पांच राज्‍यों के विधानसभा चुनाव परिणामों के बाद भाजपा विरोधी दलों के एक मजबूत विपक्ष देने की संभावना भी काफी कम

पांच राज्‍यों में हुए विधानसभा चुनावों के परिणाम अब सभी के सामने हैं। इन चुनावों में जिन पार्टियों को सबसे बुरी पराजय का मुंहदेखना पड़ा उसमें नेशनल पार्टी का दर्जा हासिल की हुई कांग्रेस और बहुजन समाज पार्टी (बसपा) शामिल हैं। दोनों ही पार्टियों को इन चुनाव में मिला वोट शेयर भी बेहद कम हुआ है। कांग्रेस के हाथों से पंजाब के निकल जाने के बाद अब उसके पास केवल छत्‍तीसगढ़ और राजस्‍थान ही शेष रह गया है। वहीं एक दशक से भी कम समय में सामने आने वाली आम आदमी पार्टी ने पंजाब में जबरदस्‍त जीत हासिल कर दिल्‍ली से बाहर अपनी सरकार बनाने में सफल हुई है।

कांग्रेस अपनी राजनीतिक जमीन खो चुकी

इन परिणामों के सामने आने के बाद केंद्र में विपक्ष की स्थिति में भी बदलाव होना तय है। इसका असर आने वाले वर्षों में होने वाले लोकसभा और विधानसभा चुनावों में भी जरूर दिखाई देगा। वरिष्‍ठ राजनीतिक विश्‍लेषक कमर आगा का मानना है कि कांग्रेस अपनी राजनीतिक जमीन खो चुकी है। मौजूदा समय में उसकी जो मजबूती जमीनी कार्यकर्ता की होती थी वो उससे बेहद दूर हो चुकी है। इसका खामियाजा काफी समय से उसको उठाना पड़ रहा है। खुद को मजबूत करने के लिए उसको लगातार खुद में बदलाव करने और मेहनत करने की जरूरत है।

समाजवादी पार्टी ने इस चुनाव के जरिए खुद को किया मजबूत

केंद्र में विपक्ष की स्थिति की बात करें तो एक तरफ जहां कांग्रेस लगातार कमजोर हुई है वहीं समाजवादी पार्टी ने इस चुनाव के जरिए खुद को मजबूत बनाया है। हालांकि विपक्ष की केंद्र में स्थिति इस बात पर निर्भर करती है कि समूचा विपक्ष भाजपा के खिलाफ साथ आ पाएगा या नहीं। इसकी कवायद यूं तो काफी समय से हो रही है, लेकिन सफलता अब तक नहीं मिल सकी है। इसकी वजह सभी का अपना हित है।

कांग्रेस की दुविधा बाहरी दलों को लेकर ही नहीं

दक्षिण में भाजपा से विमुख होने वाली पार्टियों को एकजुट करने की कोशिश में टीआरएस अध्‍यक्ष चंद्रशेखर राव भी लगे हुए हैं। पिछले ही दिनों उन्‍होंने महाराष्‍ट्र में इसकी शुरुआत भी कर दी है। वहीं इस चुनाव में कांग्रेस की करारी हार के बाद तृणमूल कांग्रेस ने भी एकजुट होकर चुनाव रखने का विकल्‍प रखा है। टीएमसी ने तो कांग्रेस के साथ विलय करने तक की बात कह दी है। लेकिन कांग्रेस की दुविधा बाहरी दलों को लेकर ही नहीं बल्कि अपने अंदर मची खलबली से भी साफ जाहिर हो रही है। यूपी की ही बात करें तो वो अलग-अलग पार्टियों के साथ गठबंधन कर खुद को आजमा चुकी है।

कांग्रेस के सहारे एकजुट विपक्ष की बात करना बेमानी

उत्‍तर प्रदेश और पंजाब जैसे बड़े राज्‍यों में अपनी राजनीतिक जमीन खोने के बाद राजस्‍थान में मची सियासी उठापठक भी उसके लिए घातक साबित हो सकती है। छत्‍तीसगढ़ का भी कमोबेश यही हाल है। ऐसे में कांग्रेस भविष्‍य में भाजपा को रोकने के लिए एकजुट होने वाले खेमे में कितना रोल निभा सकेगी, फिलहाल कह पाना काफी मुश्किल है। कांग्रेस के सहारे एकजुट विपक्ष की बात करना काफी कुछ बेमानी इसलिए भी हो रही है क्‍योंकि वो अपनी राजनीतिक जमीन खो चुकी है। इसको वापस पाने के लिए उसको कड़ी मेहनत और सही रणनीति पर काम करना होगा।