वैज्ञानिकों ने अल्‍जाइमर की सटीक भविष्‍यवाणी के लिए बनाया डीप लर्निंग आधारित माडल

बढ़ती उम्र के साथ स्मरण शक्ति कमजोर पड़ने लगती है। आमतौर पर यह दिमाग के ऊतकों को नुकसान पहुंचने से होता है। इसे व्यापक परिप्रेक्ष्य में मानसिक विकार अल्जाइमर कहा जाता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, इसमें सबसे ज्यादा योगदान करीब 70 फीसद डिमेंशिया का होता है। फिलहाल इससे ग्रस्त लोगों की संख्या दुनियाभर में 2.4 करोड़ है और हर 20 साल में इनकी संख्या दोगुनी होने का अनुमान है। यह सामाजिक स्वास्थ्य की दृष्टि से एक बड़ी चुनौती है।

मुश्किल यह कि अब तक न तो इसके खतरे की सटीक भविष्यवाणी और न ही इलाज उपलब्ध है। ऐसे में शोधकर्ताओं ने एक डीप लर्निग आधारित एक ऐसा माडल विकसित किया है, जिसमें ब्रेन इमेज के जरिये 99 फीसद सटीकता के साथ अल्जाइमर की भविष्यवाणी की जा सकेगी। यह शोध निष्कर्ष ‘डायग्नोस्टिक्स’ जर्नल में प्रकाशित हुआ है।

अल्जाइमर के खतरे की भविष्यवाणी का यह तरीका 138 सब्जेक्ट्स के एमआरआइ इमेज के विश्लेषण पर आधारित है, जो पुराने तरीके की तुलना में ज्यादा सटीक, संवेदनशील तथा विशिष्ट है।

काउनास यूनिवर्सिटी आफ टेक्नोलाजी (केटीयू) के मल्टीमीडिया इंजीनियरिंग के शोधकर्ता रायटिस मस्केलियुनस बताते हैं कि दुनियाभर में डाक्टर अल्जाइमर के प्रारंभिक चरण में पहचान के लिए जागरूकता बढ़ाने पर जोर दे रहे हैं ताकि प्रभावित लोगों को इलाज से बेहतर लाभ मिल सके। अल्जाइमर के संभावित खतरे का पहला संकेत हल्का विस्मरण (माइल्ड काग्निटिव इंपेयरमेंट- एमसीआइ) होता है, जो उम्र बढ़ने और मनोभ्रंश की अपेक्षित संज्ञानात्मक गिरावट के बीच का चरण है।

पहले के शोध के अनुसार, फंक्शनल मैग्नेटिक रेजोनेंस इमेजिंग (एफएमआरआइ) का इस्तेमाल, मस्तिष्क के उस हिस्से का पता लगाने के लिए किया जा सकता है, जो अल्जाइमर के संभावित खतरे से संबद्ध होता है। एमसीआइ के प्रारंभिक चरणों कोई स्पष्ट लक्षण नहीं दिखते हैं, लेकिन कुछ मामलों में न्यूरोइमेजिंग से पता लगाया जा सकता है।

इमेज के विश्लेषण में आएगी तेजी : हालांकि एफएमआरआइ इमेज के मैनुअल विश्लेषण के जरिये अल्जाइमर से संबंधित बदलाव की पहचान करना संभव है, लेकिन इसमें न केवल विशिष्ट जानकारी की जरूरत होती है, बल्कि उसमें समय भी ज्यादा लगता है। जबकि डीप लर्निग और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के अन्य तरीके से इसमें तेजी लाई जा सकती है।

डीप लर्निग के आधार पर विकसित किया गया यह माडल लिथुआनिया के आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस सेक्टर के शोधकर्ताओं के सहयोग से तैयार किया गया है। इसमें रेसनेट 18 (रेसीड्युअल न्यूरल नेटवर्क) में सुधार कर फंक्शनल एमआरआइ को वर्गीकृत किया गया है। ये इमेज छह अलग-अलग श्रेणियों में बांटे गए, जो एमसीआइ से लेकर अल्जाइमर रोग की स्थिति तक पहुंचने के बीच के थे। इस माडल की सटीकता 99.95 फीसद रही।