरार थी। अतीक की पेशी चल रही थी।