सावन, सोमवार और शिव भक्त द्रौपदी:प्याज-लहसुन भी नहीं खातीं मुर्मू, अब राष्ट्रपति भवन की रसोई में पकेगा ‘पखाल और सजना का साग’

राष्ट्रपति चुनाव के लिए नामांकन के बाद ओडिशा के रायरंगपुर के एक मंदिर में द्रौपदी मुर्मू की झाड़ू लगाती हुई तस्वीर और वीडियो खूब वायरल हुआ। यह भी संयोग है कि सावन के पहले सोमवार को राष्ट्रपति चुनाव के लिए वोटिंग हुई और अब दूसरे सोमवार को शपथ ग्रहण। उनके गांव में जिससे पूछिए सब एक बात जरूर कहते हैं- द्रौपदी सब कुछ छोड़ सकती हैं, लेकिन अपने शिव बाबा का ध्यान नहीं।

उनकी पोती सुनीता मांझी कहती हैं,’ वह सुबह 3-4 बजे के बीच जाग जाती हैं। उनके रूटीन में मॉर्निंग वॉक, योग और शिव की पूजा शामिल है। वह कभी भी अपनी पूजा मिस नहीं करती हैं।

साल 2013 में बड़े बेटे की मौत के बाद द्रौपदी डिप्रेशन में चली गई थीं। इससे उबरने के लिए उन्होंने अध्यात्म का सहारा लिया और शिवभक्त बन गईं। इतना ही नहीं उन्होंने नॉनवेज खाना भी छोड़ दिया। अब तो वे लहसुन-प्याज भी नहीं खाती हैं।

घर आने से पहले द्रौपदी फोन कर देती हैं कि पखाल और सजना का साग बना के रखना

ऊपरवेड़ा गांव में रह रही उनकी पुत्रवधु कहती हैं, ‘वह जब भी यहां आती हैं, पहले फोन कर देती हैं कि पखाल और सजना का साग बनाना।’ पखाल यानी पानी का भात और सजना यानी सहजन का साग। कई राज्यों में इसे मुनगा का साग भी कहते हैं।

आंगन में लगे एक पेड़ की तरफ इशारा करते हुए वो कहती हैं, ‘यह सजना का पेड़ है। जब वह आती हैं, हम इसी पेड़ से साग तोड़कर बनाते हैं।’

कवरेज के दौरान हमें एक दिलचस्प बात पता चली कि ओडिशा के ज्यादातर जगहों पर सहजन का पेड़ ठीक उसी तरह हर घर में विराजमान है, जैसे उत्तर भारत में हर घर में तुलसी होती हैं।

देश की नई राष्ट्रपति क्या-क्या खाती हैं, चलिए जानते हैं…

द्रौपदी की भाभी शाक्य मुनी कहती हैं, ‘वह वेजीटेरियन हैं। सुबह नाश्ते में जो भी घर में बनता है, खा लेती हैं। कुछ ड्राई फ्रूट्स उनके नाश्ते में जरूर रहते हैं। दोपहर में चावल, साग-सब्जी और रोटी खाती हैं। रात में कोई फ्रूट और हल्दी वाला दूध लेती हैं।’

वे कहती हैं, ‘द्रौपदी खुद भी बहुत अच्छा खाना बनाती हैं। मैंने भी उन्हीं से खाना बनाना सीखा है।’

द्रौपदी की पोती सुनीता से जब पूछा- आप उनके साथ पिछले साल रायरंगपुर वाले घर में एक महीना रहीं, खाना कौन बनाता था? सुनीता झट से जवाब देती है, ‘सब्जी मैं और रोटी वह बनाती थीं।’

शिव भक्त द्रौपदी के पूजा रूम में शिव की तस्वीर ही नहीं

शाक्य मुनी हमें द्रौपदी का पूजा वाला कमरा दिखाती हैं। कमरे में हल्की रोशनी है, एक गुरु की तस्वीर के ऊपर लाल रंग की अंडाकार लाइट है। तस्वीर के एक तरफ लक्ष्मी नारायण तो दूसरी तरफ विष्णु हैं। इन तस्वीरों के ठीक ऊपर कृष्ण का बाल रूप है। ऊपर भी लक्ष्मी नारायण हैं।’ पूरे कमरे मे शिव की कहीं कोई तस्वीर न मूर्ति।

अब मन में सवाल कौंधा…शिवभक्त द्रौपदी के पूजा रूम में शिव की कोई तस्वीर नहीं…?

शाक्यमुनी कहती हैं, ‘द्रौपदी के शिव साकार नहीं निरंकार हैं। यह जो ट्रांसलाइट दिख रही हैं न बस उसी की रोशनी में वो शिव का ध्यान करती हैं। मैं खुद भी इन्हीं निरंकार शिव का ध्यान करती हूं।’

राष्ट्रपति भवन में भी बिराजेंगे निरंकार शिव

द्रौपदी को उनके दुख भरे दिनों में ब्रह्मकुमारी की मुखिया सुप्रिया ही अध्यात्म के रास्ते पर लेकर आईं। दरअसल द्रौपदी ने बड़े बेटे की मौत के बाद उन्हें घर बुलाया था। और पूछा था कि इस मुश्किल वक्त से कैसे निकलूं? तब सुप्रिया ने उन्हें ध्यान सेंटर पर आने की सलाह दी थी।

