आज डाक की उपयोगिता केवल चिट्ठियों तक सीमित नहीं है, बल्कि आज डाक के जरिए बैंकिंग, बीमा, निवेश जैसी जरूरी सेवाएं भी आम आदमी को मिल रही हैं। भारत यूनिवर्सल पोस्टल यूनियन की सदस्यता लेने वाला प्रथम एशियाई देश था।
विश्व डाक दिवस का इतिहास
स्वीडन की राजधानी बर्न में 1874 में यूनिवर्सल पोस्टल यूनियन (यूपीयू) की स्थापना समारोह मनाने के लिए विश्व डाक दिवस मनाया जाता है। 1969 में जापान के टोक्यो में हुई यूनिवर्सल पोस्टल यूनियन की बैठक में कांग्रेस द्वारा 9 अक्टूबर को डाक दिवस घोषित किया गया था। तब से पूरी दुनिया में हर साल लगभग 150 देश विश्व डाक दिवस मनाते हैं। इस अवसर पर पर कई देश नई सेवाएं भी शुरू करते हैं।
भारत में डाक सेवाओं का इतिहास बहुत पुराना है। कभी कबूतरों से, तो कभी मेघ को दूत बनाकर संदेश भेजे जाने का भारतीय डाक का इतिहास रोमांच से भरा हुआ है। हर साल 9 से 14 अक्टूबर के बीच डाक सप्ताह मनाया जाता है। सप्ताह के हर दिन अलग-अलग दिवस मनाए जाते हैं। भारत में 1766 में लार्ड क्लाइव ने पहली बार डाक व्यवस्था शुरू की थी। 1774 में वॉरेन हेस्टिंग्स ने कलकत्ता में प्रथम डाकघर स्थापित किया था। चिट्ठियों को पोस्ट करते समय उन पर लगाए जाने वाले स्टैंप्स की शुरुआत 1852 में हुई थी। भारत में वर्तमान पिन कोड नंबर की शुरुआत 15 अगस्त 1972 को हुई थी। इसके बाद हर गांव और शहर में पोस्ट ऑफिस बनाए गए।
साइकिल पर 40 किलोमीटर का दायरा तय करना यह पहचान है भारतीय डाकिया की, जिसे देखकर आज भी जुबां ये कहने से रुक नहीं पाती कि डाकिया डाक लाया..डाक लाया। बदलते दौर में तकनीक के विकास के कारण अब कोई शायद ही अपना संदेश डाक के माध्यम से। पहुंचाता हो। जब देखते ही देखते अपने परिजनों का हाल पता किया जा सकता है, तो भला कौन हफ्तों का इतंजार करे।