6 अगस्त 2022 को आई हाॅर्वर्ड मेडिकल स्कूल की रिपोर्ट बताती है कि भारतीय किशोरियां पिछले एक दशक में तेजी से इसकी चपेट में आई हैं। इसका बडा कारण सोशल मीडिया का बढ़ता एक्सपोजर है। एक रिपोर्ट के अनुसार वर्तमान में हर 7 में से एक भारतीय इस समय अवसाद की समस्या से पीड़ित है। दैनिक भास्कर के 11 अगस्त के अंक में डिप्रेशन से संबंधित लेख प्रकाशित किया गया था। इसके बाद पाठकों ने बड़ी संख्या में इससे जुड़े सवाल पूछे हैं। इनके जवाब दे रहे हैं मिचम अस्पताल में मेलबर्न बेस्ड डॉ. अमित जुत्सी।
प्रश्न. क्या चिंता ही डिप्रेशन है?
उत्तर. भविष्य के बारे में सोचना एक सामान्य बात है और ऐसा करना भी चाहिए, लेकिन जब हम भविष्य को लेकर अपनी सोच को नियंत्रित नहीं कर पाते हैं और यह बहुत अधिक होने लगती है तब यह चिंता में बदल जाती है। इसके बाद भविष्य की यह चिंता जिसके साथ एंग्जाइटी, सिरदर्द और बदन दर्द के साथ हर छोटी चीज के बारे में आने वाले विचार जब लगातार 6 महीने तक मौजूद रहते हैं तो यह जनरलाइज्ड एंग्जाइटी डिसऑर्डर (जीएडी) का रूप लेने लगता है, लेकिन यह डिप्रेशन नहीं है। डिप्रेशन और जीएडी के बीच अंतर होता है।
डिप्रेशन में व्यक्ति ज्यादातर समय कम से कम 2 सप्ताह तक उदास महसूस करता है। अवसाद से ग्रस्त व्यक्ति अतीत में किए गए कामों को लेकर चिंतित रहता है। पूर्व में किए गए गलत कामों के लिए खुद को दोषी मानता है। मुख्य रूप से उसका ध्यान नकारात्मक चीजों पर केंद्रित रहता है।
प्रश्न. डिप्रेशन के लक्षण क्या हैं?
उत्तर. डिप्रेशन एक मूड डिसऑर्डर है। इसमें व्यक्ति मुख्य से उदास या कुछ मामलों में चिड़चिड़ा रहता है। लगातार खराब मूड के कारण व्यक्ति सामान्य दिनों की तुलना में कम ऊर्जावान महसूस करने लगता है। वह उन चीजों में खुशी पाने के लिए संघर्ष करने लगता है, जिनमें वह पहले आनंद लेता था। आत्मविश्वास और एकाग्रता में प्रमुखता से कमी आने लगती है। नींद और भूख में काफी बदलाव आता है। वह स्वयं और भविष्य के प्रति नकारात्मक दृष्टिकोण रखने लगता है, जैसे कि किसी व्यक्ति के काला चश्मा पहनने के बाद सब कुछ काला और नजर आने लगता है।
निराशा के गंभीर मामलों में व्यक्ति के मन में आत्महत्या करने के विचार आ सकते हैं क्योंकि उसे लगता है कि कोई आशा नहीं बची है।
प्रश्न. डिप्रेशन की पहचान के लिए कौन सा टेस्ट कराना चाहिए?
उत्तर. डिप्रेशन की पहचान किसी ब्लड या रेडियोलॉजिकल टेस्ट से नहीं की जा सकती। इसे केवल क्लीनिकल परीक्षण से ही जाना जा सकता है। अवसाद कई कारकों से हो सकता है। गले में पाई जाने वाली थायरॉयड ग्रंथि की असामान्यता से हाइपोथायरायडिज्म के कारण भी डिप्रेशन हो सकता है। इसमें थायराइड का स्तर कम हो जाता है जिससे अवसाद का अनुभव होना आम है। इसलिए जब आपको अवसाद का अनुभव हो तो थायरॉयड ग्रंथि की शिथिलता की पहचान के लिए टीएफटी (थायरॉइड फंक्शन टेस्ट) करा सकते हैं। विटामिन बी 12 की कमी (शाकाहारियों में बहुत आम) से भी अवसाद हो सकता है। इसलिए इसका टेस्ट भी कराया जा सकता है।
प्रश्न. मैं डिप्रेशन से निकलकर ठीक हुई हूं, लेकिन अभी भी ओवर थिंकिंग बहुत ज्यादा है। हर चीज में निगेटिविटी पहले नजर आती है। क्या करू ?
उत्तर. यह अवसाद से उबरने वाले रोगियों में देखी जाने वाली एक बहुत ही सामान्य समस्या है। इसके कई कारण हो सकते हैं। सबसे पहले यह स्पष्ट कर दें कि यदि यह ओवर थिंकिंग भविष्य को लेकर है और भविष्य में होने वाली चीजों के परिणामों के बारे में नकारात्मक विचार अा रहे हैं तो यह जनरलाइज्ड एंग्जाइटी डिसऑर्डर (जीएडी) का संकेत है जो अवसाद से अलग है। अवसाद और जीएडी दोनों ही एक साथ हो सकते हैं, लेकिन दोनों का उपचार अलग-अलग है।
यदि व्यक्ति अपने और अपने कार्यों के बारे में नकारात्मक विचार रखता है तो यह अवसाद को सकता है। एक और बात जिस पर मैं जोर देना चाहता हूं कि अवसाद संभवतः केमिकल डिसबैलैंस के कारण होता है और यह व्यक्ति के व्यक्तित्व या आंतरिक शक्ति का रिफलेक्शन नहीं है। डिप्रेशन किसी में भी हो सकता है। कभी-कभी अवसाद से उबरने वाले मरीज खुद को दोष देते हैं। इससे उनका आत्मविश्वास कमजोर हो जाता है, जिससे निगेटिविटी बढ़ती है। इसलिए उन्हें यह समझने की आवश्यकता है कि वे खुद को अवसाद के लिए दोषी न ठकराएं। यह किसी की कमजोरी का प्रतिबिंब नहीं है।
प्रश्न. मेरे मन में हमेशा नकारात्मक विचार आते हैं। घबराहट के कारण धड़कन तेज हो जाती है। नींद भी कम आती है। क्या यह डिप्रेशन हो सकता है?
उत्तर. स्वयं के बारे में नकारात्मक विचार, कम नींद, भूख और एंग्जाइटी अवसाद के सामान्य लक्षण हैं। कई बार लोगों को अवसाद में अधिक नींद या अधिक भूख का अनुभव होता है। इसे कम्फर्ट ईटिंग कहते हैं। यह भी अवसाद का एक लक्षण है। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि उपरोक्त लक्षण कम से कम 2 महीने तक रहने चाहिए। कुछ दिनों के लिए नींद और भूख का कम या ज्यादा होना आम बात है। ऐसा तनाव या एंग्जाइटी के कारण भी हो सकता है।
प्रश्न. क्या मेनोपॉज से डिप्रेशन होता है? यदि हां, तो क्या इसके लिए कोई दवा है?
उत्तर. मेनोपॉज में शारीरिक और भावनात्मक रूप से बड़े पैमाने पर हार्मोनल बदलाव होते है। हॉट फ्लस, नींद में कमी, मूड में उतार-चढ़ाव और कई मामलों में डिप्रेशन का अनुभव भी हो सकता है। इसलिए मेनोपॉज से महिला में डिप्रेशन होने की संभावना बढ़ जाती है। पुरुषों की तुलना में महिलाओं में डिप्रेशन की आशंका दोगुनी होती है। हार्मोनल रिप्लेसमेंट थेरेपी या गर्भ निरोधकों के अलावा, एंटी डिप्रेशंट इसमें प्रभवी हो सकते हैं।
प्रश्न. क्या दवाइयों के साइड इफेक्ट्स से भी डिप्रेशन हो सकता है?
उत्तर. ऐसी दवाइयाँ हैं जो अवसाद का कारण बन सकती हैं या जिनसे आत्महत्या रिस्क बढ़ सकता है। बीटा ब्लॉकर्स जैसी कुछ सामान्य दवाएं जो हाई ब्लड प्रेशर, माइग्रेन और कंपकंपी को कम करने के लिए उपयोग की जाती हैं, अवसाद का कारण बन सकती हैं। अन्य दवाएं जैसे कॉर्टिकोस्टेरॉइड्स और पार्किंसंस रोग के इलाज के लिए उपयोग की जाने वाली दवाओं से भी अवसाद हो सकता हैं। इन दवाओं को बंद करने से अवसाद के लक्षणों के उपचार में मदद मिलती है। कभी-कभी उपरोक्त दवाओं के कारण होने वाले अवसाद के इलाज के लिए एंटी-डिप्रेशेंट की आवश्यकता होती है।
प्रश्न. क्या डिप्रेशन से जुड़ी दवाएं जीवन भर लेनी पड़ती हैं?
उत्तर. डिप्रेशन के उपचार में दवाएं बहुत महत्वपूर्ण हैं। चिकित्सक से परामर्श के बिना इन्हें बंद नहीं करना चाहिए। डिप्रेशन के पहले ऐपिसोड (दौर) के पूरी तरह से ठीक होने के बाद 12 महीने तक एंटी-डिप्रेसेंट लेना चाहिए। यदि अवसाद के लगातार दौर आते हैं तो कम से कम 3-5 वर्षों के लिए दवाएं लेने की सलाह दी जाती है। हालांकि यह अवसाद की गंभीरता, दौर और उनके बीच के अंतर आदि के आधार पर भिन्न हो सकता है।
प्रश्न. सिर में हमेशा भारीपन रहता है। छोटी-छोटी चीजें भूल जाती हैं। हालांकि नकारात्मक विचार नहीं आते। क्या यह भी डिप्रेशन हैं?
उत्तर. . अलग-अलग व्यक्तियों में अवसाद के लक्षण अलग-अलग हो सकते हैं। सिरदर्द, बदन दद, एकाग्रता में कमी (व्यक्ति के सामान्य दिनों की तुलना में), नकारात्मक विचार, चीजों का भूलना (खासकर हाल के दिनों में होने वाली घटनाएं )आम है। साथ ही अगर मूड और एनर्जी में कमी रहती है यह डिप्रेशन की ओर इशारा करता है।
प्रश्न. मुझे घर से बाहर जाने में बहुत तनाव और एंग्जाइटी होती है। घर में भी किसी से बात करने में एंग्जाइटी होने लगती है क्या करू?
उत्तर. परीक्षा देने के दौरान या नौकरी के पहले दिन होने वाली थोड़ी बहुत चिंता का अच्छी होती है। यह हमें अपना सर्वश्रेष्ठ देने में मदद करती है, लेकिन जब चिंता बहुत अधिक हो और हमारी सोच पर हावी होने लगती है तो यह एक बीमारी बन जाती है। जब हम बाहर जाते हैं या जब हम दूसरों से बात करते हैं तो इस दौरान चिंता का अनुभव होना सोशल एंग्जाइटी का संकेत है जो एक बहुत ही सामान्य बीमारी है। लगभग 10-15% आबादी इससे प्रभावित है, जिसका अर्थ है कि भारत में लगभग 14-20 करोड़ लोगों में सोशल एंग्जाइटी के लक्षण हैं।
कॉग्नीटिव बिहेवियर थेरेपी से सोशल एंग्जाइटी के लक्षणों को कम किया जा सकता है। इसमें डर पैदा करने वाली स्थितियों से धीरे-धीरे सामना कराया जाता है। इसके अलावा, ऐसी दवाएं भी हैं जो तनाव और चिंता को कम करने में मदद कर सकती हैं।