सुप्रिया बताती हैं, ‘द्रौपदी कहीं भी जाएं उनके साथ शिव बाबा के ध्यान के लिए ट्रांसलाइट और एक छोटी सी पुस्तिका रहती है। रायरंगपुर वाले घर से लेकर गवर्नर हाउस तक हर जगह द्रौपदी अपने लिए एक पूजा स्थल बनाती हैं। वहां शिव बाबा होते हैं।’

तो अब राष्ट्रपति भवन में भी शिव बाबा बिराजेंगे? सुप्रिया कहती हैं, ‘जहां-जहां, द्रौपदी वहां-वहां उनके शिव बाबा।’

नई राष्ट्रपति का नाम द्रौपदी नहीं था, क्या था चलिए जानते हैं…

द्रौपदी महाभारत का सबसे मजबूत किरदार। स्त्री शक्ति का प्रतीक, लेकिन उत्तर भारत में द्रौपदी नहीं सीता की तलाश। खोजे से भी द्रौपदी नाम नहीं मिलेगा। फिर आज से करीब 65 साल पहले एक आदिवासी गांव ऊपरवेडा की लड़की का नाम द्रौपदी किसने रखा… क्या यहां सीता से ज्यादा द्रौपदी लोकप्रिय हैं।

इसकी तलाश हम जोगिंदर कुमार के घर पहुंचे। दोनों तरफ दो-दो गुलाबी खंभों के ऊपर टिका गोलाकार घर। द्वार के दोनों तरफ हनुमान के चित्र और द्वार पर एक छोटा चबूतरा। दरवाजा खटखटाया तो गुलाबी सफेद कमीज और गुलाबी गमछा पहने एक व्यक्ति ने दरवाजा खोला। बातचीत शुरू हुई। आप द्रौपदी को जानते हैं…?

द्रौपदी को तो अब सब जानते हैं। हंसते हुए उन्होंने कहा, वैसे 5000 साल पहले वाली द्रौपदी भी सबको याद है। शायद गुरू जी को पता था, उनके स्कूल में पढ़ने आई यह बच्ची बहुत नाम करने वाली है। इसिलए पुत्ती का नामकरण ही कर डाला। स्कूल दस्तावेज में उनका नाम द्रौपदी लिख दिया।

तो क्या द्रौपदी नाम उनके घरवालों ने नहीं दिया?

गांव-देहात में लोग घरेलू नाम रखते हैं। वो पैदा हुईं तो प्यार से उन्हें घरवाले पुत्ती कहने लगे। यही नाम भी पड़ गया। 5 साल की उम्र तक उनका नाम पुत्ती ही रहा। फिर स्कूल में भर्ती हुईं। तो उनका नाम हमारे मास्टर मदन मोहन महंतो जी ने पुत्ती से बदलकर द्रौपदी कर दिया।

जैसे मेरा नाम जोगी था। स्कूल में दाखिला के वक्त मेरा भी नाम बदल कर उन्हीं मास्टर जी ने जोगिंदर कुमार कर दिया। मास्टर साहब पढ़े लिखे थे, उन्होंने जिसका भी नाम रखा, बेहतर ही रखा। दूसरी बात यहां द्रौपदी नाम कॉमन है। आपको कई और जगहों पर भी सुनने को मिल जाएगा।

बचपन से ही धाकड़ और बेबाक थीं द्रौपदी

जोगिंदर कहते हैं, ’द्रौपदी जितनी पढ़ने लिखने में अच्छी थीं, उतनी ही वह बेबाक भी थीं। लड़कियों की आपसी लड़ाई हो जाए तो निपटारे के लिए खुद आ जातीं और दोनों पक्ष उनके न्याय से संतुष्ट भी हो जाते थे। इतना ही नहीं लड़के भी द्रौपदी से दूर ही रहते थे, वे उनसे उलझते नहीं थे। मैं तो उनसे दो साल सीनियर था। पढ़ते वक्त भी मेरा उनके घर आना-जाना रहा।’

द्रौपदी को 6-7 कक्षा में पढ़ाने वाले बासुदेव कहते हैं, ‘क्लास में लड़के ज्यादा लड़कियां बहुत कम। लिहाजा लड़कों को ही मॉनिटर बनाया जाता था, लेकिन जब द्रौपदी पढ़ने आई, तो मॉनिटर बनने की दोनों शर्त जीत ली। पढ़ने में सबसे बेहतर और डिसिप्लिन मेंटेंन रखने में भी माहिर।’

द्रौपदी जैसे अगली कक्षा में जातीं, अपनी किताब किसी जरूरतमंद को दे देती थीं। उनकी प्रार्थना सुनने के लिए सड़क से आते-जाते लोग रुक जाते थे।

द्रौपदी के जन्मस्थल ऊपरवेड़ा गांव में उनके घर-परिवार और मित्रों से मिलने के बाद मेरा सफर आगे बढ़ा। उनके बारे में कुछ और बातें जानने के लिए। मास्टर मदन मोहन महंतो जिंदा होते तो जरूर उनसे मिलकर पूछती, नाम द्रौपदी ही क्यों, क्या उन्हें भविष्य में घटने वाली घटना का अंदाजा था?

सफर पूरा हुआ तो दिल्ली की तरफ रुख किया। मन में एक तसल्ली थी। देश के सर्वोच्च पद पर द्रौपदी बैठेंगी। शायद अब देश की स्त्री का आदर्श द्रौपदी बने। वह द्रौपदी जिसने उपहास नहीं सहा, जिसने चीरहरण के अपमान का घूंट चुपचाप नहीं पिया।