स्वतंत्रता दिवस से 5 दिन पहले गहमर में तैयारियां शुरू हो गई हैं। 15 अगस्त को गांव के बड़े मैदान जिसे यहां के लोग ‘मठिया’ कहते हैं, उसे सजाया जा रहा है। ये कोई आम जगह नहीं है। इसी मैदान ने देश को 15 हजार सैनिक दिए हैं।
यूपी के गाजीपुर जिले से किमी 40 किमी दूर पड़ता है गहमर गांव। आबादी के लिहाज से ये एशिया का सबसे बड़ा गांव है। लेकिन ये इसकी पहचान नहीं है। इसकी पहचान है देशभक्ति का जुनून, जिसके चलते इस गांव के हर परिवार का कोई न कोई व्यक्ति सेना में है या रह चुका है। गहमर के हर घर में फौजियों की तस्वीरें, वर्दियां और सेना के मेडल अलमारियों में सजे दिखते हैं।
यहां के 12 लोगों ने साल 1965 और 1971 की जंग से लेकर कारगिल की लड़ाई में भारतीय सेना का मान बढ़ाया है। यहां के लोग कहते हैं कि गहमर में जब तक लड़कों की सेना में भर्ती नहीं होती उनकी शादी भी नहीं की जाती है।
सेना में सिपाही से लेकर कर्नल रैंक तक पहुंचे गांव के लोग
‘हमारा गांव फैजियों का गांव है। यहां मां की कोख से ही बच्चा फौजी बनकर पैदा होता है।” गहमर में रहने वाले नीरज ने हमें यही बताया। गांव में घुसते ही सबसे पहला मकान उन्हीं का है। नीरज के भाई राहुल कुमार वर्मा इंडियन नेवी में हैं।
नीरज कहते हैं, “गांव के 2000 से ज्यादा लोग सेना के अलग-अलग विंग में सिपाही से लेकर कर्नल तक की पोस्ट पर काम रहे हैं। इस गांव ने भारतीय सेना को 15 हजार से ज्यादा जवान दिए हैं। यहां किसी भी घर का बेटा फौज से छुट्टी पर आता है तो गांव का हर एक व्यक्ति उससे मिलने जाता है।”
16 मार्च 2021 को लोकसभा में बताया गया था कि देश में कुल 11 लाख 51 हजार 726 जवान सीमा पर तैनात थे। इसमें से 14.5%, यानी 1 लाख 67 हजार 557 सैनिक अकेले यूपी के हैं। दूसरे नंबर पर 7.7%, यानी 89 हजार 88 जवानों के साथ पंजाब है। UP का आधा। तीसरे पर 87 हजार 835 जवानों के साथ महाराष्ट्र है। यूपी के गाजीपुर जिले से मौजूदा समय में सबसे ज्यादा 10,320 सैनिक सेना के अलग-अलग हिस्सों में तैनात हैं।
नीरज के घर से हम 50 कदम आगे बढ़े तो एक बड़ा सा मैदान मिला। यहां बीचों-बीच एक गोल चबूतरा है। इस पर गांव के सैनिकों का नाम लिखा है। इसी मैदान के कोने पर पूर्व सैनिक सेवा समिति का दफ्तर है। इस जगह पर गांव के रहने वाले पूर्व सैनिकों की बैठक होती है। बच्चों को सेना से जुड़ी परीक्षा, सैनिकों की पेंशन की जानकारी मिलती है।
शहीद अब्दुल हमीद जैसा बनना चाहता है गांव का हर लड़का
मैदान के ठीक सामने 1965 भारत-पाक युद्ध में लेफ्टिनेंट कर्नल रहे रामबचन सिंह का घर है। यहां हमें उनके बेटे अशोक सिंह मिले। अशोक बताते हैं, ”पापा 1965 की वॉर में शहीद अब्दुल हमीद जी के साथ पाकिस्तानियों से लड़े। फिर 1971 में भी रहे। आज वो 86 साल के हो गए हैं, लेकिन आज भी उनकी वही फिटनेस है। किसी को हाथ पकड़ चलने नहीं देते हैं। हमारे घर की तीन पीढ़ियां सेना में रही हैं। हमारे ग्रेट ग्रैंडफादर और दादा जी भी फौज में रहे हैं। पापा को सेना मेडल मिल चुका है।”
अशोक कहते हैं, “देश सेवा को लेकर गहमर की ये परंपरा आजादी के पहले से शुरू हो गई थी। दूसरे विश्व युद्ध में गहमर के 200 से ज्यादा लोग अंग्रेजी सेना में शामिल रहे, जिसमें से 21 सैनिक शहीद हो गए थे। गांव के बड़े बताते हैं कि यहां सैनिक बनने का जोश इसी समय से शुरू हो गया था। आज सेना में भर्ती की तैयारी कर रहे गांव के लड़के शहीद अब्दुल हमीद को हीरो मानते हैं।”
सेना से लौटे जवानों ने गांव के मैदान को बनाया आर्मी ट्रेनिंग फील्ड
22 साल के सुरेंद्र कुमार पांडे के पिता एयरफोर्स में हैं और बाबा पुलिस में रह चुके हैं। सुरेंद्र 4 साल से सेना भर्ती की तैयारी कर रहे हैं। इसके लिए वो हर दिन अपने 3 से 4 घंटे गांव के किनारे गंगा घाट पर बने वर्क-आउट एरिया को देते हैं। इस जगह को यहां ‘मठिया’ कहा जाता है। यहां पहुंचने पर लगेगा कि आप किसी आर्मी की ट्रेनिंग यूनिट में आ गए हों। सेना में नौकरी कर रहे लोगों ने ही इसे डिजाइन किया है। यहां सेना के नियमों के मुताबिक रनिंग ट्रैक है। आर्मी की हार्डकोर प्रैक्टिस में शामिल होने वाली सभी तरह की सुविधाएं यहां मौजूद हैं।
गांव के रहने वाले भूतपूर्व सैनिक मारकंडेय सिंह कहते हैं, “मठिया की मिट्टी ने सेना को 15 हजार सैनिक दिए हैं। यहां प्रैक्टिस करने वाला हर बच्चा सेना के फिजिकल टेस्ट को आसानी से क्लियर कर सकता है। हर 15 अगस्त के दिन इस मैदान को सजाया जाता है। तिरंगा फहरा कर बच्चे परेड निकालते हैं और सैनिक बनने की कसम खाते हैं।”
बच्चों को हंसते-हंसते फौज में भेजती हैं महिलाएं
गांव की मनोरमा देवी का बेटा राहुल नौसेना में क्लर्क है। हम उनके घर पहुंचे तो उन्हें बहुत खुशी हुई। मनोरमा बोलीं, “आपकी की ही उम्र का हमारा बेटा फौज में है। उसे मीठा पसंद है। जब भी छुट्टी पर घर आता है उसे गाजर का हलुआ खिलाते हैं।”
हमने उनसे सवाल किया कि क्या यहां की महिलाओं को अपने बच्चों को सेना में भेजने में डर नहीं लगता ? उन्होंने जवाब दिया, “गांव की मान्यता है कि यहां की कुलदेवी मां कामख्या सेना में गए हर बच्चे की रक्षा करती हैं। जब माता हमारे बच्चों की रक्षा कर रही हैं तो हमें किसी बात का डर नहीं है। यहां बच्चों का नाम सेना में आने पर महिलाएं मिठाइयां बांटती हैं।”
गांव में प्राइमरी स्कूल से लेकर डिग्री कॉलेज तक की सुविधा
गहमर गांव गाजीपुर की जमानिया विधानसभा में आता है। इस गांव को 1530 में राजा धामदेव राव ने बसाया था। गांव में घुसते ही आपको घरों के बाहर लगी नेम प्लेट पर भूतपूर्व सैनिक, भारतीय सेना और फौजी जैसे शब्द दिखाई देंगे।
गहमर में 1 लाख 30 हजार लोगों की आबादी है। लगभग 60% लोग राजपूत बिरादरी के हैं। यहां यादव, वर्मा और ब्राह्मण वर्ग के लोग भी हैं। गांव का खुद का रेलवे स्टेशन भी है। यहां से 20 से ज्यादा ट्रेनें गुजरती हैं। पढ़ाई-लिखाई के लिए डिग्री कॉलेज, इंटर कॉलेज, प्राथमिक विद्यालय हैं। क्योंकि यहां के बच्चे खूब पसीना बहाते हैं। इसलिए उन्हें फिट रखने के लिए यहां स्वास्थ केंद्र भी है, जहां 24 घंटे ट्रीटमेंट की सुविधा है।