कांग्रेस में स्थायी अध्यक्ष की मांग लेकर बने 23 नेताओं के समूह (जी-23) के वरिष्ठ नेता क्षेत्रीय दल के गठन से तौबा कर रहे हैं। पूर्व केंद्रीय मंत्री एवं जम्मू कश्मीर के मुख्यमंत्री रह चुके गुलाम नबी आजाद के बाद अब हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने भी क्षेत्रीय दलों को लोकतंत्र के लिए चुनौती बता दिया है। पांच राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनाव से पहले हुड्डा की इस राय से कांग्रेस हाईकमान को काफी राहत मिलेगी। आजाद के बाद हुड्डा के इस बयान को राजनीतिक दृष्टिकोण से भी देखा जा रहा है, क्योंकि पंजाब में मनीष तिवारी सरीखे कुछ नेताओं के दूसरे दलों में जाने की चर्चा सामने आ रही है।
जी-23 में शामिल कांग्रेस के प्रमुख नेताओं के बारे में समय-समय पर यह कयास लगाए जाते रहे हैं कि ये तिवारी कांग्रेस की तरह किसी नए दल का गठन कर सकते हैं। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता गुलाम नबी आजाद के ताजा बयान कि असहमति और पार्टी चलाने में खामियों को बताने पर आलाकमान विद्रोह के रूप में देख रहा है मगर इसके बावजूद वे नई पार्टी नहीं बनाने जा रहे हैं। इसके बाद हुड्डा ने भी हरियाणा के भिवानी में भारतीय लोकतंत्र के सामने चुनौतियां विषय पर कहा है कि वर्तमान समय क्षेत्रीय दलों के लिए अच्छा नहीं है। राष्ट्रीय दलों की अपनी अलग महत्ता है। हुड्डा ने भी आजाद के बयान के सुर में सुर मिलाते हुए कहा कि लोकतंत्र में समय के साथ मतभेद होते हैं मगर ये मतभेद दूर होने की बजाय मनभेद में बदल रहे हैं। मनभेद भी दुश्मनी में तबदील हो रहे हैं। यह बड़ी चिंता है।
हरियाणा में कांग्रेस की कमान नहीं मिलने से नाराज पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा के बारे में पिछले करीब छह साल से यही कयास लगाए जाते रहे हैं कि वे अपना क्षेत्रीय दल बना सकते हैं। राज्य में 31 विधायकों की कांग्रेस पार्टी में हुड्डा के खेमे में 24 विधायक हैं। इतना ही नहीं जमीन पर संगठन के नाम पर भी हुड्डा काफी मजबूत हैं। कांग्रेस हाईकमान भी यह जानता है मगर हुड्डा को 2014 के बाद प्रदेश कांग्रेस की एकतरफा कमान नहीं मिली। पहले हुड्डा की प्रदेश अध्यक्ष के रूप में डाक्टर अशोक तंवर और अब दो साल से मौजूदा अध्यक्ष कुमारी सैलजा से पटरी नहीं बैठी।
हुड्डा समय-समय पर इसकी बाबत अपना विरोध भी चंडीगढ़ से दिल्ली तक जताते रहे हैं। इन्हीं विरोध के चलते यह कहा जाता रहा है कि हुड्डा अलग दल बना सकते हैं, मगर हुड्डा के अपनी किचन कैबिनेट के सदस्य कुलदीप शर्मा, करण दलाल, भारत भूषण बतरा, रघुबीर कादयान इसके पक्ष में नहीं हैं। प्रियंका गांधी के नजदीक राज्यसभा सदस्य दीपेंद्र हुड्डा भी कभी कांग्रेस लाइन से अलग चलते नहीं दिखाई दिए।
क्षेत्रीय दलों के खिलाफ देश के बड़े नेताओं ने समय-समय पर अपने विचार व्यक्त किए हैं। तीन मार्च 2004 को पलवल में फरीदाबाद लोकसभा क्षेत्र की चुनावी जनसभा को संबोधित करने पहुंचे भाजपा के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवानी ने कहा था कि देशवासियों को देश हित में राष्ट्रीय दलों को ही वोट करना चाहिए। क्षेत्रीय दलों के ताकतवर होने से केंद्र में मजबूत नहीं मजबूर सरकार बनती है। आडवानी के इस बयान से तब राजनीतिक तूफान खड़ा हो गया था। हरियाणा में तब इंडियन नेशनल लोकदल (इनेलो) की सरकार थी और इनेलो तब एनडीए का घटक दल था। इसके बाद इनेलो के मुखिया ओमप्रकाश चौटाला ने आडवानी के खिलाफ दिए बयान भी काफी चर्चित रहे थे।