सत्ता के गलियारे से: हरियाणा की मनोहर सरकार के बिना पर्ची-बिना खर्ची यानि बिना सिफारिश- बिना रिश्वत के नौकरी देने के नारे का डंका ऐलनाबाद उपचुनाव में भी खूब बज रहा है। इस उपचुनाव की कवरेज के लिए यू-ट्यूबर्स की बाढ़ आई हुई है। जना-जना मोबाइल, कैमरा और माइक हाथ में लेकर पत्रकार बना घूम रहा है। चुनाव लड़ने वाले और प्रचार कर रहे नेता भी उन्हें अपनी-अपनी जरूरत के हिसाब से गले लगा रहे हैं। जिस यू-ट्यूबर्स को जो नेता रास आ जाता है, उसकी जय-जयकार होने लगती है।
एक यू-ट्यूबर्स के जरिये ऐलनाबाद के ढूकड़ा गांव की सच्चाई सामने आई। गांव वाले कैमरे पर बोल रहे हैं कि ढूकड़ा के 39 छोरे-छोरियों को बिना एक भी पैसा दिए सरकारी नौकरियां मिली हैं। लोग इस बात से बेहद खुश हैं और कहते हैं कि ऐसा पहली बार हुआ है कि बिना पर्ची और बिना खर्ची गांव के बच्चों को सरकारी रोजगार मिल गए। अब भाजपा, जजपा व हलोपा गठबंधन के नेताओं के ऊपर है कि वह मुख्यमंत्री मनोहर लाल की सरकार के इस अहम फैसले को कैसे कैश कर पाते हैं।
कानून रद नहीं होंगे, थम राबड़ी पीके सोजो
ताऊ देवीलाल के कुल के एक चिराग हैं आदित्य देवीलाल चौटाला। वह आजकल भाजपा में हैं। अपने नाम के साथ देवीलाल और चौटाला इसलिए लगाते हैं, ताकि राजनीति का माइलेज मिलता रहे। हालांकि उन्होंने अपने नाम के साथ देवीलाल और चौटाला हाल-फिलहाल नहीं लगाया। बहुत पहले से है, शुरू से है। ऐलनाबाद के रण में उम्मीद कर रहे थे कि भाजपा उन्हें अपना उम्मीदवार बनाएगी। भाजपा ने उन्हें सिरसा जिले के प्रधान पद की जिम्मेदारी भी सौंप रखी है।
प्रशासनिक अधिकारियों द्वारा काम नहीं करने के रवैये से आहत आदित्य देवीलाल कई बार इंटरनेट मीडिया पर उनके प्रति अपनी नाराजगी का जबरदस्त तरीके से इजहार कर चुके हैं। इसके बावजूद अफसरों के रवैये में सुधार हुआ हो, ऐसा नजर नहीं आता। आदित्य देवीलाल चौटाला ने हाल ही में अपने हलके के लोगों को कह दिया कि तीन कृषि कानून रद नहीं होंगे। थम राबड़ी पीकै सो जाओ बस…। यानी वोट दो तो ठीक, न दो तो ठीक, लेकिन कानून वापस नहीं होंगे।
हुड्डा ने कांग्रेस के मंच से बना डाली जलेबी
हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा राजनीति के माहिर खिलाड़ी हैं। काफी दिनों तक ऐलनाबाद में कांग्रेस उम्मीदवार पवन बैनीवाल का चुनाव प्रचार करने नहीं पहुंचे। तब तक कुमारी सैलजा ने मोर्चा संभाला। तीन दिन पहले हुड्डा फील्ड में उतरे और माइक संभाल लिया। हालांकि हुड्डा चाहते थे कि 40 साल पुराने कांग्रेसी भरत बैनीवाल को टिकट दिया जाता, लेकिन उन्होंने भी इसे खास मुद्दा नहीं बनाया और सैलजा की पसंद के पुराने लोकदली व भाजपाई से कांग्रेसी बने पवन बैनीवाल को टिकट मिलने का खुला विरोध नहीं किया। हुड्डा ने रैली में मंच संभाल लिया। सबकी उन पर निगाह टिकी हुई थी। न जाने हुड्डा क्या इशारा कर दें।
हुड्डा ने बार-बार गोपाल कांडा व अभय सिंह चौटाला को अपना पुराना दोस्त बताया। उनकी खामियां भी खूब गिनवाई। कहीं से यह नहीं लगा कि वे गोपाल कांडा के भाई गोबिंद कांडा या अभय चौटाला को वोट देने का इशारा कर रहे हैं, लेकिन जब हुड्डा ने कांग्रेस को जिताने की बात तो कही मगर पवन बैनीवाल का नाम नहीं लिया तो उनके जाने के बाद यह चर्चा आम हो गई कि हुड्डा शायद यह इशारा कर गए हैं कि वह कांडा या अभय में से किसी एक को वोट दे सकते हैं। वास्तविक कांग्रेसियों की मजबूरी तो कांग्रेस के खूंटे से बंधे रहने की है ही।
अब सलाह-मशविरा करने को बचा ही कौन है
हरियाणा कांग्रेस के अध्यक्ष रह चुके पूर्व सांसद डा. अशोक तंवर ने जब से अपना भारत मोर्चा बनाया है, तब से वह लगातार पूरे देश में घूम रहे हैं। अब उनकी गाड़ी का पहिया ऐलनाबाद के चुनावी रण में आकर थम गया है। अशोक तंवर के ख्वाब बहुत बड़े-बड़े हैं। वह कांग्रेस में लौटने का कोई इरादा नहीं रखते, लेकिन उनके पुराने साथी यह कहकर तंवर का साथ छोड़ चुके हैं कि जब उन्होंने कांग्रेस को अलविदा कहा, तब उनसे कोई राय तक नहीं की। अब तंवर के साथ कुछ ही पुराने साथी बचे हैं, जबकि नए लोग जुड़ते जा रहे हैं।
अभय सिंह चौटाला ने पिछले दिनों अशोक तंवर और उनकी धर्मपत्नी अवंतिका माकन तंवर से मुलाकात की। अभय सिंह चौटाला चुनाव प्रचार के दौरान जब भी समय मिलता है, सुबह या शाम को धार्मिक स्थलों तथा डेरों में जाकर आशीर्वाद लेने का कोई मौका नहीं छोड़ रहे। अभय चौटाला जब तंवर से मिलकर लौटे तो उन्होंने दावा किया कि वह उनका समर्थन करेंगे, लेकिन तंवर ने बयान दिया कि वह अपने कार्यकर्ताओं से पहले राय लेंगे। तंवर के इस बयान के बाद सैलजा व हुड्डा समर्थकों के चेहरे पर कुटिल मुस्कान बिखर गई। उन्होंने मन ही मन बुदबुदाया कि अब सलाह मशविरा करने को बचा ही कौन है।