केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) और आइआइटी दिल्ली के विशेषज्ञों ने एक संयुक्त अध्ययन में पाया है कि दिल्ली एनसीआर में पीएम 2.5 के स्तर में पिछले चार वर्षों के दौरान 20 फीसद की गिरावट आई है। विशेषज्ञों ने यह भी कहा है कि भारत ने हाल ही में नेशनल बायोमास मिशन की घोषणा की है। यह एक बहु मंत्रालयीय प्रयास है, जिससे पीएम 2.5 के स्तर में और भी सुधार होने की उम्मीद हैं। इसके तहत न सिर्फ कृषि क्षेत्र बल्कि नगरीय तथा अन्य अनेक सेक्टर भी कवर होंगे।दरअसल, वायु प्रदूषण की समस्या से निपटने के अवसरों पर बातचीत के लिए इंटरनेशनल सेंटर फार इंटीग्रेटेड माउंटेन डेवलपमेंट (आइसीआइएमओडी) और क्लाइमेट ट्रेंड्स ने एक वेबिनार का आयोजन किया। इसमें विशेषज्ञों ने समूचे दक्षिण- एशिया में विकराल रूप लेती वायु प्रदूषण की समस्या और उसके स्वास्थ्य संबंधी पहलूओं की भयावहता को सामने रखा।
आइआइटी कानपुर के सिविल इंजीनियरिंग विभाग के अध्यक्ष प्रोफेसर डा. एसएन त्रिपाठी ने कहा कि भारत और नेपाल के सिंधु गंगा के संपूर्ण मैदानों के बीच एक अप्रत्याशित समानता है। काठमांडू में पीएम 2.5 का स्तर दिल्ली के मुकाबले बढ़ा हुआ दिखाई देता है। वहीं, ढाका में यह अब भी काफी कम है। अगर ढाका व कानपुर की बात की जाए तो घरों में खाना बनाए जाने से निकलने वाला प्रदूषण वायु प्रदूषण के लिए बड़ा जिम्मेदार है। जबकि रसोई गैस का इस्तेमाल होने से घरेलू उत्सर्जन में बहुत कमी आई है। उन्होंने कहा कि कानपुर और ढाका के बीच एक और महत्वपूर्ण समानता यह है कि ढाका में पीएम 2.5 का स्तर कानपुर के मुकाबले कम है, लेकिन धात्विक संकेंद्रण यानी लेड की मात्रा की बात करें तो ढाका की हवा में इसकी मात्रा काफी ज्यादा है।
प्रोफेसर एसएन त्रिपाठी ने कहा कि केंद्र सरकार का नेशनल क्लीन एयर प्रोग्राम भी काफी हद तक शहरों पर केंद्रित है। इसमें 113 नान अटेनमेंट सिटीज को चयनित किया गया है जो राष्ट्रीय वायु गुणवत्ता मानकों को नहीं अपनाती। जल्द ही नेशनल नालेज नेटवर्क के तहत देश के उच्च प्रौद्योगिकी संस्थानों को साथ लेकर नेशनल क्लीन एयर प्रोग्राम को जमीन पर उतारा जाएगा। एयर शेड के बारे में सोचने से पहले प्रांतीय स्तर प्रबंधन को भी तैयार करना होगा।
हेल्थ इफेक्ट्स इंस्टीट्यूट के अध्यक्ष डा. डेनियल ग्रीनबाम ने कहा कि भारत में वायु प्रदूषण के कारण एक लाख से ज्यादा बच्चों की मौत जन्म के तीन महीने में ही हो जाती है। 2019 में पूरी दुनिया में वायु प्रदूषण के कारण करीब पांच लाख बच्चों की मौत जन्म से एक महीने के अंदर ही हो गई। दुनिया में 20 फीसद नवजात बच्चों की मौत का सीधा संबंध वायु प्रदूषण से होता है। असामयिक मृत्यु और विकलांगता के लिए वायु प्रदूषण का चौथा सबसे बड़ा कारण माना जाता है। वर्ष 2019 में पूरी दुनिया में हुई कुल मौतों के 12 फीसद हिस्से के लिए वायु प्रदूषण को जिम्मेदार माना गया।