विज्ञान की प्रतिष्ठित पत्रिका लैंसेट की सितंबर में छपी रिपोर्ट में सामने आया है कि मौजूदा टीके कोरोना से लड़ने में कारगर हैं। रिपोर्ट में ब्रिटेन में तकरीबन 20 लाख पूर्ण या आंशिक रूप से टीका लगवा चुके लोगों में कोरोना के ब्रेकथ्रू इंफेक्शंस और लक्षणों का विश्लेषण किया गया। पाया गया कि मौजूदा टीके न केवल कोरोना संक्रमण से बचाते हैं, बल्कि संक्रमित लोगों में लक्षणों को भी नियंत्रित करते हैं। वैक्सीन की दोनों डोज लेने वाले 0.2 फीसद लोगो में ही संक्रमण पाया गया और उनमें भी अधिकांश में बहुत मामूली लक्षण देखे गए। यह अध्ययन इस लिहाज से भी हमारे लिए महत्वपूर्ण है, क्योंकि भारत में सबसे ज्यादा लगाई गई कोविशील्ड वैक्सीन और ब्रिटेन की एस्ट्राजेनेका एक ही हैं। इजरायल में भी वैक्सीनेटेड लोगो में ब्रेकथ्रू इंफेक्शन पर की गई रिसर्च में ऐसे ही नतीजे मिले हैं।
ब्रिटेन और इजरायल में तीसरी लहर में अस्पताल में भर्ती होने वाले और मरने वालों की संख्या कम होने का सबसे बड़ा कारण प्रभावी टीकाकरण की रणनीति है। इन दोनों अध्ययनों से एक और महत्वपूर्ण निष्कर्ष यह भी पाया गया कि अस्पताल में भर्ती होने और जान गंवाने वालों में ज्यादातर वही हैं, जिन्होंने वैक्सीन की एक भी डोज नहीं ली थी।
अमेरिका की ही बात करें तो वहां कोरोना की एक और लहर ने फिर से तबाही मचाई हुई है। यहां भी अस्पताल में भर्ती होने वाले और मरने वालो में ज्यादातर वही हैं, जिन्होंने वैक्सीन नहीं ली है। अभी भी अमेरिका की 30 फीसद से ज्यादा आबादी ने वैक्सीन नहीं ली है और यही कारण है कि वहां डेल्टा वैरिएंट ने बड़ी संख्या में लोगों को संक्रमित किया है। यहां रोजाना एक लाख से ज्यादा लोग संक्रमित हो रहे हैं और औसतन रोजाना 1500 से ज्यादा लोगों की मौत हो रही है। भारत कोविड की तीसरी लहर से लड़ने के लिए बेहतर स्थिति में है। पिछले महीनेभर में वैक्सीनेशन की तेज दर इस आत्मविश्वास का कारण है। दुनिया की सबसे पहली डीएनए आधारित जायडस कैडिला की वैक्सीन के इमरजेंसी इस्तेमाल की मंजूरी से भारत में अब चार वैक्सीन उपलब्ध हैं। अगले कुछ महीनों में हैदराबाद की कंपनी बायोलाजिकल ई की वैक्सीन को मंजूरी से एक और विकल्प बढ़ जाएगा